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लेख - September 16, 2022

गोवा कांड के बाद भी जारी रहे भारत जोड़ो यात्रा!

-वर्षा भम्भाणी मिर्ज़ा-

-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-

समर्थन में आ रहे भारतवासी इसे भारत जोड़ो से ही देख रहे हैं। वे लोग उम्मीद से भर गए हैं जिनके मन और डीएनए दोनों विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं। जागृत होने की अपेक्षा उनसे भी हो गई है जो इसकी अनेकता में एकता को समझ नहीं पाए हैं। यह पंक्ति केवल निबंधों की शुरूआत भर के लिए नहीं है, यह भारत का सच है जो यहां के हर नागरिक की सोच में बसा हुआ है। इससे छेड़छाड़ उसके मन और सोच से छेड़छाड़ होगी। भारत झीनी चदरिया में सशक्त ताने-बाने के साथ बुना हुआ मज़बूत लोकतंत्र है। इसका ताना-बाना कोई तोड़ न सके यह सबकी ज़िम्मेदारी है- साझी।

कांग्रेसयुक्त भारतीय जनता पार्टी के गुलदस्ते में कुछ और फूल आ गए हैं। यह और भी नया है कि ये सभी अपने-अपने आस्था स्थलों की फेरी लगा कर आए थे, इस शपथ के साथ कि हम जहां के हैं वहीं रहेंगे और इसके सिवा कहीं नहीं जाएंगे। पार्टी में बने रहने की वफ़ादारी की कसम के बावजूद बेवफ़ाई। कहानी गोवा की है जो राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के राज्यों में तो शामिल नहीं है लेकिन अब चर्चा में ज़ोर-शोर से शामिल हो गया है। एक वक़्त में अपने सुंदर समुद्री किनारों और उदार संस्कृति के लिए चर्चा में रहने वाला गोवा अब राजनीतिक तोड़फोड़ के लिए बहस में रहने लगा है। एक समझ तो यह बनती है कि कांग्रेस अपने विधायकों को संभाल ही नहीं पा रही है। शपथ लेने के बावजूद वे दलबदल कर लेते हैं और फिर यह भी कहते हैं कि ‘मेरी भगवान से बात हो गई है।’ कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामथ ने दल बदलने के बाद यही कहा है। क्या इस दौर में जब सत्ता सबसे सब कुछ कराने का माद्दा रखती हो, तो क्या नैतिकता के कोई मायने रह गए हैं?

गोवा के आठ विधायकों का कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाना बताता है कि कांग्रेस भले ही भारत को जोड़ने की यात्रा निकाल रही है लेकिन इसके नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। जनता भले ही यात्रा से जुड़ रही है, इनके नेता कांग्रेस छोड़ रहे हैं। क्या नेताओं की दुनिया जनता से अलग है? क्या जीत के बाद नेताओं के सरोकार बदल जाते हैं? जिस जनता से वह हाथ जोड़कर वोट मांगता है, जीत हाथ लगते ही वह क्यों बदल जाता है? वैसे नेताओं की इस दुनिया में अकेली भाजपा ही नहीं और भी दल हैं जो अपने एतराज़ की पुड़िया यात्रा पर उछाल रहे हैं। बेशक, यात्रा चल रही है लेकिन कांग्रेस को भी ध्यान रखना होगा कि वह अपने ट्विटर हैंडल से ऐसा कोई संदेश न दे जिससे लगे कि तिरंगा लेकर चल रही यात्रा पर कहीं कोई राजनीतिक मकसद हावी हो रहा है।

