Home देश-दुनिया कांग्रेस के नाथ ‘अदृश्य’ पिछड़ों का ‘नेता’ अरुण…!

कांग्रेस के नाथ ‘अदृश्य’ पिछड़ों का ‘नेता’ अरुण…!

-राकेश अग्निहोत्री-

-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-

कांग्रेस के नाथ कमलनाथ की पार्टी के लिए विशेष मौके पर लगातार गैरमौजूदगी कांग्रेस में पहले ही चर्चा का विषय बन चुकी है। राहुल गांधी जब कांग्रेस ही नही देश की सियासत की धुरी बने हुए हैं तब कमलनाथ नजर नहीं आ रहे। तो अब पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव का अपने पिता स्वर्गीय सुभाष यादव के जन्मदिन पर शक्ति प्रदर्शन सुर्खियों में है। वह बात और है कि इस कार्यक्रम में कमलनाथ दिग्विजय सिंह सुरेश पचौरी अजय सिंह विवेक तंखा जैसे सभी नेताओं को आमंत्रित किया गया है। इस बीच राहुल गांधी की सदस्यता जाने और सरकारी आवास खाली करने के नोटिस के बीच भाजपा ने मानहानि को ओबीसी समाज से जोड़ दिया है। अरुण यादव मध्य प्रदेश कांग्रेस के लिए पिछड़ा वर्ग और किसानों के सबसे लोकप्रिय और बड़े नेता माने जाते हैं। अरुण यादव के प्रदेश अध्यक्ष रहते नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की जोड़ी ने सभी क्षत्रपों को साथ लेकर 2018 चुनाव के पहले चुनावी फसल बोई थी।

अचानक कांग्रेस हाईकमान के निर्देश पर ठीक चुनाव से पहले उस वक्त अरुण यादव को हटाकर कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष और चुनाव अभियान की कमान ज्योतिरादित्य को सौंप कर इस जोड़ी को मध्यप्रदेश में फ्रंट पर सक्रिय कर दिया गया था। बाद में जब सरकार बनी तो उस वक्त भाजपा के निशाने पर आ चुके माफ करो महाराज यानी युवा ज्योतिरादित्य के बावजूद अनुभवी कमलनाथ को मुख्यमंत्री की शपथ दिलवाई गई। 15 महीने की सरकार रहते ज्योतिरादित्य को कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाना पड़ा। तो दिग्विजय सिंह को छोड़कर सुरेश पचौरी से लेकर अजय सिंह अरुण यादव जैसे नेता हाशिए पर पहुंचा दिए गए थे। एक बार फिर जब प्रदेश चुनाव की दहलीज पर खड़ा तब कुछ समय पहले तक अजय सिंह ,अरुण यादव 2023 के लिए सीएम के चेहरे पर अपने बयानों से सवाल खड़ा कर कमलनाथ की स्वीकार्यता को विवादों में लाए हुए थे। पिछड़ा वर्ग के जीतू पटवारी भी तेजतर्रार विधायक और पूर्व मंत्री की हैसियत से कमलनाथ के नेतृत्व पर सवाल खड़ा कर अपने बयानों को कभी धार देते तो कभी पलटते नजर आ चुके हैं। विधान सभा के बजट सत्र के दौरान सदन से जीतू के निलंबन के बावजूद उनके हौसले बुलंद हैं।

