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लेख - December 22, 2021

भारत रत्न के सच्चे हकदार हैं चैधरी चरण सिंह

जन्म दिवस (23 दिसम्बर) पर विशेष

-रमेश सर्राफ धमोरा-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

देश के पूर्व प्रधानमंत्री चैधरी चरण सिंह की गिनती एक ईमानदार राजनेता के तौर पर की जाती है। उन्होंने जीवन पर्यन्त किसानों की सेवा को ही अपना धर्म माना और देश के किसानों, गरीबों, दलितों, पीड़ितों की सेवा में पूरी जिंदगी गुजारी।

चैधरी चरण सिंह ने हमेशा यह साबित करने की कोशिश की थी कि किसानों को खुशहाल किए बिना देश का विकास नहीं हो सकता। उनकी नीति किसानों व गरीबों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने की थी। किसानों को उनकी उपज का उचित दाम मिल सके इसके लिए बहुत गंभीर रहते थे। उनका कहना था कि भारत का संपूर्ण विकास तभी होगा जब किसान, मजदूर, गरीब खुशहाल होंगे।

चैधरी चरण सिंह जाति प्रथा के कट्टर विरोधी थे। चरण सिंह खुद एक छोटे-से गांव में एक किसान के घर पैदा हुए। बचपन से ही उन्होंने किसानों, गरीबों के दुख-दर्द को नजदीक से देखा जाना था इसलिए उन्हें उनकी समस्याओं का बखूबी अहसास था। उनको जब कभी मौका मिलता वे किसानों की सेवा करने से नहीं चूकते थे। चैधरी चरण सिंह जीवन पर्यन्त गांधी टोपी धारण कर महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी बने रहे। वे कहते थे कि देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों और खलिहानों से होकर गुजरता है। उनका कहना था कि भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं होती है। जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे वह कभी तरक्की नहीं कर सकता।

चैधरी चरण सिंह कुशल लेखक भी थे। अंग्रेजी भाषा पर उनका अच्छा अधिकार था। उन्होंने कई पुस्तकों का लेखन किया। 29 मई 1987 को 84 वर्ष की उम्र में जब उनका देहांत हुआ तो देश के किसानों ने अपना हितैषी नेता खो दिया। लोगों का मानना था कि चरण सिंह से राजनीतिक गलतियां हो सकती हैं लेकिन चारित्रिक रूप से उन्होंने कभी कोई गलती नहीं की। इतिहास में उनका नाम प्रधानमंत्री से ज्यादा एक किसान नेता के रूप में जाना जाता है। चैधरी चरण सिंह ने ही भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे पहले आवाज बुलंद करते हुए आह्वान किया था कि भ्रष्टाचार का अंत ही देश को आगे ले जा सकता है।

चैधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर 1902 को गाजियाबाद जिले के नूरपुर गांव के चैधरी मीर सिंह के घर हुआ था। बाद में उनका परिवार नूरपुर से जानी खुर्द गांव आकर बस गया था। 1928 में चैधरी चरण सिंह ने आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर गाजियाबाद में वकालत शुरू की। 1930 में महात्मा गांधी द्वारा नमक कानून तोड़ने के समर्थन में चरण सिंह ने हिंडन नदी किनारे नमक बनाया, उन्हें छह माह जेल की सजा हुई। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह गिरफ्तार किये गये। 1942 में अगस्त क्रांति के माहौल में चरण सिंह की गिरफ्तारी हुई और डेढ़ वर्ष की सजा हुई। जेल में ही चैधरी चरण सिंह की लिखित पुस्तक भारतीय समाज में शिष्टाचार के नियमों का बहुमूल्य दस्तावेज है।

चैधरी चरण सिंह को 1951 में उत्तर प्रदेश सरकार में न्याय एवं सूचना विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया। 1952 में डॉक्टर सम्पूर्णानंद के मुख्यमंत्रित्व काल में उन्हें राजस्व तथा कृषि विभाग का दायित्व मिला। एक जुलाई 1952 को उत्तर प्रदेश में उनकी बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को खेती करने के अधिकार मिले। 1954 में उन्होंने किसानों के हित में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया। 1960 में चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह तथा कृषि मंत्री बनाया गया।

चैधरी चरण सिंह 3 अप्रैल 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 1967 में पूरे देश में सांप्रदायिक दंगों के बावजूद उत्तर प्रदेश में कहीं पत्ता नहीं हिला। 17 फरवरी 1970 को वे दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। अपने सिद्धांतों से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया।

1977 में चुनाव के बाद जब केंद्र में जनता पार्टी सत्ता में आई तो मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और चरण सिंह को देश का गृह मंत्री बनाया गया। केंद्र में गृहमंत्री बनने पर उन्होंने अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। 1979 में वे उप प्रधानमंत्री बने। बाद में मोरारजी देसाई और चरण सिंह के मतभेद हो गये। 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक चैधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस के सहयोग से भारत के पांचवें प्रधानमंत्री बने।

इंदिरा गांधी के सहयोग से कुछ समय के लिये देश के प्रधानमंत्री बन कर उन्होंने देश में पहली बार कांग्रेस के खिलाफ बने एक मजबूत गठबंधन को तोड़ा था। उससे उनकी प्रतिष्ठा को भी गहरा आघात पहुंचा था। अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने 2001 में हर वर्ष 23 दिसम्बर को चैधरी चरण सिंह की जयंती को राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाने की जो परंपरा शुरू की थी उससे जरूर उनको साल में एक दिन याद किया जाने लगा है। चैधरी चरण सिंह जैसे किसानों के बड़े नेता द्वारा किसानों के हित में किये गये कार्यों को देखते हुये वर्षों पूर्व ही उनको भारत रत्न सम्मान मिलना चाहिये था। इससे देश के करोड़ों किसानों के साथ सरकार का भी सम्मान बढ़ेगा।

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