गोवा में बुधवार को भाजपा में दाख़िल हुए कांग्रेस के आठ विधायकों में दिगंबर कामथ और विपक्ष के नेता माइकल लोबो भी हैं। ‘बाविसात बावीस प्लस’ यानी 2022 में 22 प्लस को वे फ़ख़्र से कह रहे हैं। इसी साल हुए चुनावों में भाजपा को कुल चालीस में से अठारह सीटें मिली थीं, तीन निर्दलीय और दो महाराष्ट्र गोमांतक पार्टी के सदस्यों के साथ मिलकर भाजपा ने गोवा में सरकार बना ली थी। कांग्रेस ने 13 और पहली बार गोवा की लहरों पर उतरी आप ने दो सीटें हासिल की थीं। अब हुए इस महाविलय से भाजपा के अपने विधायकों की संख्या 28 हो गई है। पांच का समर्थन है ही। इस तरह कुल 33 का आंकड़ा छू लेने के बाद गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत कहते हैं -‘कांग्रेस ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू की है लेकिन इधर गोवा में ‘कांग्रेस छोड़ो यात्रा’ शुरू हो चुकी है। मोदी जी को मज़बूत करने के लिए यह सिलसिला देश भर में चलेगा और भाजपा 400 सीटें जीतेगी। पार्टी यहां मज़बूत हुई है और 2024 के लोकसभा चुनावों में हम गोवा की दोनों सीटें जीतेंगे।’ मक़सद साफ़ है। भाजपा कार्यकारिणी ने अपने प्रमुखों को यह एजेंडा थमा दिया है कि कैसे भी हो, तोड़-फोड़ ही क्यों न करनी पड़े पर जीत दिलाओ। जवाब में कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने भाजपा के इस अभियान को ‘ऑपरेशन कीचड़’ नाम दिया है। जयराम का कहना है कि यात्रा की सफलता से भाजपा निराश है। भटकाने के लिए वह गलत सूचनाओं का डोज़ हर रोज़ अपने लोगों को सौंपती है।

गोवा के हालिया घटनाक्रम की भूमिका जुलाई महीने में ही बन चुकी थी और यह तय था कि कांग्रेस के कुछ विधायक पार्टी छोड़ेंगे। फिर भी उन्हें जोड़कर रखने के लिए कांग्रेस ने कुछ खास प्रयास नहीं किए। क्या यही अब कांग्रेस की नीति है, कि जाने वालों को जाने दो? साल 2019 में तो पार्टी के पंद्रह में से दस विधायक पाला बदलने के लिए रात के अंधेरे में विधानसभा अध्यक्ष के पास पहुंचा दिए गए थे। अबकी बार सब दिन के उजाले में हुआ है और अध्यक्ष भी गैर मौजूद थे। गोवा में इस विलय से कोई खलबली हो ऐसा भी नहीं है लेकिन मीडिया की सुख़िर्यों पर नियंत्रण रखने वाली पार्टी का काम हो गया है। बीच यात्रा में ऐसे शीर्षक राहुल भारत जोड़ रहे कांग्रेस टूट रही मीडिया मैनेजमेंट का बढ़िया नमूना ही माने जाएंगे।

इससे पहले केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ज़ोर-ज़ोर से झूठ बोल चुकी थीं कि राहुल गांधी स्वामी विवेकानंद की मूर्ति के दर्शन करने के लिये नहीं गए। जवाब में कांग्रेस ने वीडियो जारी कर दिया जिसमें वे दान पेटी में कुछ समर्पित करते भी नज़र आ रहे हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने राहुल बाबा की महंगी टीशर्ट पर तंज़ कसा, फिर रैली में बच्चों के इस्तेमाल की बात कही गई और यह भी कि जिन कंटेनरों में राहुल गांधी ठहरते हैं वे आलीशान हैं। बहरहाल, राहुल गांधी चल रहे हैं।

कन्याकुमारी से कश्मीर तक साढ़े तीन हज़ार किलोमीटर चलेंगे। यह चलना ही बदलना होगा। नेता भले ही छूटते जाएं लेकिन लोग जुड़ेंगे। देश की परंपरा में है कि हाल पूछने आने वाले का एहतराम किया जाता है, आदर किया जाता है दु:ख में आने वाले का और ज़्यादा। इसे आगे भी निभाया जाता है। ऋषि, साधु, महावीर, बुद्ध, सूफी, संतों से लेकर बापू तक सभी ने देश में यही किया है। छवि गढ़ने और छवि बनने के फ़र्क में भी यही होता है कि एक ने धूल फांकी होती है और दूसरे ने महल के सिंहासन को सुशोभित किया होता है। यह चक्र घूमता रहता है। यात्रा में मुलाकातियों से तब भी सहज रहना पड़ता है जब कैमरा बंद हो।

