भारत की अग्निपरीक्षा का समाधान केवल पंचशील में ही है३!
.ओमप्रकाशमेहता.
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे इस महायुद्ध के दौरान हमारा भारत भी एक अग्निपरीक्षा के दौर से गुजरने को मजबूर हैए यह अगिनपरीक्षा ऐसे नाजुक मौके पर भारत की भूमिका को लेकर हैए एक और हम जहां हमारे रूस के साथ मधुर सम्बंधों के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ में हुए मतदान से अपने आपको अलग रख रहे हैए वहीं दूसरी ओर संकट के इस दौर में यूक्रेन के राष्ट्रपति द्वारा हमसे मांगी जा रही मद्द भी पूरी नहीं कर पा रहे हैए हमारी दुविधा यही है कि पिछले छः दशक से हमारी विदेश नीति ही तटस्थता की है तो अब हम मौजूदा दौर में किसी एक देश की मद्द कैसे करेंघ्
इस दौर में सबको साथ रहना तथा सबका सहयोगी बने रहना ही हमारी वास्तविक ष्ष्अग्निपरीक्षाष्ष् हैए जिसे हम महसूस कर रहे है।
हमारे देश की आजादी के बाद हमारे प्रथम प्रधानंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने काफी सोच.समझ कर दूरदर्शी पंचशील योजना तैयार की थी और उसे लागू किया था। इस पंचशील योजना के मुख्य आधार गुट निरपेक्षता ;तटस्थताद्ध और धर्म निरपेक्षता थे। भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री स्वण् अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में भी पंचशील सिद्धांत जारी रहे और उनका पालन भी किया गया।
किंतु डॉण् मनमोहन सिंह की दस वर्षिय कांग्रेसी सरकार के बाद जब 2014 में नरेन्द्र भाई मोदी की सरकार पदारूढ़ हुई तब छः दशकों से देश को मार्गदर्शन देने वाले पंचशील सिद्धांतों को अमान्य कर उन्हें कचरे की टोकरी में डाल दिया गया और अपनी नीतियाँ तय कर ली गईए किंतु मोदी जी को क्या पता था कि उन्हें अगले कुछ ही वर्षों में उसी पंचशील सिद्धांत पत्र का सहारा लेकर अपनी साख बनाये रखने को मजबूर होना पड़ेगाघ् और वह समय अब आ गया जब यूक्रेन को लेकर विश्व की दो महान शक्तियाँ रूस और अमेरिका आमने.सामने है और दोनो की महाशक्तियाँ भारत से हर तरह के समर्थन व सहायता की अपेक्षा रख रही है। अब भारत सरकार की दुविधा यह है कि न तो वह छः दशक पुराने भारत.रूस के सम्बंधों को कोई क्षति पहुंचा सकती है और न मोदी जी अपने परमप्रिय मित्र और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडेन को नाराज कर सकते हैए इस दुविधा से उभरने का एकमात्र मार्ग पंचशील सिद्धांत के ष्गुट.निरपेक्षष् सिद्धांत में ही निहित हैए जिसका सहारा अब लेने को मोदी जी मजबूर है।
आज स्थिति यह है कि एक ओर जहां रूस अपने पुराने सम्बंधों का हवाला देकर हमसे हर तरह के सहयोग व समर्थन की अपेक्षा कर रहा हैए वहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति अपने देश में एक लाख हमलावर घुस आने का हवाला देकर मोदी जी से हथियार व सैनिकों की मांग कर रहे है। अब चूंकि घोषित रूप से अमेरिका.यूक्रेन का संरक्षक देश है तो यूक्रेन के राष्ट्रपति की सहायता की गुहार भी अपना विशेष महत्व रखती है। रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्रसंघ में लाये गए निंदा प्रस्ताव पर हमने अपना मत जाहिर नहीं कर रूस के प्रति अपना समर्थन जाहिर तो कर दिया किंतु अब यूक्रेन के राष्ट्रपति को सहायता का प्रश्न का उत्तर भारत खोज नहीं पा रहा है सिर्फ शांति के प्रयासों का उपदेश देकर ही सीमित रहना चाहता हैए जो यूक्रेन के लिए काफी नहीं है।
यद्यपि इस अग्निपरीक्षा के दौर में भारत संयम से काम लेने का प्रयास कर रहा है और हर स्थिति पर अपनी पैनी नजर रखे हुए हैए किंतु उसे इस बात का भय भी है कि यदि स्थिति अधिक विस्फोटक हो गई और पूरा विश्व यदि विश्वयुद्ध की कगार पर खड़ा हो गया तब भारत की भूमिका क्या होगीघ् इसीलिए भारत अभी से हर तरीके से फूंक.फूंक कर कदम रख रहा है।
अब इसी घटनाक्रम में एक ओर जहां हमारे देश में यूक्रेन की तर्ज पर हमारी बरसों पुरानी पाक अधिकृत कश्मीर की समस्या हल करने और पाकिस्तान को सबक सिखाने की मांग उठाई जा रही हैए वहीं यह भी तय है कि भारत को मौजूदा दौर में भारी आर्थिक हानि उठाने को भी मजबूर होना पड़ सकता हैए जिसकी कि चर्चा हमारे देश की प्रमुख बैंक स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया ने की हैए इस बैंक का कहना है कि युद्ध यदि ज्यादा खींचा गया तो भारत को एक लाख करोड़ की क्षति वहन करना पड़ सकती है। क्योंकि विश्व पहले ही महंगाई के दौर से गुजर रहा है और विदेश से आयात की जाने वाली आवश्यक सामग्री इस संकट के दौर में यदि आयात से प्रभावित रही तो हमारे देश में भीषण आर्थिक मंदी का दौर आ सकता है।
इस प्रकार यह तय है कि युद्ध यदि लंबा खींच गया तो फिर इसका दुष्प्रभाव भारत सहित दुनिया के सभी देशों पर पड़ सकता है और यदि इस युद्ध में परमाणु अस्त्रों का रूख अख्तियार कर लिया तो फिर क्या होगाघ् इसकी तो कल्पना करना भी भयावह होगा। इसलिए आज विश्व के सभी देशों को उकसाने की नीति छोड़ युद्ध विराम की नीति को लागू करने की ओर अग्रसर होना चाहिए और आज के दौर में हर देश को पंचशील सिद्धांत अपनाना चाहिये।
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