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लेख - March 24, 2022

धामी की चुनौतियां

-सिद्वार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

उत्तराखंड के 12वें मुख्यमंत्री के रूप में पुष्कर सिंह धामी ने बुधवार को शपथ ली। देहरादून के परेड ग्राउंड में गवर्नर लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (रिटायर्ड) उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। सत्ता की कमान संभालने के साथ ही धामी के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के साथ ही धामी को विधायक बनने से लेकर चुनाव में किए गए वादों को पूरा करना और वरिष्ठ नेताओं के साथ संतुलन बनाने की चुनौतियां से सामना करना होगा। पुष्कर सिंह धामी के सामने सबसे पहली चुनौती उपचुनाव की होगी। मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने के लिए उन्हें किसी भी सूरत में उपचुनाव जीतना होगा। मुख्यमंत्री के तौर पर धामी के सामने सबसे बड़ी चुनौती वरिष्ठ नेताओं के साथ संतुलन बनाने की चुनौती होगी। धामी के पहले छह महीने के कार्यकाल में कई वरिष्ठ नेताओं के साथ लेकर नहीं चल सके, जिसके चलते हरक सिंह रावत से लेकर यशपाल आर्य जैसे नेता पार्टी छोड़ गए। इसके अलावा कई नेताओं की नाराजगी की बातें सामने आई थीं। सरकार बनने के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेताओं, विधायकों को साथ लेकर चलने के लिए धामी को अपना राजनीतिक कौशल दिखाना होगा। पुष्कर सिंह धामी के सामने चुनावी वादों को पूरा करने की चुनौती होगी। उत्तराखंड चुनाव के दौरान पार्टी ने तमाम बड़े वादे किए हैं, जिन्हें अमलीजामा पहनाने का जिम्मा धामी के कंधों पर होगा। लव जिहाद कानून को और कठोर बनाना, समान नागरिक संहिता, भू कानून, जनसंख्या नियंत्रण सरीखे वादों को भी पूरा करने का दबाव रहेगा। इसके अलावा किसानों के खाते में 12 हजार रुपए देने का वादा है। गरीब घरों को साल में तीन सिलेंडर निशुल्क और बीपीएल परिवार की महिलाओं को 2000 प्रतिमाह, गरीब बच्चों को एक हजार प्रति माह देने जैसे लोकलुभाने वादे हैं। इन्हें सत्ता पर काबिज होते ही पूरा करने की चुनौती होगी। धामी मुख्यमंत्री की भूमिका में अपनी छोटी लेकिन तेजतर्रार पारी खेली है। धामी ने अपने पिछले छह महीने के कार्यकाल में नौकरशाही पर लगाम कसने की कोशिश की। उनकी एक कुशल प्रशासक की छवि बनी भी। अब पार्टी ने उन्हें पांच साल के लिए सत्ता की कमान सौंपी है। ऐसे में उन्हें नौकरशाही पर अंकुश लगाना होगा। उत्तराखंड में माना जाता रहा है कि नौकरशाही कभी सरकार के नियंत्रण में नहीं रही। पिछली सरकार में तमाम मंत्री अफसरों के सामने अपनी लाचारी की पीड़ा सार्वजनिक रूप से जाहिर करते रहे हैं। केंद्रीय नेतृत्व ने जिस तरह से पुष्कर सिंह धामी को चुनाव हारने के बावजूद सत्ता की कमान सौंपी है, उससे उनकी चुनौती और जिम्मेदारी बढ़ गई है। अब केंद्रीय नेतृत्व की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती होगी। पीएम नरेंद्र मोदी ऐलान कर चुके हैं कि अगला दशक उत्तराखंड का होगा। 2025 तक उत्तराखंड आदर्श राज्य होगा। मोदी के इस विजन को जमीन पर उतारने की चुनौती धामी के सामने है। इसके बाद शहरी निकाय चुनाव, फिर 2024 का लोकसभा चुनाव की चुनौती धामी के सामने होगी। पिछले दो लोकसभा चुनाव से बीजेपी क्लीन स्वीप कर रही है, जिसे 2024 में बरकरार रखना होगा। लोकसभा के लिए महज दो साल का ही वक्त धामी के सामने होगा। पुष्कर सिंह धामी दूसरी बार सत्ता की कमान संभालकर सियासी इतिहास रचने जा रहे हैं, लेकिन चुनौती पांच साल के सफर को तय करने की है। उत्तराखंड के 20 साल के इस सफर में प्रदेश को 11 मुख्यमंत्री मिले हैं और धामी 12वें सीएम। भाजपा ने सात मुख्यमंत्री दिए हैं, तो कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश को तीन मुख्यमंत्री दिए हैं। सूबे के सभी मुख्यमंत्रियों में से सिर्फ कांग्रेस नारायण दत्त तिवारी ही अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाए थे जबकि भाजपा का कोई नेता पांच साल तक सीएम नहीं रहा सका। भाजपा ने पिछले कार्यकाल में दो सीएम बदले हैं। राज्य की अर्थव्यवस्था संतोषजनक स्थिति में नहीं है। आय के साधन न होने की वजह से राज्य पर इस वक्त 65 हजार करोड़ रुपए का कर्ज हो चुका है। हालत यह है कि कार्मिकों के वेतन के लिए अक्सर सरकार को बाजार से कर्ज लेना पड़ता है। कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए राज्य को नया कर्ज लेना पड़ता है। आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिए आय के नए स्रोत तलाशने होंगे। पलायन राज्य की बड़ी समस्याओं में शामिल है। रोजगार के अभाव में लोगों को शहरों और दूसरे राज्यों को पलायन करना पड़ रहा है। वर्ष 2011 तक राज्य के 968 गांव खाली हो गए थे। वर्ष 2011 के बाद इनमें 734 गांव और जुड़ चुके हैं। सीमांत क्षेत्रों के विकास के लिए ठोस योजनाएं न होने की वजह से पलायन का सिलसिला लगातार जारी है। कोरोना काल में लौटे प्रवासियों में भी ज्यादातर इसी वजह से वापस लौट चुके हैं।

 

 

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