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लेख - November 10, 2021

‘गौरवमयी भारत’ में क्या है इंसानी जान की कीमत ?

-निर्मल रानी-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

भारतवर्ष इस समय हालांकि बेरोजगारी व मंहगाई जैसे भयंकर हालात का सामना कर रहा है उसके बावजूद सत्ता व सत्ता के शुभचिंतकों का पक्ष हमें हर हाल में यही समझाने की कोशिश में लगा रहता है कि देश की फिजाओं में ‘मौसम गुलाबी है’, फूलों में निखार है,बागों में बहार है। देश के अनेक धार्मिक तीर्थस्थलों का विकास किया जा रहा है। इसी विकास को देश का विकास तथा देश के ‘गौरव की वापसी’ का नाम दिया जा रहा है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड स्थित केदार नाथ धाम में आदि शंकराचार्य की प्रतिमा का अनावरण करने के बाद अपने संबोधन में अयोध्या, मथुरा, काशी और सारनाथ अदि स्थानों में चल रहे देश के कई हिन्दू तीर्थ स्थलों के पुनरुद्धार का जिक्र करते हुए कहा कि ‘हमारी विरासत को पुराना गौरव वापस मिल रहा है’। प्रधानमंत्री हिंदुत्व तथा देश के ‘सांस्कृतिक गौरव ‘ की बातें कर रहे थे। यह वही केदार नाथ था जहाँ 2013 में आयी भीषण बाढ़ में सैकड़ों तीर्थयात्री अपनी जानें गंवा बैठे थे और हजारों लोग लापता हो गये थे। सवाल यह है कि क्या तीर्थस्थलों के विकास मात्र से देश के चहुमुखी विकास के द्वारा भी खुलेंगे ? क्या हमारे ‘धार्मिक ‘ व ‘सांस्कृतिक गौरव ‘ की वापसी हम भारतीयों में सुरक्षा का बोध करा पाने में भी सहायक होगी ? देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये दिन आने वाली मानव क्षति संबंधी खबरें सुनने के बाद भी क्या हम कह सकते हैं कि ‘बागों में बहार है ‘?

उदाहरण के तौर पर देश के हॉस्पिटल्स को ही ले लीजिये। हॉस्पिटल्स को एक ऐसे स्थान के रूप में जाना जाता है जहाँ से किसी बीमार या अस्वस्थ मरीज केरी स्वस्थ व निरोगी होकर वापस लौटने की उम्मीद की जाती है। जहाँ किसी भी मरीज के संपूर्ण स्वास्थ्य लाभ की आस होती है। पूरे देश में प्रतिदिन लाखों रोगी विभिन्न अस्पतालों से स्वास्थ्य लाभ लेते हैं। परन्तु जरा कल्पना कीजिये कि कोई मरीज इन्हीं हॉस्पिटल्स से स्वस्थ होकर लौटने के बजाये यही अस्पताल जिंदा अवस्था में उसकी चिता का सबब बन जाये ? हॉस्पिटल्स में आग लगने की देश में एक दो नहीं बल्कि दर्जनों घटनाएं घटित हो चुकी हैं। हर बार इसके अलग अलग कारण भी बता दिये जाते हैं। कोविड के दौरान जब कई अस्पतालों में खास कर उनके कोविड वार्डस में आग लगी तो यह बताया गया कि ऑक्सीजन की लगातार आपूर्ति के चलते मशीनरी के अत्यधिक गर्म हो जाने व ऑक्सीजन लीकेज होने की वजह से आग लग गयी। कभी यह बता दिया जाता है कि बिजली के शार्ट सर्किट की वजह से आग लग गयी। तो देश में कई बार तो हॉस्पिटल्स में ऑक्सीजन की कमी के कारण भी मरीजों के प्राण त्यागने की खबरें आती रही हैं। हर बार इन सब हादसों का कोई न कोई कारण बता दिया जाता है। राज्य सरकारों द्वारा मृतक मरीजों को कुछ मुआवजा घोषित कर दिया जाता है ,घटना की जांच के आदेश देकर पीड़ित लोगों के गुस्से को फिलहाल शांत किया जाता है। और जिंदिगी की गाड़ी ऐसे हादसे के अगले ही दिन फिर पूर्ववत पटरी पर दौड़ने लगती है। हॉस्पिटल्स में फायर सेफ्टी मेजर्स थे या नहीं,थे भी तो उपयुक्त थे या नहीं, यदि नहीं थे तो फायर सेफ्टी मेजर्स के बिना हॉस्पिटल कैसे चल रहा था , हॉस्पिटल्स में फायर सेफ्टी मेजर्स संबंधी ऑडिट होते भी हैं या नहीं आदि प्रश्नों के उत्तर जनता को नहीं मिल पाते। नतीजतन ‘गौरवमयी भारत’ में इस तरह के एक हादसे के बाद दूसरा हादसा बदनसीब मरीजों का इंतेजार करता रहता है।

