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लेख - June 17, 2021

आध्यात्मिक, सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन पर कोरोना महामारी का दुष्प्रभाव

-डॉ. शारदा मेहता-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

कोरोना महामारी के कारण हमारे आध्यात्मिक, सामाजिक और पारिवारिक जीवन पर अत्यधिक गहरा प्रभाव पड़ा है। हमारी सामाजिक व्यवस्था की नींव इतनी गहरी है पर लगता है वह भी अब दरक गई है। सामूहिक रूप से सम्मिलित होकर प्रायः सभी समाजों के समाजजन कई त्योहारों को मनाते थे, यथा होली, रंगपंचमी, मकर संक्रान्ति, अक्षय तृतीया, गणगौर तीज, वर्ष प्रतिपदा, लोहड़ी, करवा चैथ, शीतला सप्तमी, दीपावली, दशहरा, हनुमान जयन्ती, महावीर जयन्ती, शनिश्चरी तथा सोमवती अमावस्या तथा विभिन्न अवसरों पर आयोजित होने वाले मेले आदि। जो बच्चे वर्तमान में दो से पाँच वर्ष की आयु वाले हैं, वे तो इन त्योहारों का आनन्द ही नहीं उठा सके, क्योंकि कोरोना महामारी का यह दूसरा वर्ष है।
समाज में किसी भी परिवार में सुख या दुःख में परिचित तथा रिश्तेदार, सम्मिलित होना अपना परम कर्त्तव्य समझते थे। हर समय एक-दूसरे की सहायता के लिए तत्पर रहते थे। सब में एकता की भावना विद्यमान थी। भावनाएँ तो आज भी विद्यमान हैं किन्तु परिस्थितियाँ विपरीत हो गई हैं। सभी सहायता के लिए लालायित हैं पर विवश हैं। सामाजिक दूरी बनाए रखने के कारण कोई भी कुछ नहीं कर सकता है। केवल हम अपनी उपस्थिति मोबाइल फोन या आनलाइन माध्यमों से ही दर्ज करा सकते हैं जो केवल एक औपचारिकता ही है। इससे संबंधितों को एकाकीपन का आभास नहीं होता है। अब वृद्ध व्यक्ति भी घर के बाहर नहीं निकल सकते हैं। उनकी सामाजिक गतिविधियां लगभग समाप्त हो चुकी हैं। उनका प्रातः-सायं का भ्रमण बन्द हो चुका है। बगीचों में समवयस्कों के साथ, वार्त्तालाप, हँसी मजाक, विभिन्न विषयों पर होने वाली समसामयिक चर्चाएँ आदि सभी बन्द हैं। कई बुजुर्ग स्मार्ट फोन का उपयोग विधिवत नहीं कर सकते हैं। उनकी कर्णेन्द्रियाँ कमजोर होने से उन्हें बातचीत करने में कठिनाई होती है। आँखों की दृष्टि भी शिथिल होने से परिचितों के नम्बर्स ढूँढना भी बड़ा कष्टदायक प्रतीत होता है। समाज की वृद्ध महिलाएँ भी पहिले एक-दूसरे के सम्पर्क में रहती थीं। सायंकाल होने वाले भजन कीर्तन के कार्यक्रम में सम्मिलित होती थीं। अब कोरोना काल में यह सब कतई संभव नहीं है।
पारिवारिक परिस्थितियाँ भी परिवर्तित हो गई हैं। अपने कितने ही समीप के रिश्तेदारों की मृत्यु होने पर भी सम्मिलित नहीं हो सकते हैं। यदि मृत्यु कोरोना महामारी से हुई है, तब तो हालात और भी दयनीय हो जाते हैं। सन्तानें भी दूर खड़े रहकर ही अन्तिम दर्शन कर सकती हैं। यह कितनी बड़ी विडम्बना है। कोरोना की शृंखला को तोड़ने के लिए ये सभी बातें आवश्यक बताई गई हैं। दादा, ताऊ, काका, बुआ, नाना, मामा आदि के परिवार में भी आपस में मिलना-जुलना बंद सा हो गया है। कोरोना से संक्रमित यदि कोई हो तो हम भी संक्रमित हो जाएंगे और परिवार के अन्य सदस्यों को भी संक्रमित करेंगे। इस भय ने हमारी सारी मनोभावनाओं को कुंठित कर दिया है।
परिवार का हर सदस्य मानसिक तनाव में जी रहा है। घर का युवा वर्ग जो अपने कार्यस्थल पर जाता है तो घर के वृद्धजन का चिन्तित होना स्वाभाविक है। परस्पर दूरी तथा मास्क, नाश्ता-भोजन से भी ज्यादा आवश्यक हो गए हैं। बार-बार साबुन से हाथ धोना, सेनीटाइज करना, बाहर से आकर कपड़े बदलना, मास्क धोना, स्नान करना ये सब नियमित कार्य हो गए हैं। जरा सी खाँसी-सर्दी का होना भी हमारे मन में शंका उत्पन्न कर देता है। घर के सभी सदस्य परमपिता परमेश्वर से प्रतिदिन यही प्रार्थना करते हैं कि सभी जन कुशल मंगल से रहें।