जो कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष पर अपना दावा अभी भी ठोके हुए हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ,पूर्व उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस के सहकारी आंदोलन का बड़ा चेहरा रह चुके स्वर्गीय सुभाष यादव के जन्मदिन पर अरुण यादव और सचिन यादव ने किसानों के साथ पिछड़ा वर्ग की ओर से यादव समाज को जोड़ने की मुहिम को अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। स्वर्गीय सुभाष यादव के पुत्र और पूर्व केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री अरुण यादव के मुताबिक 1 अप्रैल को अपने स्वर्गीय पिता श्री का जन्मदिन मनाएंगे।इस अवसर पर सुभाष यादव की प्रतिमा का अनावरण होगा।साथ में राज्य स्तरीय किसान और सहकारी सम्मेलन में कांग्रेस और सहकारी कार्यकर्ता अपने प्रिय नेता को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। बदलते राजनीतिक परिदृश्य में कमलनाथ जब कांग्रेस के अदृश्य नाथ के तौर पर चर्चा में तब अंदर खाने पार्टी में अरुण यादव के 1 अप्रैल को प्रस्तावित शक्ति प्रदर्शन को कमलनाथ के नेतृत्व में पिछले दिनों हुए विरोध प्रदर्शन से जोड़कर देखने की लाइन आगे बढ़ाई जा रही है। जिसकी तुलना भीड़ के मापदंड ही नहीं दिग्गज नेताओं की एक साथ मौजूदगी को मापदंड बनाया जा रहा।अब तो प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल भी यह कहते है कि नाथ होते तो यह होता।

नाथ के गायब रहने का यह सिलसिला राहुल गांधी के समर्थन में सत्याग्रह तक सीमित नहीं है। समर्थकों की माने तो प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ यदि राहुल के समर्थन में खुद भोपाल में मौजूद होते तो यह प्रदर्शन फ्लॉप नहीं होता।तो इस बीच एक साथ सवालों की लंबी फेहरिस्त सामने खड़ी हो जाती है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जब छिंदवाड़ा से हुंकार भरते और अगस्तावेस्टलैंड घोटाले की याद दिलाते तब भी माकूल जवाब के साथ कांग्रेस के नाथ मैदान में छिंदवाड़ा भोपाल दिल्ली कहीं नजर नहीं आते। जबकि इस बीच कांग्रेस के गिने-चुने मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्षों को राहुल को सजा सुनाई जाने के बाद रणनीति बनाने के लिए विशेष बैठक में आमंत्रित किया जाता लेकिन कमलनाथ वहां भी नजर नहीं आए। उसके बाद राजघाट दिल्ली से लेकर भोपाल में गांधी प्रतिमा के सामने प्रस्तावित सत्याग्रह में कहीं भी कमलनाथ अपनी मौजूदगी का एहसास नहीं कराते। युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत भूरिया की हौसला अफजाई के लिए कांग्रेस के नाथ का ट्वीट जरूर सामने आता लेकिन नाथ फिर भी अदृश्य ही रहे। भाजपा जब चुटकी ले सोशल मीडिया पर कमलनाथ की जवाबदेही के साथ उनकी गैरमौजूदगी पर सवाल खड़े कर रही।

ऐसे में मध्यप्रदेश में अब सबकी नजर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के शक्ति प्रदर्शन पर जाकर टिक गई है। ऐसे में एक तरफ प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल का वह पुराना बयान नए अंदाज में नई बहस छेड़ गया…जिसमें कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर चुनाव में चेहरा रहेंगे लेकिन गारंटी नहीं कि मुख्यमंत्री की शपथ भी एक बार फिर वही लेंगे। किंतु परंतु के बीच अग्रवाल ने फिर से सीएम चेहरे पर फैसला हाईकमान के पाले में डाल कर सनसनी फैला दी है। जेपी का यह बयान तब सामने आया जब कमलनाथ खुद को टि्वटर हैंडल तक सीमित रखते हुए पार्टी कार्यक्रमों से दूरी बनाए हुए। अरुण यादव ने भी इस लाइन पर पहले ही एजेंडा सेट कर दिया था। वही अरुण यादव अब किसानों और पिछड़ों का मसीहा बनकर शक्ति प्रदर्शन कर अपना संदेश वर्ग विशेष समुदाय और प्रदेश के मतदाताओं से आगे हाईकमान तक भी पहुंचाने की मंशा रखते हैं।

