सौहार्द्र की परीक्षा से गुजरता उत्तर प्रदेश
-निर्मल रानी-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
देश के सबसे बड़े व राजनैतिक एतबार से सबसे महत्वपूर्ण समझे जाने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में जैसे जैसे विधान सभा के आम चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है,यहां न केवल चुनावी तैयारियों से संबंधित सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं बल्कि समाज को ध्रुवीकृत किये जाने का काम भी शुरू हो चुका है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी वैसे तो लगभग सभी चुनावों में राम मंदिर के मुद्दे को आगे रख कर वोट हासिल करती रही,इस बार भी पार्टी द्वारा राम मंदिर निर्माण के श्रेय के नाम पर वोट मांगा जा सकता है। परन्तु मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ का ‘हिंदुत्व ‘ राम मंदिर तक ही सीमित नहीं नजर आता। बल्कि इनकी राजनीति का दारोमदार ही मुसलमानों के प्रति न केवल अविश्वास बल्कि नफरत के माध्यम से स्थाई रूप से सांप्रदायिकतावादी राजनीति करना प्रतीत होता है। इन दिनों राज्य में इस तरह की अनेक ऐसी घटनाएं घटित हो रही हैं जो योगी सरकार के मुसलमानों के प्रति रवैये को दर्शाती हैं। साफ तौर से ऐसा लग रहा है कि हिंदुत्व के नाम पर सत्ता के शीर्ष तक पहुँचने के सफल प्रयोग से प्रेरित होकर बहुसंख्यवाद की अतिवादी राजनीति करने के लिए योगी ने भाजपा से भी अधिक ‘उग्र हिंदुत्व’ के रास्ते पर चलने का फैसला कर लिया है।
उदाहरण के तौर पर गत 17 मई को बाराबंकी जिले की रामस्नेही घाट में तहसील परिसर में निर्मित कथित तौर पर लगभग सौ वर्ष पुरानी ‘गरीब नवाज मस्जिद’ के नाम से प्रसिद्ध एक मस्जिद को मध्यरात्रि में प्रशासन द्वारा बुलडोजर चला कर ध्वस्त कर दिया गया। इस मस्जिद को ‘तहसील वाली मस्जिद’ भी कहा जाता था। जिला प्रशासन ने इसे ‘अवैध निर्माण’ बताकर बुलडोजर से गिरा दिया। यह मस्जिद 1968 से उत्तर प्रदेश राज्य वक्फ बोर्ड की संपत्ति के रूप में दर्ज है। इतना ही नहीं बल्कि उससे भी पहले वर्ष 1959 से मस्जिद का बिजली का कनेक्शन मौजूद है। जबकि मस्जिद के समीप नए तहसील परिसर का निर्माण 1992 में हुआ। और इसके बाद इस मस्जिद के सामने एसडीएम आवास का निर्माण कराया गया। इससे पूर्व पुराना तहसील भवन इसी मस्जिद भवन के पीछे की ओर था। स्थानीय लोग बताते हैं कि योगी सरकार से पहले प्रशासन के किसी भी अधिकारी या कर्मचारी को इस मस्जिद से कोई तकलीफ नहीं थी। राज्य सुन्नी वक़्फ बोर्ड के चेयरमैन जफर अहमद फारूक़ी साफ तौर से कहते हैं कि ष् मस्जिद को गिराया जाना स्थानीय प्रशासन की हठधर्मिता के सिवा कुछ भी नहीं है। मस्जिद के प्रबंधक भी कहते हैं कि मस्जिद को लेकर आज तक कभी कोई विवाद ही नहीं हुआ उसके बावजूद प्रशासन ने बुलडोजर चला कर मस्जिद भवन ध्वस्त कर दिया।
उपरोक्त प्रकरण से जुड़ी एक और चैंकाने वाली खबर यह भी है कि इस मस्जिद को ढहाए जाने का आदेश जिस प्रशासनिक अधिकारी व तत्कालीन ज्वाइंट मैजिस्ट्रेट दिव्यांशु पटेल द्वारा जारी किया गया वह चूँकि एक प्रशिक्षु प्रशासनिक अधिकारी था लिहाजा उसे अपनी प्रशिक्षण अवधि में इस प्रकार का आदेश जारी करने का कोई अधिकार ही नहीं था। सोचा जा सकता है कि जो अधिकारी अपने प्रशिक्षण काल में ही ऐसी वैमनस्य पूर्ण मनोभावना से ग्रसित है उससे उसके पूरे सेवाकाल के दौरान सौहार्द्र पूर्ण व निष्पक्ष फैसलों की क्या उम्मीद की जा सकती है।