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लेख - March 7, 2022

जवानों में तनाव

.सिद्धार्थ शंकर.

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

सुरक्षाबलों में बढ़ते तनाव की एक और घटना सामने आई है। पंजाब के अमृतसर जिले में बीएसएफ हेडक्वार्टर में रविवार सुबह एक जवान ने मेस में ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं। फायरिंग में 4 जवानों की मौत हो गई और 2 गंभीर रूप से घायल हैं। वहीं फायरिंग करने वाले जवान ने कुछ समय बाद खुद को भी गोली मार ली। अस्पताल ले जाते हुए उसकी भी मौत हो गई। फायरिंग की वजह ड्यूटी का विवाद बताया जा रहा है। जवानों द्वारा साथियों पर फायरिंग की यह पहली घटना नहीं है। कभी.कभार इस तरह के हादसे सामने आते रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर जवानों में इस तरह की हिंसक प्रवृत्ति जन्म कैसे ले लेती है जो वे अपने ही साथियों के हत्यारे बन जाते हैं। इस कारण की पड़ताल के लिए सीआरपीएफ ने एक ड्राइव चलाई थीए जिसमें जवानों से बात की गई। बातचीत में सामने आया कि दूरदराज के क्षेत्रों में तैनातीए लंबे समय से परिवार से दूरीए त्योहारों के समय अपनों की याद। ऐसी तमाम वजहें हैं जो जवानों को ऐसा कदम उठाने पर मजबूर कर देती हैं। जवानों को ऐसे हालात से बचाने के लिए विभिन्न उपायों की खोज की जा रही है। हालांकि अभी बहुत बेहतर उपाय मिल नहीं सके हैं। हथियारों की आसानी से मौजूदगी इन मामलों का सबसे घातक पहलू है। सभी पैरामिलिट्री फोर्स के जवान हैं और उनके पास हथियार भी हैं। ऐसे में वह खुद को या अन्य साथियों को गोली मार देते हैं। आमतौर पर आत्महत्या की प्रवृत्ति उन जवानों में सर्वाधिक देखी जाती है जो सीमा पर पहरा देते हैं या जोखिम भरे क्षेत्रों में काम करते हैं। अक्सर इन कार्यों में जवानों को अपनी जान भी गंवानी पड़ती है। आंकड़ों पर गौर करें तो भारत.पाक सीमा पर गोलीबारीए आतंकवादी और उग्रवादी गतिविधियों के कारण पिछले तीन वर्षों में सुरक्षा बलों के तकरीबन चार सौ से अधिक जवानों ने जान गंवाई है। इनमें सबसे अधिक जवान सीमा सुरक्षा बल ;बीएसएफद्ध के शहीद हुए हैं। इस बल ने 2015 से 2017 के दरम्यान 167 जवानों को खोया है। अपने साथी जवानों की शहादत को देख कर अन्य जवानों का विचलित होना स्वाभाविक है। मनोवैज्ञानिकों की मानें तो इनमें से कुछ जवान अवसाद में चले जाते हैं। गृह मंत्रालय ने एक रिपोर्ट में जवानों की आत्महत्या और अवसाद के कई कारण गिनाए थेए जिसकी वजह से पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न अर्धसैनिक बलों के चार सौ से अधिक जवानों ने आत्महत्या की और साथ ही अपने साढ़े तीन दर्जन से अधिक साथियों को निशाना बनाया। ध्यान दें तो आत्महत्या और साथियों को निशाना बनाने के अलावा बड़ी संख्या जवान नौकरी भी छोड़ रहे हैं। इसका मतलब साफ है कि जवान अपनी नौकरी की सेवा शर्तों को लेकर बहुत संतुष्ट नहीं हैं। सुरक्षा बलों में उच्चाधिकारियों को ऐसे मामलों पर गंभीरता से विचार करना ही होगा क्योंकि अगर वह ऐसी हरकतें करने लगे तो उससे सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। विषम परिस्थितियों में काम कर रहे जवानों के लिए अनुकूल वातावरण बनाना आवश्यक है क्योंकि काम का बोझए परिजनों से दूरीए सुविधाओं तथा मनोरंजन का अभाव जवानों में तनाव का कारण बन रहे हंै। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को कुछ ऐसे कार्यक्रम करने चाहिए जिससे जवानों को मानसिक तनाव दूर करने में मदद मिल सके। इसके लिए योग काफी मुफीद साबित हो सकता है। आज के समय में योग केवल सेना ही नहीं बल्कि अर्धसैनिक बलों की गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण अंग बनता जा रहा है। बोझ से दबे जवानों को छुट्टी देने की प्रक्रिया को भी सरल बनाना जरूरी है। इसके अलावा यूनिटों में इस प्रकार का माहौल बनाया जाए कि जवानों को घर जैसा वातावरण लगे और वे अकेलापन महसूस न करे। इतना ही नहीं समय.समय पर जवानों का मेडिकल चेकअप करवाया जाए ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। आमतौर पर अर्धसैनिक बलों के उच्चाधिकारी यह दलील देते हैं कि जवानों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति का मूल कारण उनका पारिवारिक तनाव हैए न कि नौकरी के दौरान उपजने वाला मानसिक दबाव। इसमें कोई दो राय नहीं कि जवानों के आत्महत्या करने और नौकरी छोड़ने के पीछे पारिवारिक तनाव बड़ा कारण है। लेकिन दूसरे कारण भी हैं जो जवानों को विचलित करते रहते हैं। सच तो यह है कि नौकरी की कठिन सेवा शर्तें भी जवानों की परेशानी और आत्महत्या की बड़ी वजह है। कुछ वर्षों से सेना द्वारा नौकरी की सेवा.शर्ते एवं वेतन में व्याप्त विसंगतियों को लेकर सवाल उठाया जाता रहा है। कठिन सेवा शर्तें कई किस्म की परेशानियां खड़ी कर रही हैं।

 

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