हार्ड ही नहीं, सॉफ्ट ड्रिंक भी लिवर पर भारी
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
लिवर में फैट जमा होने का मतलब है, भविष्य में डायबिटीज होने का खतरा। हालांकि, इससे घबराने की नहीं बल्कि सजग होने की जरूरत है। खास बात ये है कि सिर्फ ज्यादा शराब पीने से ही लिवर खराब नहीं होता। बहुत ज्यादा सॉफ्ट ड्रिंक्स और डिब्बे वाले जूस पीने वालों में भी लिवर सिरोसिस बीमारी होने की आशंका उतनी ही होती है, जितनी शराब पीने वालों में। नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर के मामले भी उतने ही तेजी से सामने आ रहे हैं, जितने शराब पीने वालों के आते हैं।
डाॅक्टरों का कहना है कि नॉन एल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज लिवर संबंधी परेशानियों का बड़ा कारण बन चुकी है। यह टर्म उन मरीजों के लिए इस्तेमाल की जाती है जो बहुत कम एल्कोहल लेते हैं या बिल्कुल नहीं लेते, इसके बावजूद उनके लिवर में फैट जमा हो जाता है। इसका कारण मोटापा और डायबिटीज भी हो सकती है। भारतीय पुरुषों में इसके होने की संभावना ज्यादा पाई जा रही है। इसका संबंध कमर की चैड़ाई, इन्सुलिन रेजिस्टेंस, खून में फैट की ज्यादा मात्रा, हाई कोलेस्ट्रॉल से होता है। हमारे शरीर में फैट स्टोरेज सेल होते हैं, जहां फैट जमा होता रहता है। जब सेल में फैट ज्यादा हो जाता है तो वह शरीर के अन्य हिस्सों में जाकर जमने लगता है। इसका कुछ हिस्सा लिवर पर भी जमा होता है। उससे लिवर में सूजन आने लगती है और लिवर सिकुड़ने लगता है। लिवर में फैट ज्यादा होने से इन्सुलिन की उत्पादन क्षमता पर असर पड़ता है। यदि समय पर इलाज न किया जाये तो लिवर सिरेसिस भी हो सकता है।
शुरुआत में नहीं दिखते लक्षण: नॉन एल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज में शराब पीने वालों के मुकाबले लक्षण बहुत कम या होते ही नहीं। मरीज सिर्फ थकान, पेट के ऊपरी हिस्से में हल्की तकलीफ की शिकायत करता है। कुछ मामलों में हल्का पीलिया हो सकता है। शुरुआत में इसमें कोई खास लक्षण नहीं दिखता। इसलिए ज्यादा अलर्ट रहने की जरूरत है।
खतरे में कौन: फैटी लिवर का सबसे ज्यादा खतरा ओवरवेट, मोटापे और डायबिटीज रोगियों को होता है। इसलिए डायबिटीज होने या वजन बढ़ने पर समय-समय पर लिवर फंक्शन टेस्ट कराते रहना चाहिए। जैसे ही लिवर में चर्बी के लक्षण दिखें तो सतर्क हो जाना चाहिए। तुरंत विशेषज्ञ से मिलना चाहिए।
वजह क्या है:
-लिवर की इस बीमारी की वजह आनुवांशिक हो सकती। कई मामलों में बचपन में वैक्सीनेशन पूरी न होने के कारण समस्या आती है।
-जरूरत से ज्यादा दवाएं लेने से भी यह समस्या हो सकती है।
-यह वायरल, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों के असर से भी हो सकती है।
-ज्यादा सॉफ्ट ड्रिंक्स लेने वालों में लिवर की बीमारियां होना चिंता का विषय है। सॉफ्ट ड्रिंक्स या पैकेट वाले जूस के साथ रोजाना लगभग 31 ग्राम शुगर शरीर में जाती है। ऐसे में जिस रफ्तार से डायबिटीज के मरीज बढ़ रहे हैं, फैटी लिवर के मामले भी तेजी से बढ़ते जाएंगे।
क्या करें: खानपान व जीवनशैली को नियंत्रित करना चाहिए। नियमित एक्सरसाइज और प्राणायाम भी इलाज में मददगार होंगे। डॉ. आशीष भनोट का कहना है कि फैटी लिवर का पता लगने के बाद वजन सामान्य करने, पौष्टिक आहार लेने, रोज 30 मिनट एक्सरसाइज करने और अपनी मर्जी से कोई दवा न लेने की सलाह दी जाती है। आहार में फल, सब्जियां, नट्स लेने चाहिए। तेल में ऑलिव ऑयल का इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि शुरुआत में इसका पता चल जाए तो इलाज संभव है। बाद में धीरे-धीरे लिवर सिरोसिस का खतरा बढ़ जाता है, जो लाइलाज हो सकती है।
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