ओजोन परत संरक्षण के लिए अनिवार्य प्रकृति तादात्म्यता
-राकेश कुमार वर्मा-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र से जो ऊर्जा उत्पन्न करता है उसका छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है। जिसमें से 15 प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, 30 प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को नियंत्रित करता है। सूर्य से आने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों की वजह से ओजोन परत का निर्माण होता है। हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में ओजोन ही वह तत्व है जो कि अल्ट्रावायलेट किरणों को अवशोषित कर रहा है, अतएव यह हमारा सुरक्षा कवच है। प्रकृति से तादात्म्य के अभाव, कारखानों से निकलने वाले खतरनाक रसायन सहित हमारी अंधाधुंध शोषणकारी प्रवृत्तियों के चलते सुरक्षा कवच कही जाने वाली ओजोन परत आज खतरे में है, जिसके प्रति जागरुकता को लेकर प्रतिवर्ष 16 सितंबर को हम ओजोन दिवस मनाते हैं।
पृथ्वी की सतह से करीब 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर ओजोन गैस की एक पतली परत पाई जाती है, जिसे ओजोन लेयर कहते हैं। ओजोन परत एक रंगहीन गैस का स्तर है जो मुख्य रूप से पृथ्वी के समतापमंडल में पाई जाती है, जो सूर्य और धरती के बीच एक सुरक्षात्मक परत बनाती है और सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करती है। ओजोन लेयर के बिगड़ने से जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है। जलवायु परिवर्तन से बढ़ते तापमान के कारण बढ़ी हुई पराबैगनी किरणें आर्कटिक क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर को तीव्र गति से पिघलने का कारक बनती हैं। परिणामतः समुद्री जलस्तर व़द्धि और समुद्र के प्रकाश क्षेत्र में कमी सहित त्वचा कैंसर, वनस्पति जगत क्षति जैसे दुष्परिणाम हमारे सामने हैं।
ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण वैज्ञानिक फरमान, गर्दिनेर और शंक्लिन द्वारा वर्ष 1985 में प्रकाशित ‘ओजोन छिद्र की खोज’ हमारे लिए एक आघात थी। मानव निर्मित रासायनिक यौगिक, जिसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) कहा जाता है, स्ट्रैटोस्फियर में ओजोन की सांद्रता में कमी का कारण बना था। इसके बाद साल 1987 में सीएफसी के उत्पादन और खपत की जांच के लिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को अपनाया गया, जिसके तहत प्रतिकूल रासायनिक यौगिक को प्रतिबंधित कर दिया गया। उल्लेखनीय है कि क्लोरोफ्लोरोकार्बन का इस्तेमाल एअरोसोल स्प्रे, फोम, सॉल्वेंट और रेफ्रिजरेंट्स बनाने में होता है।
क्लोरोफ्लोरो कार्बन को थॉमस मिद्ग्ले के द्वारा 1920 के दशक में खोजा गया। 1980 के दशक के पहले इनका इस्तेमाल वातानुकूलन इकाइयों, एयरोसोल स्प्रे प्रोपेलेंट के रूप में और नाजुक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की सफाई में किया जाता था। ये कुछ रासायनिक प्रक्रियाओं के उप-उत्पादों के रूप में भी प्रकट होते हैं। वैज्ञानिक विश्लेषण बताते हैं कि भूमि की सतह से क्लोरोफ्लोरो कार्बन को ऊपरी वायुमंडल में पहुँचने में औसतन 15 साल लग जाते हैं, जहॉं यह लगभग एक सदी के लिए रह सकता है, इस अवधि के दौरान यह एक सौ हजार ओजोन अणुओं को नष्ट कर सकता है।
