Home लेख पंजाबः भस्मासुरी राजनीति
लेख - October 1, 2021

पंजाबः भस्मासुरी राजनीति

दृडॉ. वेदप्रताप वैदिक-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

पंजाब की कांग्रेस में खड़े हुए संकट के फलितार्थ क्या-क्या हो सकते हैं ? इस संकट का सबसे पहला संदेश तो यही है कि कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की योग्यता पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। माँ-बेटा और भाई-बहन पार्टी के नेताओं ने सबसे पहले अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। अमरिंदर क्या अब चुप बैठेंगे ? वे जो भी निर्णय करें, वे अपने अपमान का बदला लेकर रहेंगे। शीघ्र ही होनेवाले पंजाब के चुनाव में अमरिंदर का जो भी पैंतरा होगा, वह कांग्रेस की काट करेगा।

दूसरा, नए मुख्यमंत्री के लिए चरण सिंह चन्नी की नियुक्ति राजनीतिक दृष्टि से उचित थी, क्योंकि अन्य प्रतिद्वंदी पार्टियां भी अनुसूचित नेताओं को आगे कर रही हैं लेकिन पार्टी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू का इस्तीफा अपने आप में इतनी बड़ी घटना है कि उसने कांग्रेस पार्टी की रही-सही छवि को भी तार-तार कर दिया है। सिद्धू ने जो सवाल उठाए हैं, उन्हें गलत नहीं कहा जा सकता। उन्होंने ऐसे मंत्रियों और अफसरों की नियुक्ति पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं, जो अकाली पार्टी के घनघोर समर्थक रहे हैं या जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप रहे हैं। लेकिन सिद्धू के इस एतराज पर उनका एकदम इस्तीफा दे देना क्या दो बातों का सूचक नहीं है? एक तो सिद्धू अपनी उपेक्षा से अपमानित महसूस कर रहे हैं और दूसरा, वे इतने घमंडी हैं कि उन्होंने अपना असंतोष दिल्ली को बताना भी जरूरी नहीं समझा। पार्टी-अध्यक्ष के नाते वे शायद चाहते थे कि हर नियुक्ति में उनकी राय को लागू किया जाए। यदि ऐसा होता तो मुख्यमंत्री चन्नी रबर की मुहर के अलावा क्या दिखने लगते ?

चन्नी की नियुक्ति के समय कहा जा रहा था कि वे तो चुनाव तक कामचलाऊ मुख्यमंत्री हैं। चुनाव तो लड़ा जाएगा, सिद्धू के नाम पर और वे ही पक्के मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन उनके इस्तीफे ने कांग्रेस को इतना बड़ा झटका दे दिया है कि उसका चुनाव जीतना मुश्किल हो गया है। अब पंजाब की कांग्रेस कई खेमों में बंट गई है। अब अमरिंदर और सिद्धू के ही दो खेमे नहीं हैं। अब सुनील जाखड़, सुखजिंदर रंधावा और राणा गुरजीत सिंह के खेमे भी अपनी-अपनी तलवार भांजे बिना नहीं रहेंगे। टिकटों के बंटवारे को लेकर गृहयुद्ध मचेगा। जो भी अब नया कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा या सिद्धू यदि फिर लौटेंगे तो यह मानकर चलिए कि उन्हें कांग्रेस के लकवाग्रस्त शरीर को चुनाव तक अपने कंधों पर घसीटना होगा।

कांग्रेस के इस अंदरूनी दंगल ने आम आदमी पार्टी, भाजपा और अकाली दल की बांछें खिला दी हैं। यदि सिद्धू को वापस लाया जाता है तो चन्नी की स्थिति शून्य हो जाएगी और सिद्धू का इस्तीफा मंजूर होता है तो कांग्रेस मस्तकविहीन शरीर बन जाएगी। पंजाब की इस दुर्घटना से यही निष्कर्ष निकलता है कि कांग्रेस-जैसी महान पार्टी अब भस्मासुर का रूप धारण करती जा रही है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Check Also

केदारनाथ धाम के कपाट 10 मई को खुलेंगे

उखीमठ, 08 मार्च (ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस)। उत्तराखंड में हिमालय की कंदराओं में स्थित 11वें…