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लेख - December 3, 2021

समाजवाद का सुपर गठबंधन कितना कामयाब होगा ?

-मृत्युंजय दीक्षित-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश के सभी राजनैतिक दलों में गहमागहमी तेज हो गयी है । समाजवादी पार्टी ने भी अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। पार्टी के नेता अखिलेश यादव पूरे दमखम के साथ एकबार फिर तैयार हो गये हैं।

अपनी जनसभाओं तथा विजय यात्रा में अपनी ताकत का प्रदर्शन भी करने लगे हैं। अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी की सत्ता में वापसी कराने के लिए इतने अधिक बेचैन हो गये हैं कि वह और उनके सभी सहयोगी, देश विभाजक जिन्ना के समर्थक बन गये। सपा नेता भी मदिर-मंदिर जा रहे हैं- हालांकि वह अभी तक अयोध्या नहीं गये हैं और न जय श्रीराम खुलकर बोल पा रहे हैं। वहीं, अखिलेश यादव का कहना है कि वह सुपर गठबंधन के सहारे एक गुलदस्ता बना रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने अपने गीत भी लांच कर दिये, जिसमें बंगाल की तर्ज पर प्रदेश में अगली बार खदेड़ा होइबे की बात कही जा रही है।

सेकुलर विचारधारा वाले राजनैतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि सपा नेता अखिलेश यादव में अब काफी बदलाव आ रहा है, यही कारण है कि प्रदेश में भाजपा विरोधी सभी ताकतें उनकी साइकिल की सवारी करना चाह रही हैं। समाजवादी पार्टी के साथ ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा आ चुकी है। महान दल, एनसीपी और जनवादी पार्टी सोशलिस्ट का भी सपा के साथ गठबंधन हो चुका है लेकिन अभी सीटों का बंटवारा होना बाकी है। पश्चिम में रालोद के साथ बात बन गयी है और आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर भी अब सपा के ही साथ गठबंधन करेंगे। पूर्वांचल में अपना दल (कृष्णा पटेल) और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भी प्रदेश की राजनीति में अपना जनाधार बनाने के लिए सपा के साथ ही जा रही है।

किसान आंदोलन की आड़ में आम आदमी पार्टी ने भी उप्र में अपनी जमीन की तलाश शुरू कर दी थी और 170 विधानसभा सीटों को चिन्हित करने के बाद वह भी सपा की ओर मुड़ चली है। एक बहुत छोटी-सी पार्टी है- गोंडवाना गणतंत्र पार्टी वह भी सपा के साथ मिलकर दो -तीन सीटों पर अपना दमखम दिखाना चाह रही है। अभी दो-तीन कुछ और छोटे दल समाजवादी दल की साइकिल पर सवार हो सकते हैं।

राजनैतिक विश्लेषक समाजवादी गठबंधन की ताकत को अपने हिसाब से बता रहे हैं। माना जा रहा है समाजवादी नेता अखिलेश यादव जिस प्रकार से गठबंधन को लगातार बढ़ाते जा रहे हैं, उससे उनका नुकसान भी हो सकता है और यह बात कुछ सीमा तक सही प्रतीत भी हो रही है। आज जिन दलों को सपा के साथ जाता हुआ बताया जा रहा है, इन सभी दलों की ताकत 2014, 2017 और 2019 में देखी जा चुकी है। सपा के साथ जितने भी दल जा रहे हैं उनमें केवल सुभासपा ही एकमात्र ऐसा दल है जिसका पूर्वांचल की 30 सीटों पर कुछ प्रभाव है। सपा के साथ कांशीराम बहुजन मूल समाज पार्टी, पालिटिकल जस्टिस पार्टी और अपना दल (कमेरावादी) भी हो गए हैं। वहीं दो छोटी पार्टियों लेबर एस पार्टी और भारतीय किसान सेना ने तो स्वयं का सपा में विलय ही कर लिया है। इसके अलावा वह दूसरे दलों के नेताओं को भी सपा में शामिल कर रहे हैं। वह अपना यह काम हर रोज कर रहे हैं कि ताकि बीजेपी के खिलाफ एक माहौल बनाया जा सके। सपा ने हर चुनाव में किसी न किसी दल के साथ गठबंधन किया लेकिन वह सुपर फ्लॉप होती चली गयी।

