Home देश-दुनिया देश में टेलिफोन क्रांति लाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम का एम्स में निधन

देश में टेलिफोन क्रांति लाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम का एम्स में निधन

-हिमाचल के दिग्गज नेताओं में गिने जाते थे सुखराम
-1996 में सीबीआई के छापे में नोटों से भरे बैग निकले थे

नई दिल्ली, 11 मई (ऐजेंसी/अशोक एक्सप्रेस)। साल था 1996, देश में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी। दूरसंचार मंत्री सुखराम के घर पर सीबीआई के छापे पड़ते हैं। उनके दिल्ली और मंडी के घरों से नोटों से भरे सूटकेस और बैग निकलने लगते हैं। उस वक्त 4 करोड़ से ज्यादा रुपये उनके पास से मिले थे। इतने बड़े भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस का एक दिग्गज नेता घिर चुका था। सुखराम यह बता नहीं पाए कि इन पैसों का वैध स्रोत क्या था। उन्होंने गैरकानूनी तरीके से कई निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाया था। इससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ। दिलचस्प यह है कि सुखराम को सजा दिलाने में कांग्रेस नेताओं का ही बड़ा रोल था। पीवी नरसिम्हा राव और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने सीबीआई को बयान दिया था कि बरामद किया गया पैसा सुखराम का ही है। सुखराम अब इस दुनिया में नहीं हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम ने 94 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। सात मई से वह दिल्ली एम्स में भर्ती थे। यह खबर सामने आते ही उनका राजनीतिक सफर एक बार फिर लोगों के सामने आ गया है। 1963 से राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले हिमाचल प्रदेश का वह दिग्गज राजनीतिक चेहरा 1996 में इतना बदनाम हो गया था कि आखिरी वक्त तक वह अपने दामन पर लगे दाग से ही चर्चा में रहे। देश में टेलिफोन क्रांति लाने वाले लोगों में जिस सुखराम का नाम लिया जाता था, वह घोटालों की शोर में हवा हो चुका था।

जापान जाकर मोबाइल भारत लाए थे सुखराम
वह 1993 से 1996 तक दूरसंचार मंत्री थे। एक इंटरव्यू में सुखराम ने खुद बताया था कि कैसे भारत में मोबाइल टेक्नोलॉजी लाई गई। 31 जुलाई 1995 को पहली बार भारत में मोबाइल कॉल की गई थी। मोबाइल से यह बातचीत केंद्रीय दूरसंचार मंत्री सुखराम और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु के बीच हुई थी। फोन नोकिया का था। मोबाइल भारत में लाने के पीछे की भी दिलचस्प कहानी है। उन्होंने बताया था कि एक बार वह दूरसंचार मंत्री की हैसियत से जापान गए थे। उन्होंने देखा कि ड्राइवर ने अपनी जेब में मोबाइल फोन रखा है। यह देखकर उन्हें लगा कि अगर जापान के पास यह तकनीक हो सकती है तो भारत में क्यों नहीं। वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भी इस बात का क्रेडिट देते थे, जो भारत में कंप्यूटर और टेलिफोन को घर-घर पहुंचाना चाहते थे।

धीरूभाई से की बात और…
सुखराम ने अपने विजन के बारे में रिलायंस इंडस्ट्रीज के संस्थापक और दिग्गज उद्योगपति धीरूभाई अंबानी से बात की। उन्होंने कहा था कि एक दिन मोबाइल टेलिफोन इंडस्ट्री काफी प्रॉफिट में होगी। आज रिलायंस जियो देश का सबसे बड़ा मोबाइल टेलिकॉम ऑपरेटर है। हालांकि हल्के मूड में सुखराम ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने यह अनुमान नहीं लगाया था कि मोबाइल फोन में कैमरा भी फिट हो जाएगा। वह कहते थे कि 90 के दशक में इस तरह के तकनीक की बात करने में भी काफी बाधाएं थीं। एक बार उन्होंने जनसभा में कह दिया कि एक दिन आप सबकी जेब में मोबाइल फोन होगा तो उनकी बात को संदेह भरी नजरों से देखा गया। कुछ लोगों ने सवाल किया कि घरों में पर्याप्त लैंडलाइन नहीं है और मोबाइल फोन की बातें हो रही हैं।

पर गिरफ्तारी हुई तो…
गिरफ्तारी हुई तो सुखराम को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। किरकिरी होने लगी तो कांग्रेस ने उन्हें निकाल दिया। हालांकि बाद में वह फिर कांग्रेस में आए और परिवार भाजपा में भी गया। नई सदी शुरू होते ही सुखराम को सजा होने लगी। 2002 में उन्हें तीन साल की सजा हुई। मंत्री पद का दुरुपयोग करते हुए उन्होंने एक प्राइवेट कंपनी को सामान सप्लाई करने का ठेका दिया जिससे सरकार को 1.66 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

पद का दुरुपयोग करते हुए उन्होंने एक प्राइवेट कंपनी को ठेका दिया और बदले में तीन लाख रुपये की रिश्वत ली। एक कंपनी को उन्होंने दूरसंचार विभाग को 30 करोड़ रुपये के केबल बेचने के लिए ठेका दिया था और इसके एवज में पैसा लिया। 2011 में उन्हें दोषी पाया गया और पांच साल की सजा दी गई। इससे पहले सुखराम को आय से अधिक संपत्ति के मामले में 2009 में दोषी ठहराया गया। उन पर 4.25 करोड़ रुपये अवैध तरीके से कमाने के आरोप लगे थे।

1963 से लगातार सियासत
सुखराम के राजनीतिक कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने पांच बार विधानसभा और तीन बार लोकसभा चुनाव जीता था। उन्होंने मंडी से अपना सियासी सफर शुरू किया। 1963 से 1984 तक वह विधायक रहे। 1984 में यहीं से लोकसभा के लिए चुने गए और राजीव गांधी की सरकार में राज्य मंत्री बने। 1996 में फिर मंडी से जीते और दूरसंचार मंत्री बने।

1997 में हिमाचल विकास कांग्रेस बनाई और 1998 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से गठबंधन कर सरकार में शामिल भी हुए। सुखराम सहित पांच विधायक मंत्री बने। बेटे अनिल शर्मा 1998 में राज्यसभा के लिए चुने गए। 2003 में सुखराम मंडी से फिर जीते और इस बार कांग्रेस से हाथ मिलाया। 2017 में सुखराम ने बेटे के साथ भाजपा जॉइन की लेकिन दो साल में ही कांग्रेस में ‘घर वापसी’ की। सुखराम के बेटे अनिल शर्मा मंडी से भाजपा विधायक हैं। सुखराम का राजनीतिक करियर देखें तो लगता है कि भ्रष्टाचार में भले ही उन्हें सजा हुई लेकिन जनता ने उन्हें कभी दिल से नहीं निकाला। वह जनता के ‘पंडित जी’ हमेशा बने रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

झारखंड, महाराष्ट्र विस चुनाव के साथ रिक्त विस सीटों के चुनाव की घोषणा

नई दिल्ली, 15 अक्टूबर (ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस)। चुनाव आयोग ने 15 राज्यों में रिक्त विधानस…