बारिश में जनता की हाहाकार पर भारी व्यवस्था का भ्रष्टाचार
-निर्मल रानी-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
मानसून का आगमन हो चुका है। देश के कई राज्यों में बारिश और बाढ़ के प्रलयकारी दृश्य देखे जा रहे हैं। पूरे देश में अब तक हज़ारों लोग बाढ़, बारिश और सरकारी लापरवाही विशेषकर भ्रष्टाचार के कारण उपजे हालात की भेंट चढ़ चुके हैं। सबसे ज़्यादा जनहानि व तबाही तो उस असम राज्य में हुई है जिसे सरकार ने उन्हीं बाढ़ के दिनों में महाराष्ट्र के विधायकों की ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ का अड्डा बनाया। इसी राज्य को एन आर सी की प्रयोगशाला बनाने की कोशिश की गयी। सरकार को अनुकूल व सुविधाजनक लगने वाले सांप्रदायिकता के और भी कई प्रयोग यहां किये जा चुके हैं। परन्तु बाढ़ से बचाव का समुचित उपाय करना शायद सरकार की प्राथमिकताओं में नहीं होगा तभी इस राज्य के सबसे अधिक लोग प्रलयकारी बाढ़ और बारिश की भेंट चढ़ गये। गांव के गांव जल प्रलय का शिकार हो गये?
स्वयं प्रधानमंत्री का गृह राज्य गुजरात जिसे ‘वाइब्रेंट गुजरात’ के नाम से प्रचारित किया जाता था और जिस गुजरात मॉडल को पूरे देश में लागू करने की बात की जाती थी वहां बाढ़, बारिश, सड़कों के धंसने और जान व माल की हानि की ख़बरें आ रही हैं। वास्तव में गुजरात की बाढ़, बारिश और शहरों में मची तबाही से ही वहां की जनता इन दिनों ‘वाइब्रेंट’ हो रही है। मध्य प्रदेश में भी भारी तबाही के समाचार हैं। अनेक नदियां उफान पर हैं, शहरों में मुख्य मार्गों व मुहल्लों में होने वाले जल भराव बाढ़ का दृश्य पेश कर रहे हैं। कई दृश्य ऐसे सामने आ रहे हैं जिनमें वाहन बहते हुए दिखाई दे रहे। स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने क़ाफ़िले के साथ उन्हीं पानी भरे गड्ढेदार रास्तों से गुज़रते हुए रोड शो करते फिर रहे हैं। परन्तु यदि आप विकास पर उनका भाषण सुनें तो शर्म से पानी पानी हो जायें। मगर इसतरह के ‘महा झूठ’ बोलने और जनता को गुमराह करने की सलाहियत शायद भगवान केवल नेताओं को ही देता है। उनके प्रवचन के एक अंश और बारिश में मध्य प्रदेश की सड़कों पर चल रहा मौत का वास्तविक तांडव दोनों की तुलना करके स्वयं देखिये। मुख्यमंत्री चौहान के शब्दों में-‘यदि किसी स्टेट को आगे बढ़ाना है तो बुनियादी इंफ़्रास्ट्रक्चर के बिना कोई राज्य आगे बढ़ नहीं सकता। इसलिए सबसे पहले हमने सड़कें बनायीं। और सड़कें भी ऐसी मित्रों … जब मैं यहां एयरपोर्ट पर उतरा। ‘वाशिंगटन’ के और सड़कों पर चलके आया तो मुझे लगा कि मध्य प्रदेश की सड़कें यूनाइटेड स्टेट से ज़्यादा बेहतर हैं।’ गोया इतनी बेहतर की गड्ढों से भरी और बारिश में तेज़ प्रवाह नदी का जानलेवा दृश्य पेश करती हुई? परन्तु सरकार है कि सिर्फ़ लोकलुभावन नीतियों पर चल रही है। ‘साहब’ स्वयं को ‘बुलडोज़र मामा’ कहलवाने में ही ख़ुश हैं। नागपुर में पुलिया बह गयी, एक ही परिवार के आठ लोगों ने जीप समेत जल समाधि लेली। ऐसी अनेक घटनायें विभिन्न राज्यों में हो रही हैं।
