भारत पर भारी पडे़गी रूस की दोस्ती
-विष्णुगुप्त-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह ने भारत को एक चेतावनी दी है। यह चेतावनी भारत के हित में है और भारत की सुरक्षा से सबंधित है। दलीप सिंह ने कहा है कि अगर चीन भारत पर हमला करता है तो फिर भारत को बचाने के लिए रूस नहीं आयेगा। दलीप सिंह की यह चेतावनी सही है और पूरी तरह चाकचैबंद है। इस पर नाराजगी की कोई जरूरत नहीं है और इस चेतावनी को सकारात्मक रूप में लेने की जरूरत है। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने इस चेतावनी के खिलाफ कोई प्रतिक्रिया न देकर अच्छा काम तो किया है पर भारत सरकार को इस चेतावनी पर सजग होकर सोचने-विचारने की भी जरूरत है। वर्तमान में ऐसा लगता नहीं कि भारत की कूटनीतिज्ञ इस पर विचार करेगे और इस पर त्वरित कार्रवाई करेंगे?
अब यहां यह प्रशन उठता है कि आखिर अमेरिकी उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह ने भारत को ऐसी चेतावनी क्यों दी है? वास्तव में यूक्रेन और रूस के साथ युद्ध में भारत सरकार की कूटनीति पर प्रश्न चिन्ह खड़े हुए है और भारत सरकार की कूटनीति को लेकर दुनिया भर में आश्चर्य उत्पन्न हुआ है। कूटनीतिक तौर पर भारत रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के दौरान तटस्थ की भूमिका में है। पर एक तरह से भारत का रूख रूस के पक्ष में ही है। क्योंकि रूस एक आक्रमणकारी है, यूक्रेन एक स्वतंत्र और संप्रभुता संपन्न राष्ट्र है। सोवियत संघ के पतन के बाद सोवियत संघ से कई स्वतंत्र देश बने थे, उन्ही में से एक यूक्रेन है। यूक्रेन को रूस अपना गुलाम बना कर रखना चाहता है पर यूक्रेन गुलाम बनने के लिए तैयार नहीं है। यूक्रेन अपने आप को एक स्वतंत्र देश की शक्ति रखना चाहता है। रूस पिछले कई वर्षो से यूक्रेन को हड़पने के लिए कोशिश कर रहा था। जब धमकियों से कामयाबी नहीं मिली तो फिर रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया।
यूक्रेन पर रूस के हमले से खासकर नाटो देशों की सुरक्षा और उनकी हैसियत पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हुआ है। यूक्रेन पिछले कुछ सालों से नाटो से नजदीकियां बढ़ाई थी। नाटो ने भी यूक्रेन को आर्थिक और सैनिक मदद की थी। रूस यह कहता रहा है कि यूक्रेन ने नाटो से नजदीकियां बढ़ा कर रूस के लिए सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ायी है। रूस सिर्फ यूक्रेन को ही लहूलुहान नहीं किया है बल्कि उसने नाटो को भी चुनौती दी है और नाटों की हैसियत को धूल में मिला दिया है। रूस ने सीधे तौर धमकी दी है कि अगर नाटों ने प्रत्यक्ष तौर पर किसी प्रकार के सुरक्षा कदम उठाये तो फिर नाटों देशों की खैर नहीं, रूस अपने परमाणु विकल्प पर भी विचार करेगा। यानी की रूस नाटो देशों पर परमाणु हमले करने से भी नहीं चूकेगा। अगर नाटो और रूस के बीच कोई युद्ध होगा तो यह सीधे तौर पर विश्व युद्ध में तब्दील हो जायेगा। दुनिया पहले से प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध की वीभीषिका झेल चुकी है, जापान परमाणु हमले की दर्दनाक और भयानक दुष्परिणाम आज भी झेल रहा है। आगे दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की भी दर्दनाक और भयानक दुष्परिणाम झेलने के लिए बाध्य होगी। ऐसी आशंका बनी हुई है।
