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लेख - June 10, 2022

और बढ़ेगी महंगाई की मार

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

महंगाई बर्दाश्त की हद के पार चली गई है। इस साल दिसंबर तक महंगाई से राहत मिलने के आसार नहीं हैं। नागरिक उम्मीद भी न करें। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण सप्लाई चेन प्रभावित हुई है, नतीजतन महंगाई बढ़ रही है। इसे काबू करने के लिए सख्त कदम उठाने पड़े हैं।’ यह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास का, रेपो रेट बढ़ाने की घोषणा करने के बाद, महंगाई पर स्पष्टीकरण है। यह पहली बार हुआ है कि देश के केंद्रीय बैंक को सवा माह में ही दोबारा रेपो रेट बढ़ाना पड़ा है। बीती 4 मई के बाद 8 जून को रेपो रेट में वृद्धि के बाद अब कुल 4.90 फीसदी रेट बढ़ चुका है। यही अंतिम घोषणा नहीं है। आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक, मौजूदा रेपो रेट अब भी कोरोना-पूर्व के स्तर से 25 आधार अंक कम है, लिहाजा रेपो रेट में 75 आधार अंकों की बढ़ोतरी की जा सकती है। रेपो रेट की बढ़ोतरी के सीधे मायने हैं कि आम नागरिक के घर, वाहन, शिक्षा और पर्सनल लोन की मासिक किस्तें महंगी हो जाएंगी। महंगाई के अलावा, औसत उपभोक्ता पर कर्ज़ की मार और भी तीखी हो जाएगी। महंगाई की दर, मुद्रास्फीति को लेकर केंद्रीय बैंक अपनी भूमिका निभाने में नाकाम रहा है, क्योंकि पिछली तीन तिमाहियों से मुद्रास्फीति लगातार 6 फीसदी से अधिक है। रिजर्व बैंक ने यह अधिकतम सीमा तय कर रखी थी कि मुद्रास्फीति इससे कम स्तर पर ही रहेगी, लेकिन आज खुदरा महंगाई दर 7.79 फीसदी से ज्यादा है।

यह 2014 के बाद, आठ सालों के दौरान, सर्वाधिक है, लिहाजा केंद्रीय बैंक को चालू वित्त वर्ष के लिए महंगाई दर का अनुमान 5.7 फीसदी से बढ़ाकर 6.7 फीसदी करना पड़ा है। यानी महंगाई का बढ़ना जारी रहेगा, अधिक तीव्र गति से बढ़ेगी और राहत मिलना दूर की कौड़ी है। बीते 6 महीनों में रोजमर्रा की चीजें-दालें, आटा, टमाटर, नींबू, खाद्य तेल, चीनी, चाय और दूध आदि-औसतन 29 फीसदी महंगी हुई हैं। यही नहीं, ऊर्जा क्षेत्र में भी महंगाई बढ़ी है। रेपो रेट में बढ़ोतरी से रियल एस्टेट पर एक बार फिर चपत लग सकती है। एक ओर रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति कमेटी ने रेपो रेट 0.50 फीसदी बढ़ाने का फैसला लिया, तो दूसरी तरफ कैबिनेट ने खरीफ सीजन की 17 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी को मंजूरी दी। देखा जाए, तो किसान को एमएसपी की घोषणा से खुश होना चाहिए था, लेकिन वह अब भी निराश, परेशान है, क्योंकि एमएसपी में औसतन 5 फीसदी की बढ़ोतरी की घोषणा की गई है, जबकि रेपो रेट से स्पष्ट है कि मुद्रास्फीति की स्थिति क्या है? बहरहाल रेपो रेट बढ़ाने से साफ है कि अब प्राथमिकता मुद्रास्फीति की रहेगी। मुद्रास्फीति के आने वाले प्रभावों से राहत देने और मुद्रास्फीति की लगाम कसे रखने के मद्देनजर एक बार फिर रेपो रेट में बढ़ोतरी के आसार पुख्ता हैं। इतना कुछ होने के बावजूद, केंद्रीय बैंक जीडीपी और उसकी विकास दर को लेकर पूरी तरह विश्वस्त है। विकास दर का अनुमान 7.2 फीसदी यथावत रखा गया है।

हालांकि विश्व बैंक ने बीती 7 जून को भारत की जीडीपी और वृद्धि दर का अनुमान 7.5 फीसदी दिया है, जो जनवरी में 8 फीसदी से ज्यादा था। दिलचस्प अर्थशास्त्र है कि रेपो रेट बढ़ने से कई तरह के ऋण तो महंगे हो जाते हैं, लेकिन बैंक बचत खातों व सावधि जमा की पूंजी पर ब्याज दरें नहीं बढ़ाते हैं। उपभोक्ता का लाभ कौन सोचेगा? एक पहलू यह भी है कि कोरोना महामारी के बावजूद देश में 142 अरबपति उद्योगपतियों की आमदनी और पूंजी 30 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गई, लेकिन वे देश के भीतर पर्याप्त निवेश नहीं कर रहे हैं। दूसरी तरफ कोरोना का दुष्प्रभाव इतना रहा है कि देश के करीब 84 फीसदी लोगों की आमदनी घटी है। यह असंतुलन और विरोधाभास कब तक जारी रहेगा? पेट्रोल, डीजल, खाद्य तेल, दालें, सब्जियां, चीनी, चावल तथा आटा आदि सभी वस्तुएं महंगी हो गई हैं। जो लोग बीपीएल की श्रेणी में आते हैं, उन्हें सरकार की तरफ से बिल्कुल सस्ते दामों पर राशन मिल जाता है। अमीरों पर महंगाई का असर होता ही नहीं। जो वर्ग पिसने वाला है, वह है मध्यम वर्ग जो केवल अपने बूते जिंदगी बसर कर रहा है। उसे सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं मिल रही। वह करदाता भी है। यही वर्ग महंगाई से सबसे ज्यादा प्रभावित है। अपने जीवनयापन के लिए उसे कर्ज तक लेना पड़ रहा है। कोरोना काल में वैसे भी कई लाख लोगों की नौकरी चली गई अथवा वेतन में कटौती हुई। अब बिना नौकरी के अथवा कम वेतन से काम चलाना पड़ रहा है। इस वर्ग को महंगाई से निजात मिलनी ही चाहिए।

 

 

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