बजट विश्लेषण : क्या इसी पतवार से चुनावी महासागर और होगा….?
-ओम प्रकाश मेहता-
-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-
बकौल मोदी जी अब आम चुनाव के मात्र 390 दिन शेष बचे हैं उन्होंने 10 दिन पहले अपनी पार्टी के आम कार्यकर्ताओं से इस अवधि में पूरा देश नाप लेने की अपील की थी अर्थात आदरणीय मोदी जी को अब चुनावी चिंता सताने लगी है और अब इसलिए उनकी सरकार ने इस चुनावी महासागर को सफलतापूर्वक पार कर लेने के लिए चुनावी बजट की पतवार का सहारा लिया है जिसमें देश के आम वोटर को साधने का प्रयास किया गया है।
वैसे यदि किसी भी बजट को आम आदमी की नजर से देखा जाए तो यह सामने आता है कि आम आदमी की बजट में सिर्फ दो ही तथ्यों पर नजर रहती है पहली टैक्स (कर) पर और दूसरी मौजूदा महंगाई से निबटने के सरकारी प्रयास पर और केंद्र के इस बजट को भी देश के आम मतदाता ने इसी दो कसौटियों पर परखने की कोशिश की है जिसमें उसे हताशा हाथ लगी है क्योंकि जहां तक कर या टैक्स का सवाल है आयकर की सीमा सिर्फ 200000 बढ़ाई है और वसूलने के जो मापदंड थे उन्हें 7 से घटाकर पांच किया गया है बाकी पुराने टैक्स व मौजूदा टैक्स में कोई खास अंतर नहीं है यद्यपि कहा तो यह जा रहा है कि नई दो लाख की छूट से मध्यम वर्ग को काफी राहत मिलेगी लेकिन ऐसा किसी भी दशा दिशा में परिलक्षित नहीं होता। जहां तक दूसरे तथ्य महंगाई का सवाल है उसमें तो आम मतदाता को भारी निराशा हाथ लगी है क्योंकि एक भी दैनंदिनी जीवन उपयोगी वस्तु को बजट में छुआ तक नहीं गया है ना खाद्य वस्तु को और ना उपभोग की वस्तु को। कर यदि कम भी किए गए हैं तो ऐसी वस्तुओं पर जिनका आम आदमी से कोई लेना देना नहीं है जैसे लैड टीवी इलेक्ट्रिक गाड़ियां कैमरे के लेंस खिलौने ऑटोमोबाइल आदि हां साइकिल ही एक ऐसी चीज है जो आम आदमी के उपयोग की वस्तु है जिसके टैक्स कम किए हैं और महंगा क्या क्या हुआ? सोना चांदी प्लैटिनम किचन चिमनी आदि इसमें भी एक ही वस्तु ऐसी है जिसे महंगा करना वाजिब है और वह है सिगरेट। इसके साथ ही बजट में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में भी कटौती परिलक्षित होती है मनरेगा सामाजिक सुरक्षा पेंशन बाल पोषण आहार और मैटरनिटी लाभ की योजनाओं के लिए आवंटन घटा दिया गया है इन सब को मिलाकर देखा जाए तो जीडीपी के अनुपात में हम 20 साल बाद फिर उसी पड़ाव पर हैं जहां से चले थे। यद्यपि फिलहाल बजट सामने आया है अर्थशास्त्र के सिद्धहस्त डॉक्टरों द्वारा इसका पोस्टमार्टम बाकी है किंतु एक आम बुद्धिजीवी की नजर से बजट कैसा है? यही यहां रखने की कोशिश की गई है इसके अलावा और भी कई तथ्य सामने आ सकते हैं।
अब सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार व उनकी पार्टी इसी पतवार से सफलतापूर्वक चुनावी महासागर पार कर पाएगी या उसे और किन्ही पतवारो का सहारा लेना पड़ेगा? यद्यपि चुनाव के पहले यही सरकार 2-4 महीनों के लिए अगले साल के प्रारंभ में अंतरिम बजट प्रस्तुत करेगी किंतु चूंकि अगले 390 दिन इसी बजट के सहारे देश चलाना है इसलिए सिर्फ राजनीतिक दृष्टि से ही नहीं हर दृष्टि से यह बजट महत्वपूर्ण है। जिसमें खर्च राहत और मदद को विकास की रफ्तार के रूप में देखा जा रहा है। इसलिए यदि यह कहा जाए कि अपने शासन की तीसरी पारी के लिए मोदी जी का यह प्रयास है तो कतई गलत नहीं होगा।
वैसे क्योंकि अभी मोदी सरकार की अग्निपरीक्षा (आम चुनाव) में सवा साल का समय बाकी है इसलिए इस लंबी अवधि में महासंग्राम में जीत के और भी कई नुस्खे अपनाए जा सकेंगे तो कतई गलत नहीं होगा हां यह अवश्य है कि चूंकि अब सरकार व पार्टी के नेतृत्व का एकमात्र लक्ष्य चुनाव में विजय प्राप्त करना रह गया है तो ऐसे में आम मतदाता की परेशानियों को समझ कर उनसे मुक्ति के प्रयास करना सरकार के लिए असंभव सा लगता है इसलिए चुनाव तक आम वोटर को अपनी दैनंदिनी परेशानियों से जूझना ही पड़ेगा उनसे मुक्ति का सामना सिर्फ सपना ही बनकर रह जाने वाला है। फिर येन केन प्रकारेण केंद्र में सत्तारूढ़ सरकार व पार्टी को अपनी सत्ता को दीर्घायु बनाने के प्रयास में जुटे ही रहेंगे और इसके लिए नित नए प्रयोग भी किए जाएंगे। इसी श्रंखला का यह बजट भी एक प्रयास था। अब इसकी शल्यक्रिया प्रजातंत्र डॉक्टर जनता कैसे करते हैं वह उसके क्या प्रतिफल निकलते हैं? यही दर्शनीय होगा और इसी की प्रतिक्षा भी रहेगी।
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