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लेख - December 23, 2022

एक गंभीर सवाल : श्रद्धा पर चोंटः चढ़ावे की राशि का दुरूपयोग क्यों….?

-ओमप्रकाश मेहता-

-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-

देश के श्रद्धा के केन्द्र द्वादश ज्योर्तिलिंगों में प्रमुख अवंतिका (उपजयिनी) के महाकालेश्वर मंदिर के सरकारी नियंत्रणकर्ताओं ने कुछ ऐसा कृत्य किया है जिसने भूतभावन महाकाल के भक्तों की श्रद्धा को गहरी चोंट पहुंची है भगवान के चढ़ावें में प्राप्त होने वाली राशि भगवान श्री के मंदिर व श्रद्धालुओं की सुविधा के कार्यों के लिए होती है किंतु मंदिरन्यास के सरकारी नियंत्रकों ने इस राशि का एक बड़ा भाग पूर्व राष्ट्रपति को स्वागत कार्यों पर सड़कों की दुरूस्ती पर खर्च कर दिया क्या मंदिर प्रशासन के इस कृत्य से भक्तों की श्रद्धा-भावना को ठेंस नहीं पहुंचेगी? क्या इस कृत्य से मंदिर की गरिमा प्रभावित नहीं होगी? इसका जवाब न तो आज धार्मिक आस्था से ओतप्रोत सत्तारूढ़ पार्टी के पास है न सरकार के पास और न ही मंदिर के संचालनकर्ता ट्रस्ट के पास? आखिर भक्तगण इस प्रश्न का जवाब किससे मांगने जाए?
मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत राज्य विधानसभा में भी बुधवार को यह सवाल पूछा गया जिस पर सरकार का कोई समाधान कारक जवाब नहीं था पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद विगत 29 मई 2022 को भगवान महाकालेश्वर के दर्शन हेतु उज्जैन पधारे थे उनके लिए लाल कालीन बिछाने तथा आवभगत से जुड़े अन्य कार्यों पर मंदिर न्यास ने मंदिर चढ़ावे के बतौर प्राप्त राशि में से करीब 61 लाख रूपए खर्च कर दिए इसमें से दस लाख रूपए सिर्फ लाल कालीन बिछाने पर खर्च किए गए साथ ही ढाई लाख रूपए के फूलों से मंदिर की सजावट की गई। मंदिर के नन्दी हाॅल से निर्गम द्वार तक जिसकी दूरी मात्र कुछ फूट होगी उसकी सजवाट पर 40 लाख रूपए खर्च किए गए यही नहीं नन्दी हाॅल के पीतल के स्तंभों को चमकाने पर पांच लाख गर्भगृह परिक्रमा व अन्य स्थानों पर फूलों की सजवाट पर ढाई लाख खर्च किए गए कवर जूट चटाई पर सवा 5 लाख खर्च किए गए। यह तो मंदिर परिसर में ही खर्च किया गया किंतु मंदिर से काफी दूर पानी की टंकी से त्रिवेणी संग्रहालय तक की सड़क का पुनरोद्धार भी मंदिर चढ़ावे की एक करोड़ तीन लाख रूपए की राशि से कराया गया मंदिर परिक्षेत्र की ‘स्मार्ट सिटी’ परियोजना की पूर्ति में मंदिर के सामने आने वाली 22 दूकानों की मुआवजा राशि दस करोड़ रूपए भी चढ़ावे की राशि से दी गई।
इस प्रकार सरकारी मंदिर संचालन समिति श्रद्धाभाव से भक्तों द्वारा मंदिर को चढ़ावे के रूप में दी जा रही अपार धनराशि को उपयोग कहां-कहां व किस लिए कर रही है यह इस उदाहरण से स्पष्ट हो गया जब जिला व संभाग प्रमुख होने के नाते शीर्ष सरकारी अफसरों को इन गैर धार्मिक कार्योंक पर राशि सरकारी मद से खर्च करना चाहिए थी किंतु चूंकि वे मंदिर के नियंत्रक है इसलिए उन्होंने मंदिर के चढ़ावे की राशि भी सरकारी राशि की तरह गैर जरूरी कार्यों पर खर्च कर दी और अब उनसे इस अनैतिक कार्य के लिए जवाब भी नहीं मांगा जा रहा है?
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भूत-भावना महाकाल देश के प्रमुख द्वादश ज्योर्तिलिंगों में प्रमुख स्थान रखते है तथा हाल ही में मंदिर व उसके आसपास के क्षेत्र को ‘‘महाकाल लोक’’ के रूप में सुसज्जित किया गया है यहां आकर प्रतिवर्ष करीब पांच करोड़ भक्त आकर दर्शन करते है जिनमें विदेशी भी शामिल है और मंदिर को चढ़ावे के रूप में प्रतिवर्ष करीब दस से पन्द्रह करोड़ रूपये की राशि प्राप्त होती है जिसके मंदिर की साज-सज्जा व निर्माण पर खर्च करने का प्रावधान है लम्बे अर्से से मंदिर के संचालक न्यास पर राज्य सरकार (जिला प्रशासन) का कब्जा है जबकि पहले इस मंदिर के संचालक ट्रस्टी विद्वान व पंडित हुआ करते थे। इस प्रकार कुल मिलाकर अब राज्य सरकार व आस्थावान मुख्यमंत्री जी को इस मंदिर की कुव्यवस्थाओं पर तत्काल ध्यान देना चाहिए वर्ना यही चलन इस धार्मिक नगरी के अन्य मंदिरों में भी शुरू हो जाएगा?

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