महंगाई, मंदी एवं चुनाव से मजबूर बजट
-अनन्त मित्तल-
-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-
कुल मिलाकर आगामी साल का बजट अर्थव्यवस्था को मंदी और महंगाई से बचाकर चुनावी साल में सरकारी साख बचाने और पिछली योजनाओं को जारी रखन ेसहित कुछ नई याजनाओं का घोषणापत्र है। सरकार खुदमान रही है कि अगले माली साल में जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद की दर चालू साल के अनुमानित सात फीसदी से गिरकर 6.5फीसदी और राजकोषीय घाटे की दर 5.9 फीसदी रहने के आसार हैं। इससे साफ है कि अर्थव्यवस्था के कोविड के झटके से उबरने के सरकारी दावे के बावजूद उसके अगले साल भी हिचकोले खाते रहने के आसार हैं।
अलबत्ता बजट की रियायतों के खुमार में शेयर मार्केट के आज की तरह कुछ दिन सुर्खरू रहने के आसार हैं मगर बीती तिमाही और साल के वित्तीय आंकड़े नमूदार होते ही फिर से भंवर आना तय है जैसा हिंडन बर्ग के, खुलासे के बाद आया हुआ था। हालांकि अडानी समूह के शेयरों के दाम और गौतम अडानी की दौलत में भारी क्षरण का सिलसिला आज भी जारी रहा।
मालीसाल 2023-24 के लिए घोषित अमृतकाल का पहला आम बजट महंगाई, मंदी और चुनाव के गर लको आत्मसात करने की नीयत से बनाया गया है। साल 2019 में दोबारा निर्वाचित हुई बीजेपी की केंद्र सरकार का यह अंतिम बजट है मगर इस पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की छाप स्पष्ट दिखाई दे रही है। इसे आज सुबह लोकसभा में पेश करते हुए केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने आयकर में छूट, युवाओं के लिए अप्रेंटिसशिप और कौशल विकास योजना, महिला स्व सहायता समूहों को बढ़ावा, महिलाओं के लिए विशेष जमा योजना, वरिष्ठ नागरिक जमा योजना की राशि बढ़ाने, सूक्ष्म, लघु व मझोले उद्योगों की कोविडकाल की जब्तराशि 90 फीसदी तक लौटाने सहित तमाम लोक लुभावन तथा कुछ दूरगामी योजनाओं का भी एलान किया। अगले साल 2024 में आम चुनाव प्रस्तावित है सो केंद्र सरकार सिर्फ अनुदान मांगों से संबंधित विवरण ही लोकसभा में पेश करेगी। ये दीगर है कि बीजेपी सरकार आम चुनाव में फायदा बटोरने के लिए अगले पांच साल के अपने आर्थिक लक्ष्यों का बखान भी उस मौके पर करने से नहीं चूकती।
निर्मला के बजट में चुनाव के मद्देनजर जहां आदिवासियों, महिलाओं, सफाई कर्मचारियों और युवाओं के हित की घोषणा है वहीं मध्य वर्ग के हाथ में अधिक मासिक आय और रिटायर लोगों को वरिष्ठ नागरिक जमा योजना की सीमा दुगुनी करके महंगाई और मंदी की वैतरणी पार करने की कोशिश भी दिखाई दी है। इससे यह साफ हो गया कि केंद्र की नरेंद्र ्रमोदी सरकार अगले वित्तवर्ष के दौरान वैश्विक मंदी की आशंका से सहमी हुई है। उससे अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में होने वाली उथल पुथल के कारण महंगाई बरकरार रहने की आशंका को भी मोदी सरकार अपने इस लगातार दसवें आम बजट में स्वीकारती दिख रही है।
बजट में पूंजीगत खर्च बढ़ाकर 2023-24 में 10 लाख करोड़ रूपए करने की घोषणा के लिए रकम जुटाने को सरकार ने महिलाओं के साढ़े सात फीसदी सालाना ब्याज पर दो लाख रूपए दो साल वास्ते जमाकर ने और वरिष्ठ नागरिकजमा योजना में तीस लाख रूपए जमा करने देनेका दाव चला है। ये दीगर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन घोषणाओं को इनवर्गों के प्रति अपनी सरकार की सहानुभूति के रूप में जताया है जबकि अतिरिक्त जमा राशि पर ब्याज पर कर में किसी को कोई रियायत नहीं मिलेगी।