यादव के इस कार्यक्रम का महत्व तब और बढ़ गया जब राहुल गांधी की सदस्यता जाने के बाद भाजपा ने ओबीसी समाज के सम्मान से जोड़ राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन कांग्रेस से ज्यादा राहुल के खिलाफ करने की रणनीति बनाई है। अरुण यादव और पूर्व मंत्री भाई सचिन यादव ने इस आयोजन को यादव परिवार की प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है तो कांग्रेस के दूसरे वरिष्ठ नेताओं पर भी दबाव बढ़ चुका है। कि वह इस आयोजन में शिरकत कर कांग्रेस की ओबीसी पर पकड़ ढीली नहीं होने दे। शायद यह भी एक वजह है जो कमलनाथ से लेकर दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं को खरगोन में आयोजित इस कार्यक्रम में शामिल होना ही होगा। यादव परिवार पहले भी इस विशेष मौके पर प्रदर्शन करता रहा है। चुनावी साल में विरोधियों से ज्यादा अपनों को अपनी अहमियत का एहसास दिलाने के लिए उन्होंने पूरी ताकत झोंक दी है। अरुण यादव यानी पूर्व केंद्रीय मंत्री पूर्व प्रदेश अध्यक्ष पिछड़े वर्ग खासतौर से यादव समाज का कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा जिसे राहुल गांधी का भरोसेमंद भी माना जाता। अरुण यादव कांग्रेस के अंदर ऐसे नेता बनकर उभरे हैं जो लगातार प्रदेश का दौरा कर रहे और पार्टी के नेतृत्व उसकी व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर सिस्टम में सुधार की गुंजाइश को तलाश रहे हैं।

ऐसे में जब कांग्रेस को सड़क की लड़ाई के लिए बीजेपी के खिलाफ मारक रणनीति बनाना और उसे अंजाम तक पहुंचाना बड़ी चुनौती बनकर सामने है।तब अरुण यादव के आयोजन को फ्लॉप नहीं होने देना कांग्रेस की पहली प्राथमिकता बन कर सामने है। गुटबाजी से बाहर नहीं निकल पा रही कांग्रेस को पहले ही बड़ा झटका तब लगा जब उसके तेजतर्रार विधायक जीतू पटवारी को निलंबित कर दिया गया। बात यहीं खत्म नहीं होती प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष ने इस मामले को कितनी गंभीरता से लिया जब सदन समाप्त हो गया और सदस्यता बहाल नहीं हो पाई। कांग्रेस के अंदर अरुण यादव ने सबसे पहले कमलनाथ के नेतृत्व पर सवाल खड़ा किया था। अपने अपने तरीके और सुविधा से अजय सिंह से लेकर जीतू पटवारी ने इस लाइन को आगे बढ़ाया। लेकिन कुछ दिन पहले यह मामला ठंडा पड़ चुका था। प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल के स्पष्टीकरण वाले बयान से मामला एक बार फिर उस वक्त गरमा गया जब अरुण यादव के शक्ति प्रदर्शन पर भाजपा से ज्यादा कांग्रेस के नेताओं की नजर टिक कर रह गई है।

अरुण यादव ने यदि भीड़ के मापदंड पर कांग्रेस के कमलनाथ की अगुवाई के प्रदर्शन से ज्यादा बड़ा जमावड़ा लगा दिया तो अरुण यादव को चुनावी साल में नजरअंदाज करना आसान नहीं रह पाएगा। कांग्रेस के अंदर कमलनाथ को सीएम का चेहरा प्रोजेक्ट कर नए युवा जुझारू को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की संभावनाएं अभी खत्म नहीं हुई। जबकि हाईकमान की मंशा के अनुरूप कमलनाथ अभी सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष है सीएम का चेहरा नहीं। ऐसे किसी फार्मूले का इंतजार अरुण यादव और जीतू पटवारी को खासतौर से है। फिलहाल कांग्रेस में दिग्विजय सिंह सीधे अरुण यादव के संपर्क में है। पिछले दिनों अरुण यादव और जयवर्धन सिंह ने भाजपा से बगावत कर पिछड़े वर्ग के यादव समाज से जुड़े एक बड़े नेता को कांग्रेस में शामिल कर आया था। अरुण यादव से तमाम विवादों के बाद कमलनाथ ने भी इस मुद्दे पर अब ज्यादा कुछ बोलना बंद कर दिया है। फिर भी सवाल खड़ा होना लाजमी है जब भाजपा राहुल गांधी के मुद्दे को पिछड़ा वर्ग के अपमान से जोड़ रही। तब मध्य प्रदेश ओबीसी वर्ग को भरोसे में लेने के लिए आखिर अरुण यादव कितने सक्षम और स्वीकार्य होंगे।

