कोरोना में आयुर्वेद के लिए अवसर
-डा. जयंतीलाल भंडारी-
-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-
इस समय जहां चीन में कोहराम मचा रहे कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन बीएफ.7 की वजह से बड़ी संख्या में मौत के मामले सामने आ रहे हैं, वहीं यह वायरस अमेरिका, ब्राजील, दक्षिण कोरिया, जापान और भारत सहित कई देशों में दस्तक दे चुका है। चीन सहित दुनियाभर में कोरोना संक्रमण से बचाव करने वाली दवाइयों की भारी कमी हो गई है और इनकी कीमतें कई गुना बढ़ गई हैं। ऐसे में एक बार फिर दुनिया में भारत की कोरोना रोधी आयुर्वेदिक दवाइयों व मसालों की नई मांग निर्मित होते हुए दिखाई दे रही है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि कोरोनाकाल में आयुर्वेदिक सेक्टर की अहमियत बढऩे के साथ-साथ आयुर्वेदिक बाजार तेजी से बढ़ा है। कोविड-19 की चुनौतियों के बीच आयुर्वेदिक बाजार को तेजी से आगे बढ़ाने हेतु सरकार प्रयासरत रही है। नि:संदेह कोरोना महामारी के वैश्विक संकट के दौरान भारत के सदियों पुराने आयुर्वेद को दुनिया भर में अपनाया गया है। भारत सरकार ने कोविड-19 से लडऩे के प्रयासों में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक संघटकों के उपयोग की सफल रणनीति बनाकर इसके निर्यात बढ़ाए। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक कोरोनाकाल में भारत के द्वारा जिस तरह दुनिया के 150 से अधिक देशों को आयुर्वेदिक दवाइयों और कृषि क्षेत्र से संबंधित मसालों का निर्यात किया गया, उससे भारत ने मानव कल्याण के साथ बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की कमाई का नया अध्याय भी बनाया। 21वीं सदी में भी पारंपरिक इलाज के तौर पर पहचान बनाने में कामयाब रहे आयुर्वेद ने काफी विश्वसनीयता हासिल की है और इससे आयुर्वेदिक बाजार बढ़ा है। हाल ही में 11 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 9वें विश्व आयुर्वेद कांग्रेस (डब्ल्यूएसी) के समापन समारोह और तीन राष्ट्रीय आयुष संस्थानों के उद्घाटन समारोह में कहा कि आयुर्वेद सिर्फ इलाज के लिए नहीं है। आयुर्वेद हमें जीवन जीने का तरीका सिखाता है।
उन्होंने कहा कि भारत में आयुष के क्षेत्र में करीब 40 हजार सूक्ष्म, लघु और मध्यम (एमएसएमई) उद्योग कार्यरत हैं जो अनेक विविध प्रोडक्ट दे रहे हैं। इनसे लोकल इकॉनमी को बड़ी ताकत मिल रही है। आठ साल पहले देश में आयुष इंडस्ट्री करीब-करीब 20 हजार करोड़ रुपए के आसपास ही थी। आज आयुष इंडस्ट्री करीब-करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए के आसपास पहुंच रही है। ऐसे में आगामी वर्ष 2023 से आईटी की तरह भारत के आयुर्वेदिक बाजार में भी तेजी से विस्तारित होने और इसके विदेशी मुद्रा की कमाई का नया तेजी से बढ़ता माध्यम बनने की सुकूनदेह संभावनाएं उभरकर दिखाई दे रही हैं। नि:संदेह केंद्र सरकार आयुर्वेद सहित पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली को अतिसक्रियता के साथ वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए आगे बढ़ी है। सरकार ने 50 से अधिक देशों के साथ आयुर्वेद सहित पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली को आगे बढ़ाने से संबंधित अनुसंधान विकास और शिक्षण-प्रशिक्षण के विभिन्न समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि 13 नवंबर 2020 को पांचवें आयुर्वेद दिवस के अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक टेड्रस अधानोम घेब्रेसस ने भारत में पारंपरिक दवाओं के लिए एक वैश्विक केंद्र की स्थापना सुनिश्चित की है। इसका उद्देश्य विश्व के विभिन्न देशों में परंपरागत और पूरक दवाओं के अनुसंधान, प्रशिक्षण और जागरूकता को मजबूत किया जाना है। निश्चित रूप से इस समय जब डब्ल्यूएचओ ने भारत में पारंपरिक दवाओं के वैश्विक केंद्र की स्थापना सुनिश्चित की है, तब भारत के आयुर्वेदिक दवाइयों के बाजार के बढऩे की नई संभावनाएं बढ़ी हैं।
