Home लेख नया साल, कैसे कम हो मानव जीवन पर सवाल
लेख - January 1, 2022

नया साल, कैसे कम हो मानव जीवन पर सवाल

-ऋतुपर्ण दवे-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

नए वर्ष 2022 में कोरोना के साथ विकास से पैदा प्रदूषण भी मानव अस्तित्व के लिए बड़ी चुनौती बनेगा। तापमान बढ़ने के सिलसिले को यदि इस बरस भी गंभीरता से लिया गया तो बस आठ साल ही बचे हैं, जब धरती का बुखार का लाइलाज होगा! साल 2022 का यह सबसे बड़ा सवाल है? सबको पता है 2030 से 2052 तक धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ेगा जो पर्यावरण खातिर खासा प्रतिकूल होगा। शोधकर्ता बताते हैं कि वाहनों, उद्योगों, कारखानों से निकली कॉर्बन डाईऑक्साइड से पादप, फंफूदी पराग, बीजाणुओं का उत्पादन बढ़ता है जो हवा संग हमारे शरीर में पहुंच अस्थमा, राइनाइटिस, सीओपीडी, स्किन कैंसर एवं अन्य तमाम एलर्जी सरीखी घातक बीमारियों की वजह बनता है। हमने जेट रफ्तार से तरक्की तो कर ली लेकिन इन सबसे भी तेज सुपरसोनिक रफ्तार से अपने विनाश की कहानी भी रच डाली। खुद की बेहतरी की आड़ में हमने प्रकृति को लगातार विकृत किया। महज चंद वर्षों में घोरतम अन्याय करते हुए यह तक भूल बैठे कि जिसे हम तहस-नहस कर रहे हैं, उसे बनने में लाखों बरस लगे थे!

ग्रीन हाउस गैसें कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, हैलोकार्बन का भारी उत्सर्जन ही जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण है। यह भी सच है कि तीन लाख साल पहले धरती पर नौ मानव प्रजातियों की उत्पत्ति हुईं थी। उनमें अब हम अकेले बचे हैं। अपनी सुख, सुविधाओं के लिए लाखों वर्ष पुराने प्राकृतिक स्वरूपों, संसाधनों को इस कदर रौंदा कि नदियां समय से पहले सूखने लगीं, जंगल पेड़ों बिन वीरान हो गए, पहाड़ टूटकर इमारतों खातिर गिट्टियां में तब्दील हुए, पानी से लबालब धरती की कोख सूख-सूख कर पाताल छूने को मजबूर हुई और प्राणदाता वायुमण्डल प्राण विरोधी जहरीली फिजाओं से भर गया। प्रकृति के संग भी तो विकास संभव था, लेकिन तमाम तरह की प्रतिस्पर्धाओं की होड़ में हम लगातार भूलते गए और अब भी नहीं चेत रहे हैं।

बढ़ता वायुमंडलीय तापमान असहनीय होता जा रहा है। उद्योगों, कल कारखानों से उत्सर्जित दूषित गैसें बुरी तरह सांसों को लीलने खातिर अनेकों समस्याएं पैदा कर रही हैं। आंकड़े देखें तो बस 10 बरसों में दुनिया भर में जीवाश्म ईधन यानी लगभग 65 करोड़ वर्ष पूर्व जीवों के जलने व उच्च दाब और ताप में दबने से बना कोयला, पेट्रोल, डीजल, मिट्टी के तेल आदि की जितनी खपत की, वह वातावरण को बिगाड़ने खातिर बहुत ज्यादा है। जीवाश्म ईंधन व दूसरी औद्योगिक प्रक्रियाओं के चलते विश्व में कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन में 4,578.35 मिलियन मीट्रिक टन की बढ़ोत्तरी क्या हुई कि वायुमंडल गर्माता मिजाज बेकाबू हो रहा है। यही तो ग्लोबल वार्मिंग है, उसका कारण है।

प्राकृतिक आपदाओं से बीते केवल दो वर्षों में दुनिया भर में बेघर हुए लोगों की संख्या 10 बरसों में सबसे ज्यादा रही। जहां साढ़े पांच करोड़ लोग अपने ही देशों में विस्थापित हुए, वहीं ढाई करोड़ से ज्यादा दूसरे देशों में मजबूरन शरणागत हुए। चीन के हेन्नान में भी एक हजार साल की बारिश का रिकॉर्ड टूटा। बड़ी संख्या में लोग मरे, सड़कें हफ्तों पानी से लबालब रहीं। यूरोप में दो दिन में इतना पानी बरसा, जितना दो महीने में बरसता। नदियों के तट टूट गए। पानी गांवों और शहरों में जा घुसा। जर्मनी, बेल्जियम में सैकड़ों मौतें हुईं। सदियों पुराने आबाद गांव एक ही रात में बह गए। भारत में भी महाराष्ट्र, उप्र, उत्तराखण्ड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, मप्र, बिहार, झारखण्ड प.बंगाल, सहित दक्षिणी राज्यों कुल मिलाकर पूरे देश का काफी बुरा हाल रहा। हर कहीं से बारिश की तबाही खौफनाक तस्वीरों ने जब-तब खूब डराया।

अमेरिका के वाशिंगटन और कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में हीट डोम बनने से हवा एक जगह क्या फंसी कि तापमान 49.6 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा। अमेरिका के ऑरेगन जंगल की आग ने दो हफ्ते में ही लॉस एंजेलेस जितना इलाका राख कर दिया। सुलगते जंगलों की जलती लकड़ियों का धुंआ न्यूयार्क तक सांसों पर भारी पड़ा। ब्राजील का मध्यवर्ती इलाका भी शताब्दी के सबसे सूखे की चपेट में आ गया और अमेजन के जंगलों के अस्तित्व पर आन पड़ी।

पर्यावरणीय असंतुलन से पहले ही बेलगाम बारिश और तपिश ने प्राकृतिक आपदाएं बढ़ा रखी हैं। आगे कितना कहर ढाएंगी, सोचकर सिहरन होती है। चिन्तातुर पूरी दुनिया बैठकों और विचार विमर्श में मशगूल है, नतीजा कुछ निकलता नहीं, उल्टा सब मेरा प्रदूषण-तेरा प्रदूषण में ही उलझ जाते हैं। जलवायु परिवर्तन है क्या? इसकी समझ अभी भी कई लोगों के लिए आसान होकर भी आसान नहीं है। बिना लाग लपेट बस इतना समझ लें तो काफी होगा कि दुनिया में औद्योगिक क्रान्ति की शुरुआत 1850 से 1900 के बीच हुई। उस वक्त धरती का जितना तापमान था, उसे ही मानक इकाई मानकर स्थिर रखना है ताकि पर्यवारण भी स्थिर रहे। बस यही जरा सी नासमझी इंसान के वजूद पर भारी पड़ रही है। हमने विनाश का ट्रेलर देख लिया है, सवाल बस इतना कि आखिर हम चेतेंगे कब?

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

मुकेश पटेल ऑडिटोरियम में मिथिबाई क्षितिज का कोंटिन्जेंट लीडर्स ghar 2024

मुंबई l( अशोका एक्सप्रेस) मुकेश पटेल ऑडिटोरियम में अपने बहुप्रतीक्षित कोंटिन्जेंट लीडर्स म…