जनता को झटका
-सिद्धार्थ शंकर-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
देश में महंगाई लगातार बढ़ रही है और इसे काबू में रखने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने फिर से रेपो रेट में 0.50 फीसदी की वृद्धि की है। इसके बाद यह 4.40 फीसदी से बढ़कर 4.90 फीसदी हो गई है। रेपो दर में इजाफे का सीधा असर लोन की ईएमआई पर पड़ता है और आपका खर्च बढ़ जाता है। होम लोन से लेकर ऑटो और पर्सनल लोन तक सभी पर इसका असर देखने को मिलेगा। सबसे पहले बात कर लेते हुए रेपो दर की और जानते हैं कि किस तरह से यह लोन और ईएमआई से संबंधित हैं। दरअसल, रेपो रेट वह दर होती है जिस पर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है, जबकि रिवर्स रेपो रेट उस दर को कहते है जिस दर पर बैंकों को आरबीआई पैसा रखने पर ब्याज देती है। रेपो रेट के कम होने से लोन की ईएमआई घट जाती है, जबकि रेपो रेट में बढ़ोतरी से कर्ज महंगा हो जाता है। यहां बता दें कि बीते चार मई को आरबीआई ने रेपो रेट में 0.40 फीसदी का इजाफा किया था और अब 35 दिन के भीतर दूसरी बड़ी बढ़ोतरी का फैसला किया है। चार मई के बाद से रेपो रेट 0.90 फीसदी बढ़ चुका है। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने एमपीसी की बैठक के फैसलों का एलान करते हुए महंगाई को लेकर अपनी चिंता जाहिर की। उन्होंने रूस और यूक्रेन के बीच लंबे समय से जारी युद्ध से सप्लाई चेन पर पड़े प्रभाव का जिक्र करते हुए कहा कि महंगाई पर लगाम लगाने के लिए इस तरह का निर्णय किया गया है। इसके अलावा बॉन्ड यील्ड चार साल में पहली बार 7.5 फीसदी पर पहुंच गई। वहीं क्रूड के दाम में तेजी का सिलसिला जारी है। दास ने बीते दिनों एक चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था, आरबीआई कम से कम अगली कुछ बैठकों में दरें बढ़ाना चाहेगा। मैंने खुद अपने मिनट्स में कहा है कि मई में ऑफ-साइकिल मीटिंग के कारणों में से एक यह था कि हम जून में ज्यादा स्ट्रॉन्ग एक्शन नहीं चाहते थे। उन्होंने ये कहा था, रेपो रेट्स में कुछ बढ़ोतरी होगी, लेकिन कितनी होगी अभी मैं ये नहीं बता पाऊंगा। पिछली बैठक में आरबीआई गवर्नर ने साफ कहा था कि बैंक की प्राथमिकता महंगाई को थामना है। इसलिए जल्दी ही नीतिगत दरें बढ़ाई जा सकती हैं। नीतिगत दरों में बढ़ोतरी रिजर्व बैंक की मजबूरी इसलिए बन गई कि महंगाई की दर उसके छह फीसद के निर्धारित दायरे से भी ऊपर निकल गई है। ऐसे में रिजर्व बैंक कब तक चुप बैठता? गौरतलब है कि महंगाई को लेकर लंबे समय से हाहाकार मचा है। खुदरा और थोक महंगाई दोनों नित नए रिकार्ड बना रहे हैं। खाद्य वस्तुओं और खाद्य तेलों सहित जिंसों और धातुओं के बाजार में भारी तेजी बनी हुई है। मार्च के महीने में ही महंगाई दर 6.95 फीसद पर पहुंच गई थी, जो 17 महीने में सबसे ज्यादा थी। ऐसे में रिजर्व बैंक की यह जिम्मेदारी है कि वह खुदरा महंगाई दर को निर्धारित छह फीसद से ऊपर न जाने दे। इसीलिए अब एमपीसी के पास कोई चारा नहीं रह गया था, सिवाय इसके कि वह नीतिगत दरों में बढ़ोतरी का कठोर कदम उठाती। इसलिए भी कि अगर महंगाई इसी तरह बेकाबू होती रही तो अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पडऩे लगेंगे। हालांकि महंगाई बढऩे के कई कारण हैं। दो साल तक कोविड महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था रसातल में चली गई। इसे पटरी पर लाने के लिए सरकार और केंद्रीय बैंक दोनों ही पहले से जूझ रहे हैं। हालात जैसे तैसे काबू में आने शुरू हुए तो रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ गया। इस वैश्विक संकट ने नए सिरे से मुश्किलें खड़ी कर दीं। सबसे ज्यादा मार कच्चे तेल के दामों से पड़ी। भारत में आज महंगाई जिस रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई है, उसका बड़ा कारण पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दाम हैं। मुश्किल यह है कि यूक्रेन संकट कितना लंबा खिंचेगा, कोई नहीं जानता।
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