रही बात पश्चिम में रालोद की तो वह किसान आंदोलन के कारण बीजेपी से नाराज होकर सपा के साथ चली गयी है क्योंकि उसे लग रहा था कि केंद्र की मोदी सरकार कृषि कानूनों को वापस नहीं लेगी और वह किसानों की नाराजगी को अपने पक्ष में मोड़ लेगी लेकिन अब मोदी सरकार ने अचानक देशवासियों को चैंकाते हुए कृषि कानूनों को वापस ले लिया है। भाजपा सरकार द्वारा कृषि कानून वापस लिये जाने के बाद अब किसान आंदोलन का कोई मतलब नहीं रह गया है और चुनावों के नजदीक आते-आते किसानों की अधिकांश समस्याओं का समाधान हो जायेगा। इसके साथ ही पश्चिम जहां बीजेपी को कुछ नुकसान होता दिखलायी पड़ रहा था वह भी कम हो जायेगा। सपा नेता एक गुलदस्ता तो जरूर बना रहे हैं लेकिन अगर वह नाकाम रहे तो यह गुलदस्ता बिखरने में देर भी नहीं लगायेगा। यह गुलदस्ता कितनी सीटें जीतकर आता है यह भी देखना दिलचस्प होगा।

सपा मुखिया अखिलेश यादव कह रहे हैं कि वह इस बार गुलदस्ता बनाकर और समाजवादी इत्र देकर अपनी सरकार बनाकर रहेंगे। लेकिन उनका यह जोश दिखावटी भी साबित हो सकता है क्योंकि अखिलेश यादव गठबंधन बनाने के नाम पर कुछ अधिक ही झुक रहे हैं। समाजवादी गुलदस्ता बन तो रहा है लेकिन इसके कारण सपा में पुराने नेताओं व कार्यकर्ताओें में बेचैनी भी है। सपा में अंदरूनी बेचैनी आने वाले समय में सपा को गहरा झटका भी दे सकती है।

सपा नेता अखिलेश यादव एक बहुत ही सोची समझी रणनीति के अंतर्गत अयोध्या, मथुरा और काशी का नाम नहीं ले रहे हैं। सपा मुखिया ब्राह्मण समाज को अपनी ओर आकर्षित करने के लिये जगह-जगह भगवान परशुराम की मूर्तियां बनाने की बात कह रहे हैं। सभी जातियों को खुश करने के लिये महापुरुषों की जयंती पर अवकाश घोषित करने का ऐलान कर रहे हैं लेकिन उनका यह जोश उनके लिये घातक भी हो सकता है ।

सपा को अयोध्या में बन रहा भव्य राम मंदिर कतई रास नहीं आ रहा है। वह अयोध्या में हर साल बनायी गयी दीपावली को फिजूलखर्ची बता रहे हैं। अयोध्या में समाजवादी नेताओं ने आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर जमीन घोटाले का आरोप लगाया और कहा कि पहले जमीन घोटाले की जांच हो और फिर भव्य मंदिर निर्माण। सपा नेता सीएए और एनआरसी का लगातार विरोध कर रहे हैं।

इससे स्पष्ट है कि वह कतई नहीं बदले हैं। साथ ही वह जिस प्रकार से जिन्ना का महिमा मंडन कर रहे हैं उससे पता चल रहा है कि वह विभाजनकारी मानसिकता वाले हैं। सपा नेता अखिलेश यादव ने सरदार पटेल की जयंती के अवसर पर मोहम्मद अली जिन्ना को स्वतंत्रता सेनानी बताकर मुस्लिम तुष्टिकरण का बहुत ही घटिया और शर्मनाक उदाहरण पेश किया है।

अखिलेश यादव बहुत सोची समझी रणनीति के तहत प्रचार कार्य कर रहे हैं। वह जनसभाओं में केवल बीजेपी पर ही हमलावर हैं तथा कांग्रेस व बसपा के खिलाफ चुप्पी साध ली है। वह इसीलिये कि अगर उन्हें कुछ सहयोग की आवश्यकता पड़ी तो कांग्रेस, बसपा और ओवैसी की मदद लेकर भी सरकार बनायी जा सकती है। यही कारण है प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अब कहना शुरू कर दिया है कि ओवैसी सपा का सहयोग कर रहे हैं। वे दावा करते हैं कि भाजपा सरकार उनके किये कामों का उद्घाटन-शिलान्यास कर रही है। वह चाहे कानपुर की मेट्रो हो या फिर पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का उद्घाटन हर जगह वह अपना काम ही बता रहे हैं, जिसे जनता भी अच्छी तरह से समझ रही है। जेवर एयरपोर्ट के शिलान्यास के अवसर पर भी सपा की ओर से कहा गया कि पीएम मोदी जेवर एयरपोर्ट भी बेच देंगे।

बहरहाल सुपर महागठबंधन और अपनी तथाकथित मुस्लिम तुष्टिकरण और जातिवाद के बल पर अखिलेश यादव, बीजेपी को घेरने में कितना सफल रहते हैं यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। चुनावी जनसभाओं में सपा और उनके सहयोगी जिस प्रकार जिन्ना की रट लगा रहे हैं यह बहुत खतरनाक ट्रेंड है। इसलिए प्रदेश की जनता को बहुत सोच-समझकर अपने मतों का इस्तेमाल करना होगा।

 

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