क्या यह प्रदर्शन कमलनाथ से लेकर जीतू पटवारी को राज आएगा। क्योंकि जिले से लेकर और नीचे संगठन स्तर पर राहुल गांधी के समर्थन में सत्याग्रह के साथ विरोध प्रदर्शन का सिलसिला अभी जारी है। अप्रैल के पहले सप्ताह में राजधानी भोपाल में एक बड़े प्रदर्शन की योजना कांग्रेस बना रही है। जिसका नेतृत्व कमलनाथ करेंगे। यानि कमलनाथ के लिए यह एक और मौका होगा जो अपनी ही पार्टी के नेता स्वर्गीय सुभाष यादव के जन्मदिन पर कार्यक्रम से बेहतर प्रदर्शन राहुल गांधी के समर्थन में राजधानी भोपाल में करके संदेश दिल्ली तक पहुंचाएं। संदेश कि वह सड़क की लड़ाई में खुलकर राहुल गांधी के साथ हैं। सवाल कमलनाथ क्या अडानी के मुद्दे पर खुलकर सड़क से हुंकार भरेंगे। जो राहुल गांधी के निशाने पर है। तो बड़ा सवाल आखिर कांग्रेस जब सड़क की लड़ाई के लिए मोर्चाबंदी करती और जब राहुल गांधी पर मुसीबत आती है। तो कमलनाथ भोपाल से लेकर दिल्ली तक आखिर पार्टी फोरम पर नजर क्यों नहीं आते।

फसल बोएंगे ‘कमलनाथ’ तो कटेगा कौन, चुनाव का चेहरा कमलनाथ लेकिन सीएम बनने की गारंटी नहीं

कांग्रेस में सीएम फेस कौन होगा….ये सवाल वक्त के साथ और गहराता जा रहा है…इस सवाल के जितने जवाब और स्पष्टीकरण देने की कोशिश कांग्रेस नेताओं द्वारा की जाती है… उतनी ही गुत्थी सुलझने की बजाए और उलझती जाती है….दरअसल एक बार फिर प्रदेश कांग्रेस प्रभारी जेपी अग्रवाल ने वही बात दोहराई जिस पर पहले भी कई सवाल उठ खड़े हुए थे….कि एमपी में सीएम फेस कौन होगा ये दिल्ली से तय होगा…ऐसे में मध्यप्रदेश में कांग्रेस को कमलनाथ कांग्रेस कहने वाले तंजकार भी अब पसोपेश में हैं कि 2023 में अगर कांग्रेस सच में बहुमत ले आई तो क्या वाकई कमलनाथ ही मुख्यमंत्री बनेंगे…इस असमंजस के निर्माता निर्देशक भी कोई और नहीं स्वयं कांग्रेस के नीति निर्धारक हैं… जो सीधे से सवाल का जलेबी की तरह जवाब दे रहे हैं… कि चुनाव तो कमलनाथ के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा… लेकिन मुख्यमंत्री का चयन कांग्रेस हाईकमान करेगा…सुनने में तो ये भी सीधा सा जवाब ही लगता है लेकिन इस एक लाइन के कई मायने निकाले जा सकते हैं। बदलते राजनीतिक परिदृश्य में मध्यप्रदेश हो या देश।

