राजपक्षे की अदूरदर्शिता
-सिद्धार्थ शंकर-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
श्रीलंका में आर्थिक तबाही के बाद भड़के जन विद्रोह के बीच राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे बुधवार तड़के कोलंबो से भाग निकले। श्रीलंका की वायुसेना के विमान से अपनी पत्नी व अंगरक्षकों के साथ मालदीव की राजधानी माले पहुंच गए। आज ही वे इस्तीफा देने वाले थे, लेकिन उसके पहले वह देश छोड़कर चले गए। श्रीलंका के पीएम कार्यालय ने भी पुष्टि की है कि राजपक्षे देश छोड़कर चले गए हैं। गोटबाया के श्रीलंका छोडऩे के बाद बड़ा राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है। श्रीलंका में राष्ट्रपति का वही ओहदा या अधिकार होता है जो भारत में प्रधानमंत्री का। भ्रष्टाचार और अर्थव्यवस्था संभालने में विफल रहने के कारण श्रीलंका में कई महीनों से बवाल जारी था। बीते दिनों जनता सड़कों पर उतर आई और सैकड़ों लोग राष्ट्रपति भवन में घुस गए थे। उसके बाद से राजपक्षे लापता थे। इसी बीच उन्होंने एलान किया था कि वे 13 जुलाई को पद छोड़ देंगे। खबर है मिक राजपक्षे के भाई व पूर्व वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे ने भी श्रीलंका छोड़ दिया है। 71 साल के बासिल को श्रीलंका की आर्थिक बदहाली का बड़ा जिम्मेदार बताया जा रहा है। राष्ट्रपति राजपक्षे ने श्रीलंका की संसद स्पीकर महिंदा यापा अभयवर्धने और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे दोनों को सूचित किया था कि वे 13 जुलाई को इस्तीफा दे देंगे। स्पीकर अभयवर्धने को बुधवार को राष्ट्रपति राजपक्षे के इस्तीफे की घोषणा करने की उम्मीद थी। इस बीच, श्रीलंका के राजनीतिक दलों ने सर्वदलीय सरकार बनाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। इसके बाद दिवालिया हो चुके देश को अराजकता से बचाने के लिए 20 जुलाई को नए राष्ट्रपति के चुनाव का फैसला किया है। अब श्रीलंका में भविष्य में कुछ भी हो, मगर अभी तो दुनिया के लोकतांत्रिक इतिहास में दर्ज हो गया कि पहली बार निहत्थी जनता ने सड़कों पर आकर, विधिवत एक निर्वाचित सरकार को उखाड़ फेंका, राष्ट्रपति भवन पर कब्जा किया और प्रधानमंत्री आवास को फूंक डाला। श्रीलंका की जनता ने पिछले मई में देश के सर्वशक्तिमान राजपक्षे परिवार के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को जान बचाकर भागने और नौसैनिक अड्डे पर शरण लेने को मजबूर कर दिया था। महिंदा की हैसियत अपने भाई, लगभग निवर्तमान हो चुके राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे से ज्यादा थी, क्योंकि उन्होंने ही राष्ट्रपति के नाते मई, 2009 में तमिल इलाकों को तहस-नहस करवाने के बाद लगभग ढाई दशक से चल रहे गृहयुद्ध को खत्म करवाया था। राजपक्षे परिवार ने तमिलों के पराभव को सिंहल बहुसंख्यकवाद के वर्चस्व की स्थापना के रूप में प्रस्तुत किया था। राजपक्षे परिवार की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश के शीर्ष चार पदों पर परिवार के लोग ही थे; इसके अलावा नौकरशाही, सेना और अन्य पदों पर भी इसी खानदान के लोग काबिज थे। सत्ता के अहंकार ने राजपक्षे परिवार को जनता के गुस्से का अहसास नहीं होने दिया। गोटबाया ने हिसाब लगाया कि दूसरे परिवार के रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री बनाकर संकट पर काबू पाया जा सकता है। इस तरह सर्जरी के केस को पेनकिलर से ठीक करने की कोशिश होती रही। लेकिन रोजमर्रा का संकट बढ़ता रहा। पेट्रोल-डीजल, खाने-पीने की चीजों और दवाओं की कमी ने आम आदमी की दुश्वारियों को असहनीय बना दिया। आज यह संकट पूरी दुनिया में श्रीलंका की जगहंसाई का कारण बन गया है।
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