यह सही है कि अभी तक नाटों ने संयम और शांति का परिचय दिया है और रूस के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष युद्धक नीतियां नहीं बनायी है और न ही यूक्रेन की ओर से कोई हमला किया है। लेकिन सच यह भी है कि नाटो हाथ पर हाथ धर कर भी नहीं बैठा है। नाटों ने कई ऐसे कदम उठाये हैं जिससे यूक्रन की सैनिक शक्तियां बढ़ी है, यूक्रेन के हौसले कायम हैं और अभी युद्ध क दौरान यूक्रेन दिलैरी के साथ रूस का सामना कर रहा है। खासकर अमेरिका ने रूस के खिलाफ कड़े कदम उठाये हैं। अमेरिका ने कई बड़े प्रतिबंध भी लगाये हैं। अमेरिका ने सीधे तौर पर रूस को कह दिया कि यूक्रेन पर हमले की उसे बड़ी कीमत चुकानी ही होगी। युद्ध के दौरान आथिक, कूटनीतिक और सामरिक प्रतिबंधों को लेकर रूस चिंतित तो नहीं है पर रूस को इन प्रतिबंधों को लेकर भविष्य में कई परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। सिर्फ अमेरिका और नाटो देश ही नहीं बल्कि जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश भी रूस के खिलाफ प्रतिबंधों को लेकर अमेरिका के साथ हैं। यूरोपीय यूनियन भी रूस के खिलाफ तनकर कर खड़ी है और रूस को कोई ढील देने के लिए तैयार नहीं है। अमेरिका द्वारा लगाये गये आर्थिक, सामरिक और कूटनीतिक प्रतिबंधो को लागू करने के लिए यूरोपीय यूनियन के देश भी तैयार हैं।
रूस ने अमेरिका, नाटो और यूरोपीय यूनियन के प्रतिबंधों के खिलाफ लालच का हथकंडा अपनाया है। उसने भारत जैसे देशों को सस्ता तेल और सस्ता हथियार देने का लालच दिया है। यूक्रेन युद्ध में रूस के हथियारों की शक्ति की पोल खुल गयी है। सस्ता तेल कब तक रूस बचेगा? जिस दिन रूस की कूटनीतिक और प्रतिबंधों की परेशानी समाप्त हो जायेगी उस दिन रूस सस्ता तेल देना बंद कर देगा और अपने तेल की कीमत बढ़ा देगा। पुतिन बहुत ही कईयां है और धूर्त है। पुतिन मदद देने की कीमत वसूलना जानता है और समय पर धोखा देना भी जानता है। यानी की पुतिन विश्वसनीय कदापि नहीं है।
चीन और रूस की हिंसक और उपनिवेशिक मानसिकता की जुगलबंदी जारी है। चीन ने यूएनओ में रूस का साथ दिया है, कूटनीतिक मंचों पर रूस का साथ है। चीन ने भी कभी भारत को रूस की तरह रौंदा था। उस समय भारत का थोड़ा झुकाव अमेरिका की ओर बढ़ रहा था। चीन और उसका तानाशाह माओत्से तुंग ने भारत को गुलाम बनाने के लिए हमला कर दिया था। उस समय सोवियत संघ ने भारत की कोई सहायता नही की थी। अमेरिका ही साथ दिया था। भारत ने सोवियत संघ की मित्रता की बहुत बड़ी कीमत चुकायी थी। पुतिन, चीन और पाकिस्तान के प्रश्न पर कोई स्पष्ट नीति नहीं रखता है। यूएनओ की सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का भी वह स्पष्ट और मूखर समर्थन नहीं करता है।
चीन और पाकिस्तान की भारत विरोधी नीति और कारस्तानी कौन नहीं जानता है? नरेन्द्र मोदी का झुकाव अमेरिका तरफ जैसे ही हुआ वैसे ही चीन ने हमारी सीमा भूमि पर अतिक्रमण कर लिया। चीन द्वारा हमारी सीमा भूमि अतिक्रमण करने के प्रश्न पर पुतिन की कोई स्पष्ट नीति नहीं थी, पुतिन ने चीन की इस कारस्तानी की आलोचना भी नहीं की थी। अमेरिका ने ही चीन की इस कारस्तानी की आलोचना की थी और चीन को संयम बरतने तथा भारत की संप्रभुत्ता का सम्मान करने की घूंटी पिलायी थी। आज हम पाकिस्तान प्रायोजित मुस्लिम आतंकवाद का सामना करने के लिए इसलिए सक्षम हैं कि अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ देना बंद कर दिया है। पाकिस्तान भी रूस और चीन के साथ खड़ा है। आज न कल रूस, चीन, उत्तर कोरिया, ईरान और पाकिस्तान जैसे असफल और अराजक देशों का गिरोह बनना तय है जो दुनिया की शांति को भंग करेगा, दुनिया की लोकतांत्रिक पद्धति को लहूलुहान करेगा।
हमें अपने राष्ट्रीय और सुरक्षा हित की चिंता होनी चाहिए। हमें पुतिन और रूस की हिंसक मानसिकता का समर्थन करने की कोई जरूरत नहीं है, भारत को उस गिरोह में शामिल होने की भी जरूरत नही जिस गिरोह में चीन और पाकिस्तान जैसे हिंसक और असफल देश शामिल हों। नरेन्द्र मोदी सरकार को यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध को लेकर अपनी वर्तमान नीति पर विचार करना ही होगा और रूस को एक आक्रमणकारी के तौर पर देखना ही होगा।
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