जिन घरों में महिलाएँ भी नौकरीपेशा हैं, वहाँ तो परिस्थितियाँ विकट हैं। घरेलू सेवाकर्मियों की सेवाएँ भी अभी बन्द हैं, इसलिए घर के सभी काम समय सीमा में निपटाना ही है। ऑनलाइन, किराना सामान, फल, सब्जी, दवाइयाँ की सारी व्यवस्थाएँ संभालना, बैंकों आदि के वित्तीय कार्य को समयावधि में पूर्ण करना ही है। इसके अतिरिक्त परिवार के ६० वर्ष या उससे अधिक उम्र वाले व्यक्तियों को कोरोना महामारी के टीके लगवाने की व्यवस्था करना। शासन के नवीन नियमों के अनुसार 45 वर्ष की आयु वाले या इससे अधिक आयु वालों को भी टीका लगवाने के लिए प्रेरित करना। शासकीय चिकित्सालयों में यह सुविधा निःशुल्क उपलब्ध है, निजी चिकित्सालयों में निर्धारित शुल्क देकर १८ वर्ष से कम उम्र के बच्चों को भी टीके लगाने की योजना पर भी सम्पूर्ण विश्व में अनुसंधान चल रहा है। एक निश्चित अवधि के पश्चात् टीके की दूसरी डोज भी लगवानी आवश्यक है।
इसके अतिरिक्त घर के हर सदस्य की यह प्रमुख जिम्मेदारी है कि वह अपने घर के वातावरण को सुखद बनाएं। हर समय नकारात्मक बातें न करें। ऐसे कार्यों को प्रोत्साहन दें जिनसे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता रहे। घर में सभी सदस्यगण प्रातः-सायं एक निश्चित समयावधि में एकत्रित होकर अपने इष्टदेव का सस्वर स्मरण करें, किसी धार्मिक पुस्तक का वाचन करें, ध्यान लगाएं, इससे घर का वातावरण निर्मल होगा। अच्छे संस्कार का अंकुरण भी इन क्रियाकलापों से होगा। इस महामारी के समय शारीरिक स्वच्छता तथा मानसिक स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। मानसिक स्वच्छता से तात्पर्य है सद्विचार, परिष्कृत विचार। घर में भी स्वच्छता के नियम प्रत्येक सदस्यों को अनिवार्य रूप से मानना चाहिए। अपने आपको अनुशासनबद्ध रखना सबसे अधिक आवश्यक है। घर के सदस्य हमें बार-बार टोके और फिर हम कार्य करें यह उचित नहीं है। सात्विक भोजन, फलों का रस तथा विटामिन ‘सी्य लेकर अपनी रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाएँ। सेनीटाइजेशन, परस्पर दूरी, अनिवार्य रूप से मास्क का उपयोग, बार-बार हाथ धोना जैसी आदतों को हम अपना लेंगे तो अपने परिवार को इस भीषण कोरोना महामारी से निश्चित बचा लेंगे। भीड़ से बचना भी अति आवश्यक हो गया है।
किशोरों और बच्चों की मनःस्थिति तो और भी शोचनीय हो गई है। उनकी शारीरिक गतिविधियां बन्द हैं। पार्क तथा कॉलोनियों में भी वे मनोरंजन कर नहीं सकते हैं। मित्रों के घर भी जाना आना बन्द हैं। विद्यालयों में जाना बन्द होने से उनकी दिनचर्या भी प्रभावित हो गई है। वे चिड़चिड़े हो गए हैं क्योंकि कोई भी कार्य उनके मनोनुकूल नहीं हो सकते हैं। केवल माँ के सामने वे विविध प्रकार की खाद्य सामग्री बनाने को कहना उनके अधिकार क्षेत्र का कार्य है। दिनभर ऑनलाइन क्लासेस के कारण लेपटॉप, स्मार्टफोन्स लेकर बैठना उनकी नियति हो गया है। उनके खिलते मुस्कराते चेहरे उदास रहने लगे हैं। जो माता-पिता अपने बालकों को स्मार्ट फोन्स आदि डिवाइस से दूरी बनाए रखने के पक्षधर थे, उन्हें विवश होकर बच्चों को इन पर अध्ययन करने की अनुमति देना पड़ी है। किशोर बालकों को अपने भविष्य की चिन्ता सताने लगी है। सभी इस कोरोना महामारी को कोसते हैं। वे कहते हैं लगता है कलयुग का प्रारंभ हो गया है। श्रीरामचरितमानस में महाकवि तुलसीदासजी कहते हैं-
