आर्थिकी में गिरावट का परिदृश्य
-डा. जयंतीलाल भंडारी-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
हाल ही में 17 जून को दुनिया की प्रसिद्ध ब्रोकरेज कंपनी यूबीएस सिक्योरिटीज इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर को काबू में करने के लिए राज्यों के द्वारा अप्रैल और मई में लगाए गए लॉकडाउन से चालू वित्त वर्ष 2021-22 की जून तिमाही में अर्थव्यवस्था में 12 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। जबकि पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 की जून तिमाही में अर्थव्यवस्था में 23.9 प्रतिशत की गिरावट आई थी। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में गिरावट के बाद तीव्र गति से वृद्धि मुश्किल होगी, जैसा कि पिछली बार राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन हटने के बाद देखा गया था। इसका कारण इस बार उपभोक्ता धारण कमजोर बनी हुई है क्योंकि लोग पिछले साल के मुकाबले महामारी की दूसरी लहर के असर को देखकर काफी चिंतित हैं।
गौरतलब है कि अभी जहां कोविड-19 महामारी की पहली लहर से मिली भारी गिरावट से देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह उबर नहीं पाई है, वहीं अब उसके सामने कोरोना की दूसरी घातक लहर कहर बनकर खड़ी हो गई है। हाल ही में प्रकाशित विभिन्न राष्ट्रीय और वैश्विक अध्ययन रिपोर्टों के मुताबिक कोविड-19 की दूसरी घातक लहर से भारत के सामने विकास दर की चुनौतियां बढ़ गई हैं। 4 जून को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए अपने पूर्व निर्धारित 10.5 फीसदी की आर्थिक वृद्धि के अनुमान को घटाकर 9.5 फीसदी कर दिया है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने भी अपने अनुमान को घटाकर 7.9 फीसदी कर दिया है जो पहले 10.4 फीसदी था। इसी तरह से वैश्विक संगठनों अमेरिकी ब्रोकरेज फर्म गोल्डमैन सैक्स, बार्कलेम, ओईसीडी तथा जेपी मॉर्गन आदि ने भी भारत के लिए विकास दर के अपने पूर्व निर्धारित अनुमानों को कम कर दिया है। उल्लेखनीय है कि देश के अधिकतर उद्योग-कारोबार कोविड-19 की दूसरी लहर के आने से पहले चालू वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान अपनी बिक्री में दो अंकों की वृद्धि को लेकर उत्साहित थे, लेकिन अब स्थिति वैसी नहीं रह गई है। दूसरी लहर ने उन संभावनाओं को भी घटाया है, जिनमें कहा जा रहा था कि पिछले वित्त वर्ष की आर्थिक निराशाएं चालू वित्त वर्ष में आर्थिक आशाओं में बदल जाएंगी। ज्ञातव्य है कि पिछले माह 31 मई को केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के द्वारा जारी किए गए वित्त वर्ष 2020-21 के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अंतरिम आंकड़ों के अनुसार जीडीपी में 7.3 फीसदी की गिरावट आई है। पिछले चार दशक से देश की जीडीपी वृद्धि दर कभी ऋणात्मक नहीं हुई थी। कोविड-19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन की वजह से 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि में 23.9 फीसदी की गिरावट आई थी। इसलिए पिछले पूरे वर्ष की गिरावट के अनुमान हर किसी के द्वारा लगाए जा रहे थे। फिर भी पिछले वित्तीय वर्ष के जीडीपी के आंकड़े अनुमान से संतोषप्रद रहने का प्रमुख कारण जनवरी से मार्च 2021 की चैथी तिमाही में सभी क्षेत्रों में काफी सुधार होने से जीडीपी में 1.6 फीसदी की वृद्धि होना रहा है। खासतौर से कृषि एवं सहायक क्षेत्र की वृद्धि पर पहली से चैथी तिमाही तक लगातार बढ़ते हुए दिखाई दी है। चूंकि देश में इस बार कोरोना की दूसरी लहर के बीच पिछले वर्ष 2020 की तरह पूरी तरह से देशव्यापी कठोर लॉकडाउन नहीं लगाया गया है, अतएव विनिर्माण सेक्टर की आपूर्ति पर अधिक बुरा असर नहीं पड़ा है।