ऐसे में अब आयुर्वेदिक दवाइयों के बाजार को देश और दुनिया में तेजी से बढ़ाने के लिए कई बातों पर ध्यान देना होगा। हमें मान्य तरीकों से आयुर्वेदिक दवाइयों के दस्तावेजीकरण की डगर पर आगे बढऩा होगा। हमारे द्वारा औषधीय पौधों को रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से पूरी तरह मुक्त रखा जाना होगा। दवाओं के निर्माण में भारी तत्वों का इस्तेमाल रोकना होगा। अब सरकार के द्वारा आयुर्वेद के नाम पर फूड प्रोडक्ट और अन्य उत्पादों का कारोबार करने वाले लोगों पर सतर्क निगाहें रखी जानी होगी। सरकार के द्वारा ऐसे नए नियम बनाए जाने होंगे ताकि फूड प्रोडक्ट की जो कंपनियां अपने ब्रांड को आयुर्वेदिक बता कर बेचती हैं, उनके दावों की जांच हो सके। चूंकि भारत दुनिया में औषधीय जड़ी-बूटियों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और इसे बॉटनिकल गार्डन ऑफ दि वल्र्ड यानी विश्व का वनस्पति उद्यान कहा जाता है। ऐसे में देश में औषधीय गुणों से भरपूर सैकड़ों तरह के पौधों के अधिकतम उत्पादन की नई रणनीति बनाई जानी होगी। हमें आयुर्वेदिक दवाइयों के बाजार को बढ़ाने के लिए कई और बातों पर भी ध्यान देना होगा। भारतीय औषध प्रणाली के तहत सभी औषधीय पौधों की समुचित बॉटनिकल पहचान कायम करनी होगी। औषधीय पौधों की प्रोसेसिंग वैज्ञानिक, आर्थिक और सुरक्षित तरीके से की जानी होगी। आयुर्वेदिक उत्पादों की क्षमता और सुरक्षा का निर्धारण करने के लिए फार्माकोलॉजिकल तथा क्लीनिकल अध्ययन बढ़ाया जाना होगा। आयुर्वेदिक दवाओं के लिए उपयुक्त नियमन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी होगी।
आयुर्वेदिक इलाज की प्रक्रियाओं का स्टंैडर्ड तय किया जाना होगा। यह ध्यान रखा जाना होगा कि आयुर्वेदिक आहार प्रोडक्ट की लेबलिंग, प्रेजेंटेशन और विज्ञापन में कंपनियां अनुचित रूप से यह गारंटी नहीं दे सके कि उनका उत्पाद किसी बीमारी के पूर्ण इलाज या उसे रोकने में पूर्णतया कारगर है। यह भी ध्यान रखा जाना होगा कि आयुर्वेदिक दवाएं, आयुर्वेदिक पद्धति पर बनी अन्य दवाएं, मेडिसिन प्रोडक्ट और ऐसी खाद्य सामग्री जिसमें आयुर्वेदिक तत्वों का इस्तेमाल न हुआ हो, वे आयुर्वेद उत्पादों के दायरे में नहीं आ पाएं। साथ ही आयुर्वेदिक प्रोडक्ट में सिर्फ नेचुरल फूड एडिटिव ही मिलाए जाएं। आयुर्वेदिक आहार में अनुपयुक्त रूप से विटामिन, मिनरल और एमिनो एसिड मिलाने की इजाजत नहीं हो। यह भी ध्यान रखा जाना होगा कि आयुर्वेदिक आहार बनाने वाली कंपनियां फूड प्रोडक्ट के पैकेट पर ऐसा कोई दावा नहीं करें जिससे ग्राहक भ्रमित हों। ग्राहकों को भ्रमित किए जाने संबंधी जांच होने पर कोई कमी निकलती है तो कंपनियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई सुनिश्चित की जानी होगी। कोई आहार या आयुर्वेद दवा कंपनी किसी बीमारी को रोकने का दावा करती है तो इसके लिए सुरक्षा मापदंडों के तहत पहले प्रोडक्ट की जांच कराकर लेबलिंग की अनुमति सुनिश्चित की जानी होगी। आयुर्वेदिक आहार प्रोडक्ट के पैकेट पर उपयुक्त जानकारी सुनिश्चित जानी होगी। हम उम्मीद करें कि अब देश का आयुर्वेदिक बाजार तेजी से आगे बढ़ेगा और देश में आईटी की तरह आयुर्वेद सेक्टर से विदेशी मुद्रा की चमकीली कमाई को भी मुठ्ठियों में लिया जा सकेगा। हम उम्मीद करें कि कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन बीएफ.7 और अन्य नए कोरोना वायरस के कारण देश में निर्मित कोरोना रोधी आयुर्वेदिक दवाइयां और मसाले फिर से दुनिया में कोरोना संक्रमण रोकने और लोगों के स्वास्थ्य कल्याण में अहम भूमिका निभाते हुए दिखाई देंगे।
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