स्वयं को आधुनिक राज्य बताने वाला महाराष्ट्र गत एक वर्षों में पांच बार ऐसे हादसों की जद में आ चुका है। जिनमें सत्तर से अधिक लोग अपनी जानें गंवा चुके हैं। आगजनी की ताजातरीन घटना अहमदनगर जिला हॉस्पिटल के कोविड वार्ड की है जिसमें 11 मरीज जिंदा जलकर मर गये इनमें चार महिलायें भी शामिल थीं । अभी इस घटना को एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि गत 8-9 नवंबर की रात मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के सुप्रसिद्ध हमीदिया अस्पताल के शिशु वार्ड में आगजनी की घटना घटी जिसमें फिलहाल 4 बच्चों के झुलस कर मरने की खबर है। प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात में भी हॉस्पिटल्स में आगजनी की कई घटनायें घट चुकी हैं। इसीवर्ष 26 अप्रैल 2021 को गुजरात के औद्योगिक नगर सूरत में आयुष अस्पताल की पांचवीं मंजिल पर स्थित आइसीयू में शॉर्ट-सर्किट के चलते आग लग गयी थी। यहाँ गंभीर रूप से बीमार चार कोविड मरीजों की मौत हो गई थी। इसी तरह मई 2021में गुजरात के भड़ूच जिले में कोविड के बीस मरीज जिंदा जल कर मर गये थे। यहाँ भी कारण बिजली का शार्ट सर्किट या ऑक्सीजन लीक होना बताया गया था। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ के रायपुर में भी इसी वर्ष हॉसिपटल में आग लगने से चार मरीज मरे गये।

इस तरह की जमीनी हकीकत होने के बावजूद इन वास्तविकताओं से भारतवासियों का ध्यान भटकाने के लिये उन्हें जबरदस्ती ‘गर्व की अनुभूति’ कराने की कोशिश की जाती है। हमें बताया जाता है कि गर्व कीजिये कि दीपावली पर अयोध्या में इतने लाख दिये जलाकर गिन्नीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया गया है। गर्व कीजिये कि देश के हिन्दू तीर्थस्थलों का विकास किया जा रहा है। गर्व कीजिये कि हिन्दू जाग चुका है ,गर्व कीजिये कि देश हिन्दू राष्ट्र बनने जा रहा है। गर्व कीजिये कि इलाहबाद व फैजाबाद जैसे शहरों के ऐतिहासिक नाम बदलकर प्रयागराज व अयोध्या छावनी कर दिया गया है। परन्तु वह हिन्दू कैसे गर्व करे जिसके परिवार का सदस्य अस्पतालों से स्वस्थ्य होकर लौटने के बजाये उसकी जिंदा हालत में जली हुई लाश घर वापस पहुंचे ? उस हिन्दू या हिंदुस्तानी के लिये ऐसे ‘गौरवमयी भारत’ के क्या मायने जहाँ या तो मरीज बिना ऑक्सीजन के मर जाते हों या ऑक्सीजन लीक होने से हॉस्पिटल भवन में लगने वाली आग उनकी मौत का कारण बनती हो। हिन्दू राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर इसी ‘गौरवमयी भारत’ ने अभी कुछ महीने पहले ही गंगा सहित देश के कई नदियों के किनारे बहती व रेत पर पड़ी उन हजारों क्षत विक्षत लाशों की तस्वीरें देखी हैं। और हजारों कोविड मरीजों को ऑक्सीजन के अभाव में तड़प तड़प कर मरते भी देखा है। और इन्हीं हालात पर तरस खाकर दुनिया के अनेक देशों से सहायता आते भी देखा है। और देश के बेशर्म जिम्मेदारों को संसद में ऑक्सीजन की कमी से मुकरते भी देखा है। इसी ‘गौरवमयी भारत’ की सरकार के आंकड़ों के अनुसार देश के 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। यह हालात स्वयं इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये काफी हैं कि हिन्दू राष्ट्र बनने जा रहे ‘गौरवमयी भारत’ में इंसानी जान की कीमत आखिर है क्या?

 

 

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