Home लेख विदेशी पैसा और हमारी संस्थाएं
लेख - January 4, 2022

विदेशी पैसा और हमारी संस्थाएं

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

भारत की हजारों संस्थाओं को मिलने वाले विदेशी पैसे पर कड़ी निगरानी अब शुरू हो गई है। विदेशों की मोटी मदद के दम पर चलने वाली संस्थाओं की संख्या भारत में 22,762 है। ये संस्थाएं समाज-सेवा का दावा करती हैं। विदेशी पैसे से चलने वाली इन संस्थाओं में कई शिक्षा-संस्थाओं, अस्पतालों, अनाथालयों, विधवा आश्रमों आदि के अलावा ऐसे संगठन भी चलते हैं, जो या तो कुछ नहीं करते या सेवा के नाम पर धर्म-परिवर्तन और छद्म राजनीति करते हैं। पिछले कई वर्षों से यह आवाज उठ रही थी कि इन सब संस्थाओं की जांच की जाए।

इन संस्थाओं का सरकार के साथ पंजीकरण अनिवार्य बना दिया गया था और इन्हें विदेशी पैसा लेने के पहले सरकार से अनुमति लेना जरूरी था। गृह मंत्रालय से इन्हें लाइसेंस लेना अनिवार्य है लेकिन इस साल लगभग 6 हजार संस्थाओं का पंजीकरण स्थगित कर दिया गया है। 18 हजार से ज्यादा संस्थाएं अभी पंजीकरण के लिए आवेदन करने वाली है। ऐसी 179 संस्थाओं का पंजीकरण रद्द हो गया है, जिनके हिसाब में गड़बड़ी पाई गई है या जो निष्क्रिय हैं या जिनकी गतिविधियां आपत्तिजनक मानी गई हैं। मदर टेरेसा की संस्था भी इनमें है। कई संस्थाओं के बैंक खाते भी बंद कर दिए गए हैं।

इस पर सरकार के विरुद्ध कई नेता और संगठन काफी शोर मचा रहे हैं। यह स्वाभाविक है। विपक्षी नेताओं को तो हर उस मुद्दे की तलाश रहती है, जिस पर वे कुछ शोर मचा सकें लेकिन समाजसेवी संगठनों की तो सचमुच मुसीबत हो गई है। उनके कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा है। अस्पतालों में इलाज बंद हो गया है। अनाथ बच्चों को खाने-पीने की समस्या हो गई है।

जिन संस्थाओं के विदेशी पैसे पर रोक लगी है और जिनका पंजीकरण रोका गया है, वे सिर्फ गैर-सरकारी संस्थाएं ही नहीं हैं। इन संस्थाओं पर लगी रोक को शुद्ध राजनीतिक और सांप्रदायिक कदम भी बताया जा सकता है। मदर टेरेसा की संस्थाओं पर रोक को भी इसी श्रेणी में रखा जा रहा है लेकिन जब यह मामला संसद में उठेगा तो सरकार को यह बताना पड़ेगा कि इन संस्थाओं पर रोक लगाने के ठोस कारण क्या हैं? ये संस्थाएं सिर्फ इस कारण विदेशी पैसे का दुरुपयोग नहीं कर सकतीं कि इनके साथ देश के बड़े-बड़े लोगों के नाम जुड़े हुए हैं।

सरकार ने विदेशी पैसे से चलने वाली इन संस्थाओं के काम-काज पर कड़ी निगरानी शुरब कर दी है, यह तो ठीक है लेकिन यह देखना भी उसका कर्तव्य है कि मरीजों, अनाथों, छात्रों और गरीबों का जीना दूभर न हो जाए। उनकी वैकल्पिक व्यवस्था भी जरबरी है। इन संस्थाओं पर निगरानी इसलिए भी रखनी जरूरी है कि कोई राष्ट्र या उसके नागरिक किसी पराए देश के लिए अपनी तिजोरियां प्रायः तभी खोलते हैं, जब उन्हें अपना कोई स्थूल या सूक्ष्म स्वार्थ सिद्ध करना होता है। क्या वह दिन भी कभी आएगा, जब हमारी सरकार की तरह हमारी सामाजिक संस्थाएं विदेशी पैसा लेना बंद कर देंगी?

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

मुकेश पटेल ऑडिटोरियम में मिथिबाई क्षितिज का कोंटिन्जेंट लीडर्स ghar 2024

मुंबई l( अशोका एक्सप्रेस) मुकेश पटेल ऑडिटोरियम में अपने बहुप्रतीक्षित कोंटिन्जेंट लीडर्स म…