.इस वक्त कांग्रेस चौतरफा मुसीबतों से घिरी हुई है…एक तरफ कांग्रेस का आधार यानि गांधी परिवार के मुखिया राहुल गांधी की संसद सदस्यता का मामला गर्माया हुआ है तो दूसरी तरफ मध्यप्रदेश में भी विधानसभा के चुनावी संग्राम की तारीख पास आते जा रही है…ऐसे में बीजेपी से मुकाबले की रणनीति बनाने की बजाय कांग्रेस अपनी ही उलझनों से बाहर नहीं निकल पा रही…तीसरी तरफ कमलनाथ का रुख और रवैया अचानक उनका गायब हो जाना भी पार्टी नेताओं को सांसत में डाल रहा है….दरअसल कुछ दिन पहले देशभर में जब कांग्रेस ने राजभवन का घेराव किया था तब मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस ने कमलनाथ के नेतृत्व में प्रदर्शन किया था….उस समय कमलनाथ भले ही ट्रक पर सवार होकर प्रदर्शन में पहुंचे लेकिन कम से कम नजर तो आए थे… वह बात हो रही थी राहुल गांधी के निशाने पर आ चुके हटाने के मुद्दे पर आयोजित इस प्रदर्शन में कमलनाथ नहीं और दूसरे कई बड़े नेताओं ने भी इस मुद्दे पर किनारा कर प्रादेशिक मुद्दों तक खुद को सीमित कर लिया था। लेकिन रविवार को जब राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाने के विरोध में कांग्रेस ने सत्याग्रह संकल्प का आयोजन किया तो इस प्रदर्शन में मध्यप्रदेश कांग्रेस के सर्वेसर्वा कमलनाथ की कमी खुद पार्टी नेताओं को ही खली….क्योंकि कांग्रेस का ये प्रदर्शन फ्लॉप शो साबित हुआ…

इसका सबूत प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल का वो तंजभरा बयान था जिसमें उन्होंने कहा कि कमलनाथ जी की कमी महसूस हुई…वो होते तो रौनक होती।लोग उनकी तरफ ज्यादा आकर्षित होते…उनका इशारा भोपाल में प्रदर्शन में इकट्ठा हुए 100-150 कार्यकर्ताओं और नेताओं की तरफ था…यानि जब बात सीधे राहुल गांधी से जुड़ी हो उस प्रदर्शन से कमलनाथ की दूरी खुद कांग्रेसियों को हैरत में डालने वाली थी…इसी बीच भोपाल में जेपी अग्रवाल ने मीडिया से बातचीत में एक बार फिर अपना पुराना बयान दोहरा दिया कि कमलनाथ सिर्फ चुनाव लड़वाएंगे… मुख्यमत्री तो बाद में तय होगा। जेपी अग्रवाल से पहले भी कई जिम्मेदार इसी तरह की बात कह चुके थे…इस बयान से एक बार फिर सवाल खड़े हो गए कि क्या कमलनाथ की जिम्मेदारी सिर्फ 2023 का चुनाव लड़ाने तक की है…और उसके बाद सीएम कोई और भी हो सकता है…या फिर…क्या कमलनाथ कांग्रेस के भावी सीएम उम्मीदवार नहीं है….जबकि अभी तक तो कांग्रेस का बड़ा धड़ा यही कहता आया था कि 2023 में कमलनाथ ही मुख्यमंत्री बनेंगे…