तामस बहुत रजोगुण थोरा कलिप्रभाव विरोध चहुं ओरा।
(श्रीरामचरितमानस, उत्तरकाण्ड दोहा १०३ ख (३))
प्रत्येक घर में रोगग्रस्त सदस्य ही दिखाई देते हैं-
एहि विधि सकल जीव जग रोगी, सोक हृदय भय प्रीतिवियोगी।
(श्रीरामचरितमानस उत्तरकांड दोहा १२१ ख (१))
प्रतिदिन असमय, मानवों की मृत्यु के समाचारों ने तो मन को और उद्वेलित कर दिया है। मुक्ति धाम में भी शवों को स्थान नहीं उपलब्ध हो रहे हैं। कई किशोर बच्चों के माता-पिता इस भयंकर महामारी में कालकवलित हो गए हैं। चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है। इस सृष्टि के पालनहार हम पर कब दयावन्त होंगे, यही आस लगाए हुए हम सब प्रतीक्षा में बैठे हुए हैं। इन निरीह बच्चों का क्या दोष है जिन्होंने अभी दुनिया को ठीक से परखा भी नहीं था। उनके सँजोए हुए सपने ध्वस्त हो चुके हैं। शायद कोई चमत्कार ही परिवर्तन ला सकता है। उनके अन्धकारमय जीवन में कोई आशा की किरण उदित हो ऐसी ईश्वर से प्रार्थना है। कुछ बच्चे अभी इतने छोटे हैं कि उन्हें कोई नौकरी भी नहीं प्राप्त हो सकती है। उनके घर सूने हैं। कोई पारिवारिक सदस्य उनकी सहायता करना चाहे तो भी उनका आना मुश्किल प्रतीत होता है। उन्हें आकर क्वारंटाइन होना आवश्यक है।
अभी तो सम्पूर्ण विश्व से यही समाचार आ रहे हैं कि कोरोना से मरने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। पिछले वर्ष की तुलना में यह स्ट्रेन अधिक खतरनाक है। यहाँ पर हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि स्व. (डॉ.) हरिवंशराय बच्चन द्वारा रहित ग्रंथ ‘अग्निपथ्य में लिखी गई पंक्तियाँ प्रासंगिक प्रतीत हो रही है-
शत्रु है अदृश्य यह
विनाश इसका लक्ष्य है।
कर न भूल, तू जरा भी न फिसल,
मत निकल, मत निकल, मत निकल।
हिला रखा है विश्व को,
रूला रखा है विश्व को।
फूँक कर बढ़ा कदम, जरा सँभल,
मत निकल, मत निकल, मत निकल।
उठा जो एक गलत कदम,
कितनों का घुटेगा दम।
तेरी जरा सी भूल से, देश जाएगा बदल,
मत निकल, मत निकल, मत निकल।
संतुलित व्यवहार कर,
बंद तू किवाड़ कर।
घर में बैठे इतना भी तू न मचल,
मत निकल, मत निकल, मत निकल।
महानायक अमिताभ बच्चन के स्व. पिताश्री द्वारा रचित यह कविता आज के सन्दर्भ में पूर्ण रूप से प्रासंगिक है। कविता का एक-एक शब्द कोरोना काल में पूर्ण रूप से समयानुकूल प्रतीत हो रहा है। इस सारगर्भित कविता का वाचन भारत सहित छह देशों की छात्राएँ एक साथ आनलाइन प्रस्तुत करेंगी। इस कार्यक्रम का आयोजन महा. सयाजी विश्वविद्यालय वडोदरा के संगीत विभाग द्वारा किया गया है। लगभग २५० छात्राएँ अपनों घरों से ही इसकी प्रस्तुति देंगी। इसका प्रस्तुतिकरण भरतनाट्यम तथा कत्थक शैली में होगा।
यही बात सभी वृद्ध जन नई पीढ़ी को समझा रहे हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने हजारों वर्षों पहिले वैज्ञानिकता के आधार को समझते हुए निवृत्तमान संवत्सर को ‘प्रमाद्य नाम दिया था। वास्तव में यह वर्ष कष्टप्रद प्रमाद में ही व्यतीत हुआ। अब जो वर्तमान संवत्सर वर्ष दि. १३-०४-२१ से प्रारंभ हो गया है, इसका नाम, ‘आनन्द संवत्सर्य है। भगवान से प्रार्थना है कि हमारा जीवन आनन्द से व्यतीत हो और यह वेद वाक्य हमारे विश्व का पथ प्रदर्शन करें-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग् भवेत्।।

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