आईएचएस मार्किट इंडिया मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स सूचकांक (पीएमआई) मई 2021 में घटकर 50.8 पर आ गया, जो अप्रैल में 55.5 अंक पर था। इस दौरान कंपनियों के पास नया काम और उत्पादन पिछले 10 महीनों में सबसे कम रहा। पिछले साल 2020 में मई में विनिर्माण पीएमआई घटकर 30.8 अंक रह गया था। इसी तरह आईएचएस इंडिया सर्विसेज पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) मई में गिरकर 46.4 पर आ गया, जो अप्रैल में 54 था। भारत के सेवा क्षेत्र में गतिविधियां 8 महीने में पहली बार संकुचित हुई हैं। लेकिन वर्ष 2021-22 के अप्रैल से मई महीनों में दूसरी लहर के दौरान संक्रमण में वृद्धि के कारण ग्रामीण एवं कस्बाई क्षेत्रों में खपत बुरी तरह प्रभावित हुई है। दूसरी लहर का कुल उपभोग, व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और सेवाओं पर बड़ा असर दिखाई दिया है। रेटिंग एजेंसी मूडीज का कहना है कि दूसरी लहर ने परिवारों और छोटे कारोबारों का वित्तीय जोखिम बढ़ा दिया है। इसके कारण आगे चलकर बैंकों के लाभ पर असर पड़ सकता है। सेंटर फॉर मॉनेटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट के मुताबिक देश में बेरोजगारी दर अप्रैल 2021 में 8 फीसदी थी। वह मई 2021 से 12 फीसदी पर पहुंच गई है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि केंद्र सरकार, विभिन्न राज्य सरकारों और आरबीआई ने महामारी की दूसरी लहर के बीच अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की मदद के लिए कुछ कदम अवश्य आगे बढ़ाए हैं। केंद्र सरकार ने गरीब परिवारों के लिए एक बार फिर मई 2021 से प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना शुरू की है। इससे 80 करोड़ लाभार्थी लाभान्वित होंगे। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना पर 26000 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होंगे। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि आरबीआई ने व्यक्तिगत कर्जदारों एवं छोटे कारोबारों के लिए कर्ज पुनर्गठन की जो सुविधा बढ़ाई है और कर्ज का विस्तार किया है, उससे छोटे उद्योग-कारोबार को लाभ होगा।
इस नई सुविधा के तहत 50 करोड़ रुपए तक के बकाए वाले वे कर्जदार अपना ऋण दो साल के लिए पुनर्गठित करा सकते हैं जिन्होंने पहले मॉरेटोरियम या पुनर्गठन का लाभ नहीं लिया है। स्वास्थ्य क्षेत्र की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए आरबीआई ने 50,000 करोड़ रुपए की नकदी की व्यवस्था की है। इसके अलावा आरबीआई ने 4 जून को पर्यटन, होटल और विमानन जैसे उन क्षेत्रों के लिए 15,000 करोड़ रुपए के नकदी समर्थन की घोषणा की, जो कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर से ज्यादा प्रभावित हुए हैं। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के कारण अर्थव्यवस्था के जिन सेक्टरों में भारी गिरावट दिखाई दे रही है, उन सेक्टरों की समस्याओं का शीघ्रतापूर्वक निवारण किया जाना होगा। लॉकडाउन से प्रभावित होने वाले उद्योग-कारोबार को गतिशील करने के लिए उपयुक्त राहत पैकेज सुनिश्चित किए जाने होंगे। हम उम्मीद करें कि सरकार कोरोना की दूसरी लहर से निर्मित मानवीय पीड़ाओं को कम करने के साथ-साथ विकास दर बढ़ाने हेतु टीकाकरण में तेजी, उद्योग-कारोबार के लिए उपयुक्त राहत पैकेज और नई मांग के निर्माण हेतु लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाने के लिए रणनीतिक रूप से आगे बढ़ेगी। निश्चित रूप से ऐसे प्रयासों से कोरोना की दूसरी घातक लहर की चुनौतियों के बीच भी चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 के अंत में विकास दर 7 से 8 फीसदी के आसपास केंद्रित होते हुए दिखाई दे सकेगी।
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