विरोध के स्वर केरल से भी चले हैं जहां कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार है और कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल। उनका कहना है कि भाजपा से यह कैसी लड़ाई लड़ रही है जिसमें उत्तर प्रदेश में तो केवल दो दिन हैं और हमारे प्रदेश केरल में यह यात्रा अठारह दिनों तक चलेगी। सीपीआईएम पार्टी ने ट्वीट किया ‘भारत जोड़ो या सीट जोड़ो अभियान … केरल में 18 दिन और उप्र में केवल दो। बड़ा अजीब तरीका है यह भाजपा और आरएसएस से लड़ने का।’ कांग्रेस चुप नहीं बैठी। कह डाला कि आपके मुख्यमंत्री मुंडुमोदी (छोटे मोदी) तो भाजपा की बी टीम हैं। यात्रा जिस तरह है वैसी ही नियोजित है आप अपना होमवर्क ठीक से करें। उल्लेखनीय है कि भारत जोड़ो यात्रा सर्वाधिक 21-21 दिन कर्नाटक और राजस्थान में होगी। भाजपा शासित महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में 16-16 दिन की यात्रा होगी। यह कहना मुनासिब नहीं होगा कि कांग्रेस भाजपा शासित राज्यों से बच रही है। संभव है कि यूपी और बिहार महागठबंधन के लिहाज़ से भी किसी नए समीकरण का आगाज़ हो। उत्तरप्रदेश और कश्मीर में यात्रा पांच दिन होगी।

तू-तू, मैं-मैं की यह होड़ अगले पांच महीनों तक जारी रहने वाली है। कांग्रेस के पास एकमात्र अवसर इसमें है कि वह चल रही होगी निरंतरता के साथ अलग-अलग राज्यों से। बीच-बीच में ग़ायब हो जाने का मौका उसे यहां नहीं मिलेगा। फिर चाहे वह थके या टूटे। यही इस यात्रा का हासिल होगा। निर्बाध यात्रा के बीच कुछ ग़ैर ज़रूरी क़वायदों से भी पार्टी को बचना होगा। यात्रा के समानांतर जो भी ट्वीट होंगे, वे सबके ध्यान में आएंगे। अपने ट्वीट में कांग्रेस ने जब खाकी हाफ पैंट को आग के साथ दिखाया तो कोहराम मचना ही था। यह आरएसएस की पुरानी वेशभूषा रही है जो अब फुल पैंट में बदल गई है। भाजपा प्रवक्ताओं ने कहा कि राहुल गांधी देश जोड़ने निकले हैं या देश में आग लगाने। यात्रा देश को जोड़ने के लिए तिरंगे के साथ हैं तो अनावश्यक आलोचनाओं से बचा जाना चाहिए। यात्रा में नफ़रत, कट्टरता, नकारात्मकता और पूर्वाग्रहों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। ट्विटर पर ट्रेंड होने के लिए पार्टी के जिन तरीकों से जनता निराश हो रही है वही सब अगर यहां का भी हथकंडा है तो निराशा पूरे देश के हिस्से आएगी। बेशक यह तो इस यात्रा का उद्देश्य नहीं है।

देखना होगा कि उन राज्यों में जहां भाजपा सत्ता में है वहां यात्रा का स्वागत-सत्कार कैसे होता है? जनता सड़क पर आ भी पाती है या नहीं? पूरे भारत में यह शांति से गुज़र सके तो यह किसी दल की नहीं भारत की जीत होगी। समर्थन में आ रहे भारतवासी इसे भारत जोड़ो से ही देख रहे हैं। वे लोग उम्मीद से भर गए हैं जिनके मन और डीएनए दोनों विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं। जागृत होने की अपेक्षा उनसे भी हो गई है जो इसकी अनेकता में एकता को समझ नहीं पाए हैं। यह पंक्ति केवल निबंधों की शुरूआत भर के लिए नहीं है, यह भारत का सच है जो यहां के हर नागरिक की सोच में बसा हुआ है। इससे छेड़छाड़ उसके मन और सोच से छेड़छाड़ होगी। भारत झीनी चदरिया में सशक्त ताने-बाने के साथ बुना हुआ मज़बूत लोकतंत्र है। इसका ताना-बाना कोई तोड़ न सके यह सबकी ज़िम्मेदारी है- साझी।

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