उच्च शिक्षा के लिए कड़ा संघर्ष
-डा. वरिंदर भाटिया-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
कोरोना के कहर के प्रभाव के चलते देश में उच्च शिक्षा में अनेक असंतुलित स्थितियां देखने को मिल रही हैं। इस साल भी देश के ज्यादातर छात्रों को बिना परीक्षा ही पास कर दिया गया है। इसमें स्कूली स्टूडेंट्स के अलावा विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के स्टूडेंट्स भी शामिल हैं। देश में कोरोना की दूसरी लहर के बीच अब भी यूनिवर्सिटी और स्कूल-कॉलेज बंद हैं। ऐसे में स्टूडेंट और शिक्षक ऑनलाइन पढ़ाई से संघर्ष कर रहे हैं। कोरोना से पैदा हालात से न सिर्फ पढ़ाई पर प्रभाव पड़ा है, बल्कि इससे रिसर्च और फील्ड वर्क भी बहुत प्रभावित हुए हैं। यह हमारी उच्च शिक्षा का एक जरूरी हिस्सा होते हैं। विज्ञान आधारित उच्च शिक्षा को लें तो विज्ञान के रिसर्चर के लिए लैब जितनी जरूरी होती है, कला और सामाजिक विज्ञान के रिसर्चर के लिए उतना ही जरूरी फील्ड वर्क और लाइब्रेरी होती हैं। इसके बिना रिसर्च संभव नहीं हो सकती है। कई महीनों से देश में रिसर्च करने वालों को न लाइब्रेरी के इस्तेमाल की सुविधा है और न ही फील्ड वर्क संभव है। देश के अग्रणी विश्वविद्यालयों में रात में 6-8 घंटे के लिए लाइब्रेरी बंद हो जाती थी, तो स्टूडेंट आंदोलन कर देते थे। अब यह पूरी तरह से बंद है। ऐसे में स्टूडेंट के नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता है। महामारी से स्टूडेंट्स के प्रभावित होने का एक आर्थिक पक्ष भी है।
ऑनलाइन क्लासेज से पढ़ाई का खर्च बहुत बढ़ गया है, जिसकी मार सबसे ज्यादा गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों के स्टूडेंट्स पर पड़ी है। आइए, तर्क को विचारें। एक औसत स्मार्टफोन जिसमें 4-जी इंटरनेट काम करे, उसका दाम 7000 रुपए से ज्यादा होता है। फिर अगर हम दिन भर में स्टूडेंट की 180 मिनट की ऑनलाइन क्लास लें तो उन्हें एक जीबी से ज्यादा डेटा की जरूरत होगी, जिसके लिए उन्हें महीने में 500 रुपए से ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे। क्या कोई गरीब परिवार का बच्चा यह खर्च उठा सकता है? इससे सबसे ज्यादा आर्थिक तौर पर कमजोर समुदायों से आने वाले छात्र प्रभावित हुए हैं। हाल ही में राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया गया था कि बिहार में एक किसान परिवार की औसत आय 3558 रुपए प्रति माह और उत्तर प्रदेश में 4923 रुपए प्रति माह है। देश में अनेक राज्यों में ऐसी ही आर्थिक स्थितियां हैं। अब इनके जैसे परिवारों से जुड़े छात्र कैसे ऑनलाइन स्टडी कर पाएंगे? इसके लिए ऑनलाइन शिक्षा की फंडिंग का फंडा अत्यंत गंभीरता से तलाशा और तराशा जाना चाहिए। इंजीनियरिंग के अनेक स्टूडेंट कहते हैं कि कई सब्जेक्ट ऐसे हैं जिनमें लैब में प्रैक्टिकल की जरूरत होती है, लेकिन ऑनलाइन क्लासेज के चलते अब तक उन्होंने लैब देखी ही नहीं है। उनका कहना है कि हमें इन लैब एक्सपेरिमेंट से जुड़ी क्लिप भेज दी जाती हैं, जिन्हें देखकर हमें सीखने को कहा जाता है। लेकिन इससे हमें न ही केमिकल की सही जानकारी मिलती है और न उनकी गंध पता चल पाती है। ऐसे प्रैक्टिकल से कुछ सीख पाना मुश्किल होता है। परीक्षाओं में भी हमसे इसी बेस पर सवाल कर लिए जाते हैं। अनेक उच्च शिक्षा के प्रोफेसर साहिबान कहते हैं कि छात्रों को जो ऑनलाइन एक्सपेरिमेंट दिखा पा रहे हैं, वो बहुत अच्छी स्थिति में हैं। परंतु ज्यादातर स्टूडेंट ग्रामीण इलाकों से हैं और 90 फीसदी के पास लैपटॉप नहीं हैं।
