Home खेल कुश्ती में बीजिंग से शुरू हुई ‘पदक’ यात्रा को तोक्यो में मिल सकता है नया मुकाम
खेल - July 8, 2021

कुश्ती में बीजिंग से शुरू हुई ‘पदक’ यात्रा को तोक्