राजनीति का अपराधीकरण क्यों
-सनत जैन-
-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-
राजनीति में अपराध और अपराधियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। निर्वाचित प्रतिनिधियों में चुनाव जीतने के बाद अपने आपको विशिष्ट मानते हैं। वह अपनी संवैधानिक ताकत का उपयोग जब अपने राजनीतिक और निजी हितों के लिए करना शुरू कर देते हैं। उसके बाद राजनीति में अपराधीकरण का प्रवेश बड़ी तेजी के साथ होने लगता है भारत में जब से गठबंधन की सरकारें बनना शुरू हुई। विचारधारा और नैतिकता नेपथ्य में चली गई। उसके बाद से ही राजनेताओं और उनके समर्थकों का अपराधिक घटनाओं में लिप्त होना पाया जाने लगा। 1977 के बाद गठबंधन की सरकार बनना शुरू हुई। लोकसभा और विधानसभा में संख्या बल के आधार पर दलबदल जैसी बुराइयां आ गई। चुनाव जीतना और सत्ता में किसी भी तरह से बने रहना राजनेताओं की प्रथम प्राथमिकता बन गई। निर्वाचित प्रतिनिधियों का निजी हित सर्वोपरि हो गया। उसके साथ ही राजनेताओं और उनके आसपास बने रहने वाले लोगों के लिए स्वार्थ सिद्धी के लिये अपराध करना सामान्य बात मान ली गई। उन्हें राजनीतिक संरक्षण मिलने लगा। धीरे-धीरे यह जहर पिछले 30 वर्षों में इतना फैल गया है, जिस पर नियंत्रण कर पाना बहुत मुश्किल हो गया है।
2 तरह के अपराधी राजनीति में देखने को मिल रहे हैं। एक जो अपनी ताकत का प्रदर्शन करके लोगों की जमीन, संपत्ति, ठेके इत्यादि राजनीतिक संरक्षण और ताकत के बल पर कब्जा करते हैं। दूसरे वह अपराधी हैं, जो अपनी राजनीतिक ताकत के बल पर आर्थिक अपराध करते हैं। शासन और प्रशासन इन पर कार्यवाही करने के स्थान पर उल्टा संरक्षण देने लगता है। उसके बाद राजनेताओं और उनके आसपास जुड़े हुए लोग बेखौफ अपराध में लिप्त हो जाते हैं। इन पर कोई कार्यवाही भी नहीं हो पाती है। सरकार पुलिस और न्यायपालिका का संरक्षण भी इन्हें समय-समय पर मिलता है, जिसके कारण इन पर नियंत्रण करना मुश्किल है।
अतीक अहमद जब पहली बार विधानसभा के लिए चुना गया था। उसकी उम्र मात्र 27 वर्ष थी। विधायक बनने के बाद उसने लगातार कुलाटी खाते हुए एक दल से दूसरे दल मे जाकर संवैधानिक ताकत का दुरुपयोग स्वयं के लिए किया। वह राजनीतिक दलों के लिए मोहरा भी बना। सभी राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए इसी तरह के उम्मीदवारों का चयन करते हैं। जो अपने बाहुबल के आधार पर खुद चुनाव जीते और आसपास की सीटों पर प्रभाव डालते हुए चुनाव जिता दे। सभी राजनीतिक दल अपराधीकरण रोकने की दिशा में एकमत नहीं हो पाते हैं। खूंखार अपराधियों को सभी राजनीतिक दल टिकट दे रहे हैं। अदालतों में कई दशक मामले के निपटारे में लग जाते हैं। इस बीच में वह गवाहों को डरा धमका कर या सबूत को मिटा कर अदालत से भी निर्दोष साबित हो जाते हैं। ऐसे ही कई कुख्यात अपराधी भारत की संसद और विधानसभाओं में बिना किसी डर और भय के दशकों से बैठे हुए हैं।
एक तरफ हम कानून के राज की बात करते हैं। केवल गरीबों निस्सहाय पर ही कानून लागू होता है। बड़े-बड़े उद्योगपति, राजनेता और माफिया के ऊपर कानून लागू नहीं होते। सरकार-प्रशासन और पुलिस उन्हें कानूनों के प्रावधानों से बचाने का काम करती है। यदि जेल पहुंच भी गये तो जेल के अंदर से अपनी सभी गतिविधियां संचालित करते हैं। जेल में उन्हें सारी सुविधाएं मिल जाती हैं। जेल के अंदर से फिरौती और वसूली का धंधा चलता रहता है। सरकार अदालतें और पुलिस मोन बनकर तमाशा देखती रहती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 माह के अंदर राजनेताओं के अपराधिक प्रकरणों का फैसला कराने का भरोसा दिलाया था। उनके शासनकाल के 9 साल पूरे होने जा रहे हैं। वह भारत के सबसे सशक्त प्रधानमंत्री बने हुए हैं। इसके बाद भी राजनीति में अपराधी दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। यह चिंता का विषय है। 6 माह के अंदर किसी भी राजनेता का कोई भी प्रकरण न्यायालय से नहीं निपटा है। निपट भी गया है तो सरकारी संरक्षण में वह स्थगन लेकर संवैधानिक पदों पर बने रहते हैं।
जिस तरह से कानून की अनदेखी कर पिछले वर्षों में बिना नोटिस, बिना सुनवाई बुलडोजर चलाकर घर गिराने और एनकाउंटर करके अपराधियों को मारने का नया खेल शुरू हो गया है। सरकार में जो नेता बैठे हैं। उन्हें न्यायालयों का भी कोई खौफ नहीं रहा। पिछले कुछ समय से अब सरकारें न्यायालयों को भी अपने अधीनस्थ बनाने की कोशिश कर रही है। इससे रही-सही जो स्थिति न्याय पालिका की बनी हुई थी, वह भी समाप्त होती जा रही है।
हिंसा के बदले हिंसा करना, ना तो मानवीय गुण है, नाही हमारी परंपराएं हैं, नाही हमारा धर्म है। वर्तमान में जो स्थिति बन रही है, उसमें एक बार फिर हम आदम युग की ओर बढ़ते जा रहे हैं। जहां हिंसा के बदले हिंसा होती थी। एक राक्षस को मारने के लिए हम उससे बड़े बलशाली नए-नए राक्षस पैदा कर रहे हैं। यह भी सभ्य समाज की निशानी नहीं है। जिस दिन सरकार, पुलिस और न्यायपालिका अपनी जिम्मेदारी को नैतिक तरीके से समझ कर कार्य करने लगेगी, इस तरह की घटनाओं के लिए खुद को जिम्मेदार मानने लगेंगी, तभी सत्ता की ताकत के अपराधीकरण को रोका जा सकता है. इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
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