70 के दशक के बाद से पृथ्वी के समतापमंडल में ओजोन की कुल मात्रा में प्रति दशक लगभग चार प्रतिशत की धीमी लेकिन स्थिर कमी आ रही है । समतापमंडल में ओजोन की कुल मात्रा का निर्धारण प्रकाश रसायनिक उत्पादन और पुनर्संयोजन के बीच एक संतुलन के द्वारा होता है। इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन के तीनों अपररूप ओजोन-ऑक्सीजन चक्र में शामिल हैं। ऑक्सीजन परमाणु, ऑक्सीजन गैस और ओजोन गैस प्रमुख कारक हैं। ओजोन का निर्माण समताप मंडल में तब होता है जब ऑक्सीजन के अणु 240 एनएम से छोटे तरंगदैर्ध्य के एक पराबैंगनी फोटोन को अवशोषित करके प्रकाश अपघटित करते हैं। यह ऑक्सीजन के दो परमाणुओं का निर्माण करता है। अब परमाण्विक ऑक्सीजन व्2 के साथ संयोजित होकर व्3 बनाती है। ओजोन अणु 310 और 200 दउ, के बीच के यूवी प्रकाश को अवशोषित कर लेता है, जिससे ओजोन विभाजित होकर एक ऑक्सीजन परमाणु और एक व्2 अणु बनाता है। अब ऑक्सीजन परमाणु ऑक्सीजन अणु के साथ संयोजित होकर फिर से ओजोन अणु बनाता है। यह एक सतत प्रक्रिया है जो तब चलती रहती है जब एक ऑक्सीजन परमाणु एक ओजोन अणु के साथ ‘पुनर्संयोजित’ होकर दो व्2 अणु नही बना लेता।
ओजोन को मुक्त मूलक उत्प्रेरक की एक संख्या के द्वारा नष्ट किया जा सकता है, इसमें से सबसे महत्वपूर्ण है हाइड्रोक्सिल मूलक ,नाइट्रिक ऑक्साइड मूलक और परमाणु क्लोरीन और ब्रोमीन । समतापमंडल में इसकी प्राकृतिक उत्पत्ति होती है लेकिन मानव की क्रियाविधियों के फलस्वरूप ऑक्सीजन क्लोरीन और ब्रोमीन में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है।
वर्ष 1985 में, प्रमुख क्लोरोफ्लोरो कार्बन उत्पादकों सहित 20 राष्ट्रों ने वियना कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए जिसमें ओजोन रिक्तिकरण पदार्थों के अंतरराष्ट्रीय नियमों पर एक रूपरेखा तैयार की गई। वर्ष 1987 में, 43 राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए। इस बीच, हेलोकर्बन उद्योग ने अपनी स्थिति स्थानांतरित की और सी एफ सी के उत्पादन को सीमित करने के लिए एक प्रोटोकॉल का समर्थन करना शुरू कर दिया। मॉन्ट्रियल में, सहभागी क्लोरोफ्लोरो कार्बन के उत्पादन को 1986 के स्तर पर फ्रीज करने के लिए सहमत हो गए और 1999 तक उत्पादन को 50 फीसदी तक कम कर दिया। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को अपनाने और उसे प्रबल बनाने के बाद से सीएफसी के उत्सर्जन में कमी आई है, सबसे महत्वपूर्ण यौगिकों का वातावारानीय सांद्रण कम हो गया है। वैज्ञानिकों से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण में बताया गया है कि वर्ष 1980 के स्तर तक ओजोन परत की क्षतिपूर्ति करने के लिए वर्ष 2068 तक का समय लग सकता है।
हाल ही में रीब वैज्ञानिक ने बताया कि सूर्य की घातक अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाने वाली ओजोन परत का छेद भरने लगा है और आर्कटिक क्षेत्र के ऊपर बना 10 लाख वर्ग किलोमीटर की परिधि वाला ओजोन छेद बंद हो गया है। सीएएमएस ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि वसंत में अंटार्कटिक के ऊपर विकसित होना वाला ओजोन छिद्र एक वार्षिक घटना है, उत्तरी गोलार्ध में इस तरह के मजबूत ओजोन क्षरण के लिए स्थितियां सामान्य नहीं हैं। तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण ऐसा हुआ है। ‘पोलर वोर्टक्स’ इसकी प्रमुख वजह है जो ध्रुवीय क्षेत्रों में ठंडी हवा लाने और ओजोन परत के बाद के उपचार के लिए जिम्मेदार हैं।
ओजोन परत के संरक्षण के प्रति हमें पर्यावरण ढॉंचे को बनाये रखने के लिए अन्य घटकों के साथ ही प्रकृति के साथ संयमित जीवन शैली अपनाने की जरूरत है। इसके साथ ही पौधरोपण की वरीयता, एयरकंडीशन, रैफ्रीजरेटर जैसे भौतिक सुविधाओं पर निर्भरता कम करना होगा। प्लास्टिक और रबर से बने टायरों को जलाने पर प्रतिबंध लगाना होगा। एयरोसोल और प्लास्टिक कैंटेनर मुक्त सौंदर्य प्रसाधन, क्लोरोफ्लोरोकार्बन मुक्त स्प्रे जैसे उत्पादों के उपयोग से बचना होगा। कृषि क्षेत्र में पर्यावरण अनुकूल उर्वरकों का ध्यान रखना होगा। कारखानों के हानिकारक तत्वों का उन्मूलन(डीकंपोज),सार्वजनिक परिवहन कारपूलिंग, और सौर व विद्युतचलित वाहनों के उपयोग पर बल देना होगा।
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