बर्बादी के यह दृश्य केवल वर्तमान सरकारों की ही देन नहीं हैं। पिछली सरकारें भी चाहे वे किसी भी बाढ़ व बारिश आपदा प्रभावित राज्यों में रही हों और चाहे जिस राजनैतिक दल की रही हों, किसी ने भी इस दिशा में ठोस क़दम नहीं उठाये और हर एक सरकारों ने इस की आड़ में जमकर लूट खसोट की। बाँध की मिट्टी डालने और उसके बाढ़ में बह जाने के खेल में ही खरबों रूपये की लूट पाट कई राज्यों में होती रही है। शहरों व क़स्बों में अकारण और बिना किसी ठोस योजना के सड़कें व गलियां बार बार ऊँची की जा रही हैं। और बाज़ार मोहल्ले यहाँ तक कि नई आबादी वाले सुविधा संपन्न सेक्टर आदि भी डूबे पड़े हैं। शुरूआती मानसून में ही नाले भरे हैं, गड्ढे भर चुके, पानी की निकासी की कोई समुचित व्यवस्था नहीं। ऐसे में जब सड़कें व गलियां सरकार, प्रशासन व ठेकेदारों के ‘संयुक्त भ्रष्टाचार’ के चलते अकारण ऊँची कराई जायेंगी तो निश्चित रूप से लोगों के घर भी डूबेंगे, उनके घरों का सामान भी क्षति ग्रस्त होगा, बीमारी भी फैलेगी और ढेरों असुविधाओं का सामना भी करना पड़ेगा।
एक तरफ़ तो जनता पहले ही बेरोज़गारी व भीषण मंहगाई से त्रस्त है। व्यापारी से लेकर आम आदमी तक पैसों पैसों का मोहताज हो रहा है। और उसी पर अपना घर तोड़ कर नया घर बनाने की मार भी पड़ जाये? उसे अपने घर का बेड, सारा फर्नीचर कपड़े लत्ते आदि की बर्बादी का सामना करना पड़े? बाज़ार की दुकानों में पानी भर जाये और लाखों करोड़ों का नुक़्सान उन दुकानदारों को सहना पड़े जिनकी अभी कोरोना काल की मार से कमर भी सीधी नहीं हुई? आख़िर यह कैसी योजनायें हैं जिनसे जनता परेशान होती है?क्या लूट खसोट और भ्रष्टाचार के ‘नायक ‘ बनने के लिये जनता अपना नेता चुनती है? क्या अधिकारी इसी तरह अपना कर्तव्य निभाते हैं? यदि आप किसी ज़िम्मेदार व्यक्ति से बात करें तो आपको बेहयाई भरे हास्यास्पद जवाब भी सुनने को मिलेंगे। जैसे अरे आप को अपने घर, गली मोहल्ले की पड़ी है फ़लां जगह तो डी एम का ऑफ़िस डूबा हुआ है, वहां तो बैंक में पानी भर गया, अमुक स्थान पर तो कमेटी का दफ़्तर ही डूब गया, वहां थाने में पानी भरा है, कचेहरी डूब गयी…. आदि आदि। ठीक उसी तरह जैसे कुछ लोग तर्क देने लगते हैं कि -‘अरे आप को भारत में सौ रूपये लीटर पेट्रोल मंहगा लगता है ज़रा पाकिस्तान में देखिये 234 रूपये’ लीटर मिल रहा है।
सरकार को चाहिये कि यथाशीघ्र उच्च स्तरीय व्यवस्था कर लोगों के घरों, मोहल्ले बाज़ारों को बार बार डूबने व घरों दुकानों में पानी भरने जैसी समस्या से निजात दिलाये। गलियां, सड़कें नाली नाले खोद कर पुराने लेवल पर ही रखे जाएँ। और जो भी निर्माण हो वह ठोस, मज़बूत व टिकाऊ हो। यदि बार बार गलियां, सड़कें नाले नालियां या सीवरेज मेनहोल के जंक्शन धंस जायें तो उसकी पूरी ज़िम्मेदारी उस नेटवर्क की हो जिसकी देखरेख में वह बनाया व बनवाया गया है। और यदि इसी भ्रष्ट, गैरज़िम्मेदार नीति पर चलते हुए देश की जनता को डुबोकर मारना ही सत्ता या व्यवस्था का कोई गुप्त एजेंडा है फिर तो सत्ताधीशों को यह भी समझ लेना चाहिये कि देश इसी डूबने वाली जनता से मिलकर ही बना है। और जनता के डूबने का अर्थ है देश का डूबना। ‘लंका एपिसोड’ को भी नज़र अंदाज़ नहीं करना चाहिये। आश्चर्य की बात है कि व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार, बारिश के दिनों में जनता की हाहाकार पर भारी पड़ता नज़र आ रहा है।
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