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लेख - November 3, 2021

दक्षिण एशिया में अल्पसंख्यकों की दशा

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

भारत में अल्पसंख्यकों के साथ कोई भी गड़बड़ होती है तो वह विपक्षी नेताओं की बंदूक में बारूद का गोला बनकर बरसने लगती है। उसे बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित किया जाता है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारत को नहीं बख्शा जाता।

इसका यह अर्थ कतई नहीं कि भारत के अल्पसंख्यकों के साथ कोई अन्याय नहीं होता। अन्याय कई शक्लों में होता है और वह जब उतरता है तो वह जाति, मजहब, भाषा और प्रांत वगैरह की सीमाएं लांघ जाता है। यदि आप अल्पसंख्यक हैं तो जाहिर है कि अन्यायकर्त्ता को जुल्म करते हुए ज्यादा डर नहीं लगता लेकिन जरा हम यह भी देखें कि अपने पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों की दशा कैसी है? मैं जिन पड़ोसी देशों की बात कर रहा हूं, वे किसी समय भारत के ही हिस्से थे। भारतीय थे लेकिन आजकल वहां के अल्पसंख्यक कौन हैं? पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और मालदीव इस्लामी राष्ट्र हैं। वहां हिंदू, सिख और ईसाई अल्पसंख्यक हैं। भूटान बर्मा और श्रीलंका बौद्ध राष्ट्र हैं। वहां हिंदू, मुसलमान और ईसाई अल्पसंख्यक हैं। भारत और नेपाल हिंदू राष्ट्र नहीं, हिंदू-बहुल राष्ट्र हैं। इनमें मुसलमान, ईसाई और यहूदी अल्पसंख्यक हैं। अब जरा हम तुलना करें कि इन सब राष्ट्रों में उनके अल्पसंख्यकों के साथ उनकी सरकारें और उनकी जनता कैसा व्यवहार करती है?

पाकिस्तान और बांग्लादेश की सरकारें काफी सतर्क हैं। उनके अल्पसंख्यकों के मंदिरों और गिरजों पर हमले होते हैं तो वे उनकी रक्षा करने की भरपूर कोशिश करते हैं लेकिन उनसे कोई पूछे कि उनके देशों में उनके अल्पसंख्यकों की संख्या दिनोंदिन घटती क्यों जा रही है? उनके हिंदू और ईसाई लोग अपना देश छोड़कर विदेश क्यों भाग रहे हैं? उनके यहां जबरन धर्म-परिवर्तन की खबरें हमेशा गर्म क्यों रहती हैं? वे अपने देशों में ही नहीं, दक्षिण एशिया के सभी देशों में धर्म-परिवर्तन के लिए लालच, ठगी, धोखा, झूठ, फर्जी सेवा आदि का बहाना बनाए रखते हैं। जो लोग मुसलमान या ईसाई बनते हैं, वे कुरान और बाइबिल का क ख ग भी नहीं जानते। वे ईसा या मुहम्मद के जीवन से भी कुछ नहीं सीखते। वे अपनी जातीय पहचान और चरित्र से भी चिपके रहते हैं। बौद्ध देशों का भी यही हाल है। गौतम बुद्ध की अहिंसा को अपने आचरण में उतारने की जगह वे हिंसा का सहारा खुले-आम लेते हैं। म्यांमार और श्रीलंका में हमने देखा कि अपने आप को भिक्खु या संत या मुनि समझनेवाले लोग अल्पसंख्यकों का नर-संहार करने में जरा भी संकोच नहीं करते। इन सब पड़ोसी देशों में उनके अल्पसंख्यकों की संख्या इतनी कम है कि उनके क्रोध या असंतोष की कोई चिंता ही नहीं करता लेकिन भारत में जब भी अल्पसंख्यकों के साथ कोई ज्यादती होती है तो वे स्वयं तो अपनी आवाज खुलकर बुलंद करते ही हैं, उनका समर्थन करने के लिए अनेक नेता, बुद्धिजीवी और निष्पक्ष लोग सामने आने से डरते नहीं हैं। यही भारत की खूबी है।

 

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