तो जब पार्टी के ज्यादातर नेता एक ही बात कहते आए…यहां तक कि नए साल की शुरुआत में उनके भावी सीएम वाले पोस्टर भी राजधानी में लगा दिये गए थे…तब गा…कहीं ऐसा तो नहीं कि जेपी का इशारा राजस्थान की तरफ है…जहां भले ही सचिन पायलट ने प्रदेश अध्यक्ष रहते कांग्रेस को जीत दिलवाई थी…लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बन गए थे…और तमाम झंझावातों के बीच आज भी गहलोत ही सीएम बने हुए हैं….तो एमपी में भी ऐसा ही हो सकता है कि कमलनाथ केवल चुनाव जितवाएं और मुख्यमंत्री का पद किसी और को मिल जाए….अब जेपी अग्रवाल के बयान पर बीजेपी की ओर से भी जुबानी हमले तेज हो गए…पहले बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी लोकेन्द्र पाराशर का बयान आया तो फिर कमलनाथ के सबसे करीबी रहे नरेन्द्र सलूजा ने भी इस बयान पर जमकर मजे लिये…सलूजा की माने तो एमपी के कांग्रेस के प्रभारी जेपी अग्रवाल ने दूसरी बार यह साफ़ कर दिया है कि एमपी में कांग्रेस की और से कमलनाथजी सीएम का चेहरा तय नहीं है…यही बात अरुण यादव, अजय सिंह सभी दोहरा चुके है।

पता नहीं बाल हठ की तरह कमलनाथ और उनकी टीम क्यों भावी-अवश्यंभावी की रट लगाये हुए है, जब प्रभारी जो हाईकमान के प्रतिनिधि होते है , वो बार- बार यह स्पष्ट कर रहे है तो यह बात श्री नाथ व उनके गुट को समझनी चाहिये। लेकिन रोज़ भावी- अवश्यंभावी- पंचांग भावी- शपथ भावी लिखकर उनका मज़ाक़ बनवा रहे है। यह तय है कि कांग्रेस में अब गुटीय लड़ाई चरम पर है। जब हर कांग्रेसी इस सच को स्वीकार कर चुका था कि कांग्रेस के नाथ अब कमलनाथ ही हैं तब ये कंन्फ्यूजन क्यों पैदा किया गया…शुरुआत तब हुई जब प्रदेश सह प्रभारी सीपी मित्तल ने मीडिया से बातचीत में ये बात साफगोई से कही कि थी मुख्यमंत्री का चयन तो विधायक दल की बैठक में होगा… तब यही लगा था कि शायद मित्तल जी को नाथ के भावी सीएम वाले पोस्टरों की जानकारी नहीं होगी….

लेकिन इसके बाद कांग्रेस के दो क्षत्रपों विंध्य के अजय सिंह राहुल और मालवा निमाड़ से अरुण यादव ने भी यही बात दोहरा दी कि मुख्यमंत्री कौन होगा ये बाद में तय होगा….लगे हाथ प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल ने भी इसी बात पर मुहर लगा दी थी…जिसपर कमलनाथ को ही सफाई देनी पड़ गई थी…तब नाथ ने ये कहकर मामले को ठंडा किया था कि मैंने कभी खुद को भावी सीएम नहीं बताया…लेकिन ये बात कम ही लोगों को हजम हुई कि…अब सवाल यही है कि इस बात को क्यों खुलकर स्वीकार नहीं किया जा रहा कि कमलनाथ ही कांग्रेस का एकमात्र सीएम चेहरा हैं… और अगर नहीं तो फिर सवाल ये भी है कि आखिर कांग्रेस में सीएम फेस क्यों तय नहीं हो पा रहा है ? क्या कांग्रेस के रणनीतिकार जानबूझकर ये कंफ्यूजन पैदा कर रहे हैं…जिससे बाकी क्षत्रपों की मुख्यमंत्री बनने की उम्मीदें जिंदा रहें या फिर इन बयानों से नाथ समर्थकों को बार-बार संदेश दिया जा रहा है कि वे कमलनाथ को भावी सीएम न समझें…खैर जो भी हो कमलनाथ का कई अहम मौकों पर परदे के पीछे रहना…और प्रदेश प्रभारी का पार्टी के आयोजन में कमलनाथ की गैरमौजूदगी पर बयान देना…बता रहा है कि कांग्रेस के अंदरखाने सबकुछ ठीक नहीं चल रहा….

 

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