असल समस्या तब होती है जब हम परीक्षा कराने की कोशिश करते हैं। स्टूडेंट नेटवर्क की उपलब्धता न होने के चलते घर से दूर आकर या दूसरों की छत पर चढ़कर परीक्षा देने को मजबूर होते हैं। इसके अलावा रिसर्च सब्जेक्ट में प्रैक्टिकल बहुत जरूरी होते हैं, लेकिन लैब बंद हैं। मुझे उन स्टूडेंट्स की बहुत चिंता है जो फिलहाल पास किए जा रहे हैं। वे बिना प्रैक्टिकल स्किल के आगे किस तरह पढ़ सकेंगे? अनेक प्रोफेसर मानते हैं कि उनकी ऑनलाइन क्लास में 60 से ज्यादा बच्चे हैं। न ही सबको ऑनलाइन सवाल करने का मौका दे सकते हैं, न ही सबके चेहरे देखकर किसी टॉपिक पर उनकी शंका भांप सकते हैं। ऐसे में पढ़ाने का तजुर्बा मोनोलॉग जैसा हो गया है। खुद ही सवाल करते हैं, खुद ही जवाब देते हैं। स्टूडेंट्स भी इससे बोर हो चुके हैं। एक अन्य समस्या है कि भारत में 10वीं, 12वीं कक्षाओं में बच्चों पर पढ़ाई का बहुत दबाव होता है। ऐसे में वे इन कक्षाओं में स्पोर्ट्स और दूसरे शौक छोड़कर सिर्फ पढ़ाई करते हैं। वे सोचते हैं कि जब कॉलेज जाएंगे तो फिर से स्पोर्ट्स, आर्ट्स या थियेटर शुरू करेंगे। लेकिन दो सालों से यह सपना ही बना हुआ है। इन सारी चीजों के बिना ऑनलाइन पढ़ाई का अनुभव बहुत बोरिंग होता जा रहा है। इस बात को हमें गंभीरता से लेना होगा कि कहीं आने वाले दिनों में छात्र और शिक्षक ऑनलाइन शिक्षा से जुड़ी संजीदगी ऑफलाइन मोड में न ले आएं। बेहतर है कि व्यवस्था द्वारा कोरोना वायरस से शिक्षा पर प्रभाव का अध्ययन कर ऑनलाइन शिक्षा का इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने की दूरदर्शिता दिखाई जाए और एक ऐसी योजना जो फिलहाल ऑनलाइन शिक्षा को स्पीडअप करने के काम आ सकती है, उसकी फंडिंग अधिक की जाए। साल 2016 में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री ने 2017 में हायर एजुकेशन फाइनेंसिंग एजेंसी बनाने की घोषणा की थी, जिसके जरिए 2022 तक भारतीय बाजार से एक लाख करोड़ रुपए जुटाकर केंद्रीय शैक्षिक संस्थानों को लोन के तौर पर देना था, ताकि वे अपने मूलभूत ढांचे का विकास कर सकें। डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने में भी इसकी मदद ली जा सकती थी। लेकिन इस एजेंसी का बजट इस समय बहुत कम कर दिया गया है।
इस पर हम जरूर विचार करें। इसकी देश के छात्रों को, कॉलेजों को, विश्वविद्यालयों को जरूरत है। कोरोना जनित मजबूर हालात में ऑनलाइन शिक्षा अपनी चमक और सार्थकता न खोए, इसके लिए कॉलेज और विश्वविद्यालयों में ऑनलाइन शिक्षा के लिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के लिए स्पेशल फंड्स रिलीज करना उपयुक्त होगा। कोरोना काल में कुल मिला कर उच्च शिक्षा के लिए संघर्ष बढ़ गया है। यह संघर्ष कठिन और चुलबुला है। तमाम प्रयत्नों के बावजूद ऑनलाइन शिक्षा की कमियों के कारण छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही है। उच्च शिक्षा संस्थाओं में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के चलते मुश्किलें हल होना आसान नहीं है। इस काल में शिक्षित छात्र किस हद तक नौकरी के काबिल होंगे या अपना कामकाज स्किल्ड तरीके से कर सकेंगे, यह एक सवाल है। हमारे अध्यापक भी एकेडेमिक डिलीवरी के मामले में पूर्णता का अनुभव नहीं कर पा रहे हैं। इसके लिए हमें उच्च शिक्षा की समग्रता को स्थापित करना होगा। इससे जुड़ी नीतियों को नई शिक्षा नीति के दिशा-निर्देशों के अनुरूप पुनः परिभाषित और लक्षित करना होगा। यह काम करने के लिए सरकारी व्यवस्था को विद्वता के साथ तुरंत आगे आना होगा। तभी समस्या का हल होगा।
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