फिलहाल सरकार ने दिव्यांशु पटेल को सीडीओ के रूप में उन्नाव स्थानांतरित कर दिया है। एक तरफ जहां समाजवादी पार्टी,कांग्रेस,भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी व भीम पार्टी जैसे व अन्य राजनैतिक दलों के लोग सरकार के इस विद्वेष पूर्ण कदम का विरोध कर रहे हैं वहीँ सरकार ने मस्जिद की जगह को समतल बनाकर वहां ‘स्वतंत्रता संग्राम स्मारक बाल उद्यान’ के नाम का एक उद्घाटन पत्थर लगा दिया गया है तथा 3 जून 2021 की तारीख अंकित किये इस पत्थर पर स्थानीय विधायक सतीश चंद्र शर्मा भाजपा विधायक,दरियाबाद तथा मुख्य विकास अधिकारी श्रीमती एकता सिंह के नाम उदघाटनकर्ताओं के रूप में अंकित किये गए हैं।
योगी राज में सत्ता के मुसलमानों के प्रति बढ़ते अविश्वास की दूसरी बड़ी घटना योगी के अपने शहर गोरखपुर व गोरक्षनाथपीठ से ही जुड़ी है। यहां गोरक्षनाथ पीठ के दक्षिणी छोर पर रहने वाले कथित तौर पर लगभग 11 मुस्लिम परिवारों को उनके पुश्तैनी घरों से बेदखल किये जाने का समाचार है। इन सभी परिवारों के सदस्यों से बाकायदा एक कथित सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कराया गया है जिसकी भाषा इस प्रकार है -’ गोरख नाथ मंदिर परिक्षेत्र में सुरक्षा के दृष्टिगत पुलिस बल की तैनाती हेतु शासन के निर्णय क्रम में गोरख नाथ मंदिर के दक्षिणी पूर्वी कोने पर ग्राम पुराना गोरखपुर तप्पा कस्बा परगना हवेली तहसील सदर,जनपद गोरखपुर स्थित हम निम्नांकित व्यक्ति अपनी भूमि व भवन को सरकार के पक्ष में हस्तांतरित करने के लिए सहमत हैं। हम लोगों को कोई आपत्ति नहीं है। सहमति की दशा में हम लोगों के हस्ताक्षर नीचे अंकित हैं। ‘ इस भाषा के नीचे उन मुसलमान गृह स्वामियों व उनके अन्य सदस्यों के हस्ताक्षर अंकित हैं। हस्ताक्षरकर्ताओं में से कई लोगों का कहना है कि प्रशासन द्वारा दबाव डालकर उनसे हस्ताक्षर कराए गए हैं। अपनी खुशी से अपने पूर्वजों की जगह आखिर खुशी खुशी कौन छोड़ता है ? परन्तु प्रशासन इसे आपसी सहमति का मामला तो बता ही रहा है साथ ही इस मामले को उठाने की मीडिया की कोशिशों को ‘अफवाह फैलाने का प्रयास’ भी बता रहा है। सोचने का विषय यह भी है कि जो परिवार दशकों से वहां रहते आ रहे थे और आज तक कोई किसी की सुरक्षा के लिए खतरा नहीं बना, आज योगी राज में ही उन्हें सुरक्षा के लिए खतरा क्यों और कैसे समझा जाने लगा ?
इसके अलावा उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों मॉब लिंचिंग की भी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। कभी मथुरा में गाय के नाम पर मुस्लिम व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है तो कभी गाजियाबाद में एक मुस्लिम युवक को भीड़ द्वारा बुरी तरह से मार पीट करने व उससे जयश्रीराम बुलवाने की खबर आती है,कभी मुरादाबाद तो कभी बरेली से कभी जालौन कभी रायबरेली व कभी मऊ से मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोगों पर जुल्म किये जाने की घटनाएं लगातार आती रही हैं। वैसे भी सत्ता संभालते ही जिस तरह गोरखपुर के लोकप्रिय डॉक्टर कफील खान को गलत तरीके से लंबे समय तक जेल में रखा गया और आज तक उन्हें बहाल नहीं किया जा सका, व कई शहरों व स्टेशंस के नाम बदले गए इस तरह की घटनाओं ने शुरू में ही यह संकेत दे दिया था कि योगी सरकार किस एजेंडे पर चलने वाली है। बहरहाल,सत्ता के लिए इसी तरह की विभाजनकारी नीतियों पर चलना कुछ सांप्रदायिकतावादी नेताओं की मजबूरी तो हो सकती है परन्तु सौहार्द्र की परीक्षा से गुजरते उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक एकता व सौहार्द्र बनाए रखना और देश की एकता व अखंडता की खातिर सत्ता के इस निकृष्ट एजेंडे से बचना राज्य की जनता की ही जिम्मेदारी है।
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