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लेख - December 12, 2022

विश्व मोटा अनाज वर्ष की अहमियत

-डा. जयंतीलाल भंडारी-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

इस समय जब एक दिसंबर को वर्ष 2023 के लिए भारत ने जी-20 की अध्यक्षता सम्हाल ली है, तब अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 की अहमियत और बढ़ गई है। हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 के दौरान भारत में वर्ष भर चलने वाले कार्यक्रमों के अग्रिम उद्घाटन के अवसर पर कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर आगामी वर्ष को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर) घोषित किया है। उन्होंने कहा कि अब सार्वजनिक वितरण प्रणाली में गेहूं-चावल की बजाय मोटे अनाज देने की जरूरत है। इससे पोषण सुधारने के साथ-साथ मोटे अनाज के उत्पादन और खपत को प्रोत्साहन मिलेगा। गौरतलब है कि मोटे अनाजों को पोषण का पावर हाउस कहा जाता है। पोषक अनाजों की श्रेणी में ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, चीना, कोदो, सावां, कुटकी, कुट्टू और चौलाई प्रमुख हैं। विभिन्न दृष्टिकोणों से मोटे अनाज की फसलें किसान हितैषी फसले हैं।

मोटे अनाज के उत्पादन में पानी की कम खपत होती है, कम कार्बन उत्सर्जन होता है। यह ऐसी जलवायु अनुकूल फसल है जो सूखे वाली स्थिति में भी उगाई जा सकती है। मोटा अनाज सूक्ष्म पोषक तत्वों, विटामिन और खनिजों का भंडार है। छोटे बच्चों और प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं के पोषण में विशेष लाभप्रद हैं। शाकाहारी खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के दौर में मोटा अनाज वैकल्पिक खाद्य प्रणाली प्रदान करता है। उत्पादन के लिहाज से भी मोटे अनाज कई खूबियों रखते हैं। इनकी खेती सस्ती और कम चिंता वाली होती है। मोटे अनाजों का भंडारण आसान है और ये लंबे समय तक संग्रहण योग्य बने रहते हैं। देश में कुछ दशक पहले तक सभी लोगों की थाली का एक प्रमुख भाग मोटे अनाज हुआ करते थे। फिर हरित क्रांति और गेहूं-चावल पर हुए व्यापक शोध के बाद गेहूं-चावल का हर तरफ अधिकतम उपयोग होने लगा। मोटे अनाजों पर ध्यान कम हो गया।

यद्यपि तकनीक एवं अन्य सुविधाओं के दम पर पांच दशक पहले की तुलना में प्रति हेक्टेयर मोटे अनाजों की उत्पादकता बढ़ गई है, लेकिन इनका रकबा तेजी से घटा और इनकी पैदावार कम हो गई। इनका उपभोग लगातार कम होता गया। स्थिति यह है कि कभी हमारे खाद्यान्न उत्पादन में करीब 40 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले मोटे अनाज की हिस्सेदारी इस समय 10 प्रतिशत से भी कम हो गई है। वस्तुत: इस समय एक बार फिर मोटे अनाज की अहमियत दो प्रमुख कारणों से उभरकर दिखाई दे रही है। एक, दुनियाभर में कुपोषण की चुनौती बढ़ गई है और दो, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण खाद्यान्न की कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई है। देश और दुनिया में भूख और कुपोषण की वर्तमान चुनौती का अनुमान हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के द्वारा प्रकाशित द स्टेट ऑफ फंड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वल्र्ड रिपोर्ट 2022 में लगाया जा सकता है। इसके मुताबिक वर्ष 2021 से जहां भारत में 22.4 करोड़ लोग भूख व कुपोषण की चुनौती का सामना करते हुए पाए गए हैं, वहीं पूरी दुनिया में करीब 76.8 करोड़ लोग इस चुनौती का सामना कर रहे हैं। ऐसे में देश में करोड़ों लोगों के लिए पोषण युक्त आहार की व्यवस्था सुनिश्चित करना जरूरी है। ज्ञातव्य है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013 के तहत सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने के लिए देश की लगभग दो तिहाई आबादी हकदार है।

सभी पात्र परिवारों को तीन रुपये किलो चावल, दो रुपये किलो गेहूं और एक रुपये किलो की दर से मोटे अनाज का वितरण आवश्यक है। इसके अलावा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के लिए भी अनाज का एक बड़ा भाग उपभोग में आ रहा है। इसके तहत अप्रैल 2020 से दिसंबर 2022 तक के लिए 80 करोड़ लोगों को अतिरिक्त रूप से 5 किलो राशन निशुल्क वितरण सुनिश्चित किया गया है। चूंकि गेहूं व चावल की तुलना में मोटे अनाज में पोषण तत्व अधिक हैं और ये किसान हितैषी फसलें हैं, अतएव इनका अधिक उत्पादन एवं अधिक वितरण किया जाना बहुआयामी उपयोगिता देते हुए दिखाई देगा। इसमें कोई दो मत नहीं है कि पिछले 8 वर्षों में सरकार ने मोटे अनाजों को लोगों थाली में स्थान दिलाने को लेकर बहुस्तरीय प्रयास किए हैं। भारत के अधिकांश राज्य एक या अधिक मिलेट (मोटा अनाज) फसल प्रजातियों को उगाते हैं।

खासतौर से अप्रैल 2018 से सरकार देश में मोटे अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए मिशन मोड में काम कर रही है। सरकार ने मोटे अनाज के न्यूनतम समर्थन मूल्य में राहतकारी वृद्धि की है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत मिलेट के लिए पोषक अनाज घटक 14 राज्यों के 212 जिलों में क्रियान्वित किया जा रहा है। साथ ही राज्यों के जरिये किसानों को अनेक सहायता दी जाती है। देश में मिलेट मूल्यवर्धित श्रृंखला में 500 से अधिक स्टार्टअप काम कर रहे हैं। मोटे अनाजों के वैश्विक उत्पादन में भारत का हिस्सा करीब 40 फीसदी के आसपास है। मोटे अनाजों के उत्पादन और निर्यात में पूरी दुनिया में भारत पहले क्रम पर है। देश में मोटा अनाज उत्पादन के शीर्ष राज्य राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और मध्यप्रदेश के द्वारा मोटा अनाज के उत्पादन के विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। खासतौर से मध्यप्रदेश में मोटे अनाज उत्पादन के लक्षित प्रयासों की ऊंची सफलता मिली है।

प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल के मुताबिक जिस तरह प्रदेश में मोटा अनाज उत्पादन को उच्च प्राथमिकता के साथ प्रोत्साहित किया जा रहा है, उससे मोटे अनाज के उत्पादन बढऩे के साथ इनका निर्यात भी तेजी से बढ़ा है। ऐसे में जरूरी है कि आगामी वर्ष 2023 में देश के विभिन्न प्रदेश अपने-अपने यहां उत्पादित होने वाले मोटे अनाजों के उत्पादन और उनके वितरण पर अधिक ध्यान देवें। हम उम्मीद करें कि भारत 2023 में जी-20 की अध्यक्षता करते हुए अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 के उद्देश्यों व लक्ष्यों के मद्देनजर देश और दुनिया में मोटे अनाजों के लिए जागरूकता पैदा करने में सफल होगा और इससे मोटे अनाज का वैश्विक उत्पादन बढ़ेगा, मोटे अनाज का वैश्विक उपभोग बढ़ेगा। साथ ही कुशल प्रसंस्करण एवं फसल चक्र का बेहतर उपयोग सुनिश्चित होगा। हम उम्मीद करें कि भारत के द्वारा वर्ष 2023 में मोटा अनाज वर्ष के तहत मोटे अनाजों के प्रति जागरूकता की प्रभावी रणनीति से एक बार फिर मोटे अनाज को देश के हर व्यक्ति की थाली में अधिक जगह मिलने लगेगी। इससे कुपोषण और खाद्य चुनौती का सामना किया जा सकेगा। साथ ही मोटे अनाज के निर्यात से अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त की जा सकेगी, जो भारत के लिए लाभदायक होगा।

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