अर्थव्यवस्था में पिछले चार साल से आई गंभीर सुस्ती के कारण केंद्र सरकार पहले से ही कर्ज में डूबी है और नई योजनाओं तथा पुरानी योजनाओं में व्यय राशि बढ़ाने के लिए सरकार ने और अधिक कर्ज उठाने से बचने के लिए भी महिलाओं एवं बुजुर्गों के लिए बचत के नए प्रावधान किए हैं ताकि बजट में बचत का अनुपात बढ़ सके। गौरतलब है कि लॉकडाउन, कोविड, बेरोजगारी और महंगाई ने केंद्र सरकार के संसाधनों घरेलू बचत का योगदान घटाकर दस-ग्यारह फीसदी के बीच सीमित कर दिया है। इससे सरकार को अपने खर्च और विकास योजनाओं को पूरा करने के लिए बाजार दर पर कर्ज लेना पड़ रहा है। कर्ज पर ब्याज के अतिरिक्त भार से बचने को केंद्रीय और राज्य सरकारों को बहुधा अधिक ब्याज पर विशिष्ट बचत योजनाओं का एलान करना पड़ता है सो मौजूदा योजनाओं की घोषणा भी उसी कड़ी में हैं।
बजट में महंगाई घटाने का कोई ठोस उपाय नहीं दिखा उल्टे ……महंगे कर के सरकार ने मध्यवर्ग पर अतिरिक्त बोझ डाला है। चुनावी साल और राहुल गांधी की भारतजोड़ो यात्रा के एजंडे में सरकारी उद्यमों की बिक्री की निंदा के मद्देनजर बजट भाषण में विनिवेश यानी निजीकरण का कहीं कोई जिक्र नहीं है। पिछले बजट में हवाई अड़डों, बंदरगाहों, रेलवे सेवाओं, हाईवे सड़कों आदि के मौद्रीकरण यानी उनकी कीमत का अंदाजा लगाकर उन्हें निजी कंपनियों को सौंपने की बुलंद घोषणा के उलट निर्मलासीतारमण अपने भाषण में इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रहीं।
नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बजट में आदिवासी क्षेत्रों पर विशेश ध्यान देने का एलान है जिसमें आदिवासी बच्चें के स्कूलों में 38 हजार, 800 शिक्षकों की नियुक्ति, सिकलसेल महामारी से मुक्ति के लिए सात करोड़ आदिवासियों की जांच आदि सहित उनके लिए 15 हजार करोड़ रूपए के प्रावधान की घोषणा की गई है। गौरतलब है कि मेघालय, त्रिपुरा, नगालैंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों में इसी साल विधान सभा चुनाव हैं जहां आदिवासी आबादी बड़ी तादाद में है। कर्नाटक में भी मई में चुनाव है और राज्य कें मध्यवर्ती सूखा पीड़ित क्षेत्र में अपर भद्रा सूक्ष्म सिचांई योजना के लिए बजट में 5300 करोड़ रूप्ए के प्रावधान की घोषणा जोरशोर से की गई। जाहिर है कि इन राज्यों की चुनाव सभाओं में श्री मोदी के भाषण में इन सौगातों का जिक्र बाबुलंद सुनने को मिलेगा।
बजट में बाजरा, रागी, कोदो, कुटकी,सांवा, कुट्टू आदि मोटे अनाजों की पैदावार बढ़ाने पर विशेष ध्यान देने के लिए इन्हें श्री अन्न का दर्जा देने की घोषणा की गई। प्रधानमंत्री मोदी ने श्री अन्न योजना को आदिवासियों की आमदनी बढ़ाने और शहरी आबादी की सेहत सुधारने का अचूक फार्मूला बताया। इस साल को संयुक्त राष्ट्र ने भी अंतरराष्ट्रीय मिलेटवर्ष घोषित कर रखा है। महाराष्ट ्रमें सहकारी शक्करकारखानों को वित्तीय रियायतें भी बजट में दी गई है। इन कारखानों को चलाने वाली सहकारी संस्थाओं की अहमियत महाराष्ट्र की राजनीति में जगजाहिर है इसलिए इस घोषणा को भी आम चुनाव से जोड़ा जा रहा है।
प्रशासनिक सुधार के लिए बजट में सरकारी कर्मचारियों के कौशल संवर्घन एवं प्रशिक्षण का तो बजट में जिक्र किया गया मगर प्रशासनिक सुधार लागू करने, फिजूल खर्ची रोकने और कार्यदक्षता बढ़ाने की कोई नीयत नहीं दिखी। भारत जोड़ो यात्रा का असर निश्चित छात्रवृत्ति पर 47 लाख नए अप्रेंटिस भर्ती करने और युवाओं के लिए नई कौशल विकास योजना की घोषणा के रूप् में दिखा मगर रोजगार संवर्घन की कोई ठोस योजना सरकार पेश नहीं कर पाई। गौरतलब है कि देश की आधी आबादी फिलहाल युवा एवं कार्यक्षम श्रेणी में है मगर बेरोजगारी की दर आसमान छू रही है। साथ ही शहरी बेरोजगारी बढ़ने के लगातार अनुमानों के बावजूद बजट में उसकी रोकथाम एवं रोजगार संवर्घन की कोई योजना नहीं है।
बैटरी चालित वाहनों के लिए बजट में बड़ी राहत है। बैटरी एवं उनके चार्जर पर आयात शुल्क घटने से इलेक्ट्रिक वाहन जहां सस्ते होंगे वहीं देश के दूर दराज इलाकों तक फैले बैटरी रिक्षा मालिकों को अपनी बैटरी बदलना भी अब सस्ता पड़ेगा। इसकी मांग बैटरी वाहन चालक लंबे समय से कर रहे थे। इसके अलावा करों की दरों में फेरबदल से एलईडीटीवी और कालांतर में मोबाइल फोन भी सस्त हो सकते हैं। रसोई की बिजली वाली चिमनी का उत्पादन देश में बढ़ाने के लिए उस पर आयात शुल्क बढ़ाया गया है। बजट प्रावधानों से सिलेसिलाए कपड़े और सिगरेट के महंगे होने के आसार लगाए जा रहे हैं। सात लाख रूपए सालाना आमदनी पर आयकर की दर मामूली करने और छूट संबंधी बचत का दायरा बढ़ाने से लोगों के हाथ में अधिक पैसा आने के आसार है। इससे महंगाई और मंदी से त्रस्त सभी वर्गों को राहत मिलने तथा सरकार के प्रति आक्रोश घटने का बजट घोषणा से अनुमान है। इससे मंदी और महंगाई की आशंका के प्रति सरकार में अपनी अलोक प्रियता बढ़ने के डर का भी इजहार हो रहा है।
बजट में पूंजीगत व्यय 33 फीसदी बढ़ाकर 10 लाख करोड़ करने का वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री ने बुलंदी से दावा किया मगर उससे स्थानीय रोजगार बढ़ने की बहुत सीमित ही गुंजाइश है क्योंकि हाईवे से लेकरपुलों, रेलवे, मेट्रोरेलवे, हवाईअड्डों, बंदरगाहों आदि के निर्माण में भारीभरकम मशीनों का प्रयोग इतना अधिक कर दिया गया है कि इन परियोजनाओं में मजदूरों की मांग लगातार घट रही है। इससे कंपनियों का मुनाफा बढ़ता जा रहा है। कुल मिलाकर आगामी साल का बजट अर्थव्यवस्था को मंदी और महंगाई से बचाकर चुनावी साल में सरकारी साख बचाने और पिछली योजनाओं को जारी रखन सहित कुछ नई याजनाओं का घोषणापत्र है। सरकार खुदमान रही है कि अगले माली साल में जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद की दर चालू साल के अनुमानित सात फीसदी से गिरकर 6.5फीसदी और राजकोषीय घाटे की दर 5.9 फीसदी रहने के आसार हैं। इससे साफ है कि अर्थव्यवस्था के कोविड के झटके से उबरने के सरकारी दावे के बावजूद उसके अगले साल भी हिचकोले खाते रहने के आसार हैं।
अलबत्ता बजट की रियायतों के खुमार में शेयर मार्केट के आज की तरह कुछ दिन सुर्खरू रहने के आसार हैं मगर बीती तिमाही और साल के वित्तीय आंकड़े नमूदार होते ही फिर से भंवर आना तय है जैसा हिंडन बर्ग के, खुलासे के बाद आया हुआ था। हालांकि अडानी समूह के शेयरों के दाम और गौतम अडानी की दौलत में भारी क्षरण का सिलसिला आज भी जारी रहा। ताज्जुब ये कि देश के सबसे बड़े उद्योग समूह में कार्पोरेटग वर्नेंस में इतना व्यापक झोल उजागर होने के बावजूद बजट में इस बाबत एक भी सुधारात्मक उपाय की घोषणा नही है। देखना यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावी साल के दौरान इस बजट के प्रावधानों से वाकई बंधेंगे या चुनावी धुकधुकी के कारण पूरे साल नई नई योजनाओं के घोषणा से वित्तीय अनुशासन से पिछली नजीरों की तरह मनमानी करेंगे।
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