इमरान का कश्मीर राग
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम इमरान खान की यह चला-चलाई की बेला है। उनके खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव संसद में विचाराधीन है। उनकी अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के 24 सांसदों ने उनके खिलाफ बग़ावत कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कोई महत्त्वपूर्ण दखल नहीं दिया है। फौज भी इमरान को प्रधानमंत्री पद से हटाने पर आमादा है। बेशक पीटीआई के नेता हुकूमत बचाने में हाथ-पांव मार रहे हैं, लेकिन दीवार पर लिखी इबारत स्पष्ट है। ऐेसे में इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) की बैठक में इमरान ने एक बार फिर ‘कश्मीर का राग’ अलापा है। कश्मीर में जो हुआ है अथवा हो रहा है, इमरान ने उसे ‘जिनेवा संधि और समझौते’ का उल्लंघन करार दिया है। कश्मीर में कथित रूप से आबादी की गिनती बदलना, अनुच्छेद 370 समाप्त कर कश्मीर का ‘विशेष दर्जा’ छीनना और बहुसंख्यक को अल्पसंख्यक में तबदील करने की कवायद आदि को ‘युद्ध अपराध’ घोषित किया है। भारत पर इमरान का यह बेहद गंभीर और आपत्तिजनक आरोप है। पाकिस्तान क्या है, उसकी आर्थिक स्थिति और मुद्रास्फीति किस अवस्था में है, इन सवालों के जवाब इमरान के ही एक सवाल में निहित हैं। उन्होंने ओआईसी के मंच से सवाल किया था-इस्लाम की तुलना आतंकवाद से क्यों होती है? आज भी 148 आतंकी संगठन पाकिस्तान में सक्रिय हैं।
उनके कई सरगना आतंकी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित हैं। आतंकियों की फंडिंग और देश को आतंकवाद की पनाहगाह बनाने के बेहद जघन्य अपराध में पाकिस्तान बीते चार साल से ‘फाट्फ’ की ‘ग्रे लिस्ट’ में है। चीन उसे बचाता रहा है कि उसे ‘काली सूची’ में धकेल न दिया जाए। यदि पाकिस्तान ‘काली सूची’ में आता है, तो बिल्कुल ही ‘कंगाल’ हो जाएगा। दरअसल भारत पर ‘युद्ध अपराध’ का आरोप मढ़ने वाले पाकिस्तान को आत्म-निरीक्षण करना चाहिए कि वह आतंकियों को पालने-पोसने के मद्देनजर ‘अंतरराष्ट्रीय अपराधी’ है। हाल ही में इमरान खान ने भारत सरकार की विदेेश नीति की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। अब विदाई की बेला में कश्मीर पर ‘बेसुरा राग’ छेड़ा है। विश्व उन पर हंसने के अलावा, कुछ और नहीं कर सकता। पाकिस्तान पर 21 ट्रिलियन रुपए का घरेलू और विदेशी कर्ज़ है। उसका विदेशी मुद्रा का भंडार मात्र 22 अरब डॉलर का है। एक डॉलर 180 पाकिस्तानी रुपए के बराबर है। पूरा पाकिस्तान ही कर्ज़दार बन गया है। इमरान खान ‘कटोरा’ लिए दुनिया भर में कर्ज़ की भीख मांगते रहे हैं, लिहाजा उनकी अर्थव्यवस्था को संवारने का काम नहीं किया जा सका है। वजीर-ए-आजम कोई भी हो, कश्मीर पर तोता-राग उन्हें अलापना ही पड़ेगा, क्योंकि यही पाकिस्तान की फितरत है। उसकी फितरत यह भी है कि अल्पसंख्यक हिंदुओं की नाबालिग बच्चियों के अपहरण किए जाएं। उन्हें धर्मान्तरण के लिए मजबूर किया जाए और बूढ़ों के साथ उनके निकाह कराए जाएं। यदि मंसूबे कामयाब न हों, तो उन लड़कियों की हत्या कर दी जाए।
साल भर में 1000 से ज्यादा ऐसे मामले सामने आते रहे हैं। हिंदुओं की आबादी 18 फीसदी से घटकर 2 फीसदी से भी कम पर आ गई है। हिंदुओं के मंदिर भी तोड़े जा रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान के किसी भी प्रधानमंत्री का ऐसे अत्याचारों को लेकर कोई चिंता और सरोकार नहीं है। सिर्फ कश्मीर ही सरोकार है, जो किसी के फटे में पांव घुसेड़ने की फितरत है। कश्मीर भारत का अभिन्न और संवैधानिक हिस्सा है। नए कश्मीर में 30,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का निवेश आ चुका है। कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास का काम भी जारी है। कइयों की लूटी गई संपत्तियां चिह्नित की जा रही हैं। कमोबेश इमरान खान हमारे ‘जन्नत’ कश्मीर की चिंता न करें। अब उन्हें समझ आ जाना चाहिए कि इस्लाम की तुलना आतंकवाद से क्यों की जाती है? हालांकि हम इस दर्शन और सोच के पक्षधर नहीं हैं, लेकिन यह भी सच है कि 100 फीसदी आतंकी ऐसे मिलते रहे हैं, जो इस्लाम के नाम पर ‘जेहाद’ का हंुकारा भरते रहे हैं। आम कश्मीरी अब इस बात को समझ गया है कि पाकिस्तान कश्मीर और कश्मीरियों का भला नहीं सोच सकता है। वहां के हुक्मरानों को दरअसल अपनी सत्ता कायम रखने के लिए कश्मीर का राग अलापना पड़ता है। आवाम को भड़काकर वे उनका समर्थन हासिल करते रहे हैं। यह बात अब हर कश्मीरी समझ गया है। इसीलिए वह अब पाकिस्तान की बातों में नहीं आता है। यह देखकर पाकिस्तान को मिर्ची लगती है। इसलिए वह बार-बार अपनी ही जग-हंसाई के कारनामे करता रहता है।
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