जब तक हिंदुत्व का एजेंडा थक नहीं जाता
-सुधीश पचैरी-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
सन इक्कीस ने तीन चोट मारी है-एक, कोरोना की दूसरी लहर की चोट, दूसरी, किसान आंदोलन की चोट और तीसरी ममता की जीत की चोट! इससे ‘मोदी है तो मुमकिन है’ वाली धमक कुछ कमजोर हुई नजर आती है और विपक्ष की धड़क कुछ अधिक खुली नजर आती है! टीवी की हर बहस में भाजपा रक्षात्मक दिखती है और यहीं उसका ‘वाटरलू’ बनता महसूस होता है!
इन दिनों कुछ नए विकल्पी चेहरे भी नजर आने लगे हैं- कहीं ममता जी मोदी के विकल्प की तरह नजर आती हैं, तो कहीं राहुल जी को पेश किया जाता है, तो कहीं पवार साहब के चेहरे को विकल्प बताया जाता है, लेकिन बाईस में तो ये बातें ‘मनमोदक’ ही अधिक लगती हैं! यों अभी एक बार फिर कोरोना का, ओमिक्रॉन का यानी तीसरी लहर का रोना होना है! मोदी जी बूस्टर की बात कर रहे हैं, तो विपक्ष और कुछ नहीं तो सिर्फ श्रेय लूटने के लिए अपनी बगलें बजाता रहेगा कि देखा, पहले हमने मांग की थी और प्रधानमंत्री को हमारी मांग माननी पड़ी!
सन इक्कीस ने जाते-जाते भारत के टीका अभियान के जरिये आम भारतीय के मन से कोरोना के पहले वाले डर को निकाल दिया है! बाईस में आदमी और निडर होगा और हमारी इकनॉमी भी डरी-मरी न रहेगी! इन दिनों विपक्ष की मांग कि रैली बंद करो, चुनाव स्थगित करो, नहीं तो ओमिक्रॉन आ जाएगा-हारने वालों की मांगें हैं! उत्तर प्रदेश को जीतने वालों की नहीं! तीसरा टीका यानी बूस्टर डोज और भी निर्भय कर देगा, इसलिए बाईस में कोरोना की करालता कम होगी! लेकिन सन इक्कीस वाली ‘हेट’ का ‘रेट’ बाईस में और बढ़ेगा!
संत कहेंगे कि धर्म संकट में है! जब-जब धर्म की हानि होती है, असुर अभिमानी बढ़ते हैं, तब-तब हमें धर्म रक्षा में तलवार उठानी होती है। जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है! उधर कोई मुस्लिम नेता कह उठेगा कि मुसलमान अपने साथ हुए जुल्मों को भूला नहीं है और एक दिन अल्लाह बदला लेगा! इंशा अल्लाह! कंपटीशन जारी रहना है! यों इसी बरस ‘क्रिप्टोकरेंसी’ की लीला होनी है, ‘5जी’ को आना है और ‘ऑनलाइन कल्चर’ बढ़नी है! एक ओर हाई-टेक रहना है, तो दूसरी ओर धर्मिक कट्टरता रहनी है! लेकिन इस उत्तर आधुनिक दौर में दोनों में कोई झगड़ा होता नहीं दिखता!
‘बेअदबी’ करने वाले सन बाईस में भी लिंच किए जाते रहेंगे और लिंच कर दिए गयों के लिए किसी के पास हमदर्दी का एक शब्द न होगा! न उदारवादी बोलेगा, न कोई मानवाधिकारवादी मुंह खोलेगा! सिर्फ कट्टरतावादी बोलेगा और बाकी सुनेंगे! तथाकथित सेक्युलर नेता ‘हिंदू’, ‘हिंदूवाद’ और ‘हिंदुत्ववाद’ में फर्क करते रहेंगे और जितना करेंगे, उतना ही हिंदुत्व बढ़ेगा! हिंदुत्व माने हिंदू भाव, हिंदुत्व माने ‘हिंदू पद पादशाही’, जो भारत में इतने दिन बाद आई! मोदी के साथ आई! इसे इतनी आसानी से कैसे खो जाने देगा औसत हिंदुत्ववादी!
हिंदुत्ववादी हुए बिना भी किसी आम हिंदू/ हिंदुत्ववादी के मन में घुसकर देखिए, तो आप जान पाएंगे कि एक आम हिंदू/ हिंदुत्ववादी कुछ-कुछ इसी तरह से सोचता है! इस हिंदू की लाख हंसी उड़ाओ, पिछड़ा कहो, अंधविश्वासी कहो-उसे मालूम है कि मोदी ने उसे क्या दिया है? न दिए पंद्रह लाख रुपये, हिंदू होने का गर्व दिया है! महंगाई है, तो कुछ कम खा लेंगे! कोरोना है तो क्या? हानि-लाभ जीवन-मरण यश-अपयश विधि हाथ! भ्रष्टाचार है, तो वह कब नहीं था?
लेकिन यह देश नहीं बिकने देंगे! यह देश नहीं पिटने देंगे! यह देश नहीं मिटने देंगे! कौन नहीं मिटने देगा? मोदी नहीं मिटने देगा और हम मोदी को नहीं मिटने देंगे! पिछले सात-आठ साल में यह ‘नैरेटिव’ नीचे तक बैठा दिया गया है, जो कहता है कि मोदी ही जरूरी! चाहे इसे चॉयस कहो या मजबूरी! ‘मोदी है तो मुमकिन है’ को इससे जोड़िए और नतीजा साफ! बाईस में योगी, तो चैबीस में मोदी! योगी चाहिए, तो मोदी चाहिए। मोदी चाहिए, तो योगी चाहिए! बुरा है, भला है, लेकिन अपना है! ऐसा जुगल जोड़ा है!
मोदी नहीं तो क्या होगा? हिंदू और हिंदुत्व कहां होगा? कैसे समझाऊं कि ऐसे ही अवचेतनियां सवाल आजकल अधिकांश हिंदू मनों को कोंचते है, जब मामला ‘अस्तित्व’ का होता है, जब मामला आर-पार का होता है! आप कितने ही ज्ञानी हों, कितने ही हार्वर्डी-ऑक्सफोर्डी हों, आम हिंदू की एक राष्ट्र को ‘ओन’ करने की स्पृहा को अंग्रेज दिमाग नहीं जान सकते, जिनने अपने राष्ट्र तो दमदार बनाए, लेकिन जिनको रौंदा, उनको न तब राष्ट्र बनने दिया, न अब बनने देते हैं!
यह स्पृहा साक्षात जीवन में अपने ‘पव्वे’य पावर की स्पृहा, हमेशा दबे-डरे रहने की जगह अपने को इस देश का मालिक मानने की आत्मविश्वास भरी उद्दाम इच्छा एक आम हिंदू में और भी ताकतवर बनने की कामना जगाती है! यह ‘नैरेटिव’ इसी तरह हिंदू चित्त को आत्मविश्वासी बनाता है! यह ताकत कौन दे सकता है? मोदी! यह ताकत कौन दे सकता है? योगी! ऐसे बुनियादी नैरेटिव के बीच कौन हरा सकता है मोदी को, योगी को? मोदी और योगी डबल इंजन की सरकार ही नहीं, डबल पावर जेनरेटर है! मोदी है तो सुरक्षित हैं, मोदी नहीं तो अरक्षित हैं!
मोदी डबल नैरेटिव देते हैं- एक है, ‘सबका साथ सबका विकास’ और दूसरा है, हिंदू प्रतीकों का आवाहन! इस विभक्ति के बावजूद एक अंग्रेजी पत्रकार ने कहा है कि मोदी तो ‘हिंदू लेफ्ट’ है…। यही वह नैरेटिव है, जो मोदी के हर काम, हर भाषण और हर लीला में दिखता है! लोग उनकी अति को भी सहते हैं, क्योंकि दुधारू गाय की दो लात भी अच्छी!
विपक्ष नहीं जानता कि ‘हिंदू राइट’ क्या हो सकता है, क्योंकि वह ‘हिंदूपन’ में ‘रहता’ ही नहीं! मोदी अपने आप में एक विकट नैरेटिव है, जो सन बाईस में तो रहना ही है, चैबीस में भी रहना है! जब तक हिंदुत्व का एजेंडा थक नहीं जाता, तब तक उसे रहना है! और अगर बाईस में यह नैरेटिव एकाध प्रतिशत चोटिल हो जाए, तो उसे और भी अधिक जोश से लौटना है, क्योंकि सदियों में पहली बार इस हिंदू नैरेटिव को सत्ता का पव्वा मिला है!
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