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लेख - June 13, 2022

भारत की साख का सवाल

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

श्रीलंका इन दिनों आर्थिक संकट से गुजर रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने की वजह से श्रीलंका ने कई जरूरी चीजों का आयात रोक दिया है। देश में बड़े स्तर पर कोयले की भी कमी है, जिस वजह से कई घंटों की बिजली कटौती करना पड़ रहा है। इन मुश्किल हालात के बीच श्रीलंकाई संसद में विद्युत संशोधन विधेयक पर चर्चा और मतदान के दौरान सरकार और विपक्ष आमने-सामने आ गए थे। 9 जून को संसद ने विपक्षी सांसदों और उद्योग ट्रेड यूनियनों के विरोध के बीच इस विधेयक को पारित कर दिया। इस संशोधन का सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड से जुड़ी ट्रेड यूनियनों की ओर से विरोध देखने को मिल रहा है। श्रीलंका की संसद में किस विधेयक पर चर्चा हो रही है और वह पारित हो पा रहा है या नहीं, ये उनका मसला है। लेकिन भारत के लोगों के लिए ये जानना जरूरी है कि श्रीलंका में उठे इस विवादित मसले से भारत का भी संबंध है। दरअसल विपक्ष का आरोप था कि 1989 के कानून में संशोधन इसलिए हुआ क्योंकि भारत के अदानी समूह के सहयोग से उत्तरी तट पर 500 मेगावॉट का पवन बिजली संयंत्र लगाने के लिए सरकार से सरकार के बीच करार हुआ है। कहा जा रहा है कि ये संशोधन अदानी समूह को बड़े रिन्यूएबल एनर्जी सौदे के लिए किया जा रहा है। 10 मेगावॉट की क्षमता वाली ऊर्जा परियोजना को निविदा के जरिए ही दिया जाना चाहिए, लेकिन ज्यादातर सांसदों ने इसके खिलाफ वोट किया है।

विधेयक तो पारित हो गया, इसके बाद शुक्रवार को इस मसले पर संसद में सार्वजनिक उद्यम समिति की सुनवाई हुई। जिसमें सीईबी के अध्यक्ष एम.एम.सी. फर्डिनेंडो ने कहा कि उन्हें राष्ट्रपति द्वारा बताया गया था कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जोर दे रहे थे कि ऊर्जा निवेश परियोजनाओं को अदानी समूह को दिया जाए। फर्डिनेंडो ने समिति को बताया, ‘मैंने उनसे कहा कि यह मेरे या सीईबी से संबंधित मामला नहीं है और इसे निवेश बोर्ड को भेजा जाना चाहिए।’ सीईबी के अध्यक्ष ने कहा कि इसके बाद उन्होंने ट्रेजरी सचिव को लिखित रूप में सूचित किया, और उनसे यह कहते हुए अनुरोध किया कि वे यह ध्यान में रखते हुए इस मामले पर गौर करें कि सरकार से सरकार स्तर पर यह ज़रूरी है। सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के अध्यक्ष के इस बयान के बाद हंगामा मचना तय था और हालात ऐसे बने कि श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को सफाई देनी पड़ी। अपने ऊपर लगे सिफारिश के आरोप को खारिज करते हुए राजपक्षे ने कहा कि मैं इस परियोजना को किसी विशिष्ट व्यक्ति या संस्था को देने के लिए अधिकार देने को स्पष्ट रूप से खारिज करता हूं। मुझे विश्वास है कि इस संबंध में जिम्मेदाराना बयान देने का पालन किया जाएगा।’

राष्ट्रपति की इस सफाई के बाद अब फिर सीईबी अध्यक्ष एम.एम.सी. फर्डिनेंडो ने कहा कि उन्होंने $गलती से संसदीय निगरानी समिति को बता दिया था कि राष्ट्रपति ने उन्हें कहा था कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अडानी समूह को एक पवन ऊर्जा परियोजना देने पर जोर दिया। उन्होंने अपना बयान वापस भी ले लिया है। श्रीलंका के प्रमुख मीडिया समूह न्यू•ा फर्स्ट ने इस बारे में सीईबी अध्यक्ष से खास बात की, जिसमें उन्होंने फिर बताया कि शुक्रवार को सार्वजनिक उद्यम समिति के सत्र में उन पर आरोप लगाए जाने पर वह बहुत भावुक थे। उन्होंने कहा कि वह समिति सत्र में दबाव में थे और उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने $गलत बयान दिया।

इस पूरे मामले में कौन सही कह रहा है, कौन दबाव में बयान दे रहा है या फिर उस बयान से पलट रहा है, राष्ट्रपति ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर किसी खास की सिफारिश की है या नहीं, इन सब का खुलासा निष्पक्ष पड़ताल के बाद ही हो सकेगा। लेकिन अभी यही नहीं मालूम कि इस तरह की पड़ताल कौन करेगा। फिलहाल यह पता है कि इस मामले में भारत का नाम आने से एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गलत संदर्भों के कारण नाम उछला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने शासनकाल के शुरुआती दिनों से बार-बार यह मंशा जाहिर कर चुके हैं कि वे भारत को विश्वगुरु बनाना चाहते हैं, उसका गौरव लौटाना चाहते हैं। लेकिन यह काम किस तरह होगा, इसका खुलासा भी उन्हें करना चाहिए। अभी तो ये नजर आ रहा है कि किसी न किसी वजह से भारत आलोचना का शिकार हो रहा है। विकास और अधिकारों के अधिकतर वैश्विक सूचकांकों में भारत पिछड़ा हुआ है, तो यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह उन कारणों की पड़ताल करे, जिस वजह से यह पिछड़ापन दिख रहा है। लेकिन सरकार का रवैया ऐसे सूचकांकों को नकारने का दिख रहा है। सांप्रदायिक माहौल बिगड़ने के कारण भी भारत की छवि पर दाग लग रहा है।

हाल ही में अमेरिका की एक समिति ने इस पर चिंता जाहिर की। अब नूपुर शर्मा ने पैगंबर मोहम्मद पर जो विवादित टिप्पणी की, और उसे जिस तरह भाजपा और सरकार ने नजरंदाज किया, उस वजह से इस्लामिक देशों ने भारत पर आंखें तरेरी। भारत का सामान कुछ देशों के सुपर मार्केट से हटाया गया, हमारे राजदूतों को समन किया गया। यह अच्छी बात नहीं है। अभी जर्मनी की विदेश मंत्री एनालेना बेरबॉक ने इस्लामाबाद में अपने पाकिस्तानी समकक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी के साथ बैठक के बाद प्रेसवार्ता में कहा कि ‘कश्मीर में मानवाधिकार’ सुनिश्चित करने में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका है। इस पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा है कि, ‘यह द्विपक्षीय मसला है और इसमें किसी भी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं है।’ भारत ने अपनी ओर से जवाब दे दिया है, लेकिन सवाल यही है कि आखिर भारत के लिए नाराजगी जाहिर करने या नसीहत देने का मौका दूसरे देशों को कैसे मिल रहा है। केंद्र सरकार को इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए, क्योंकि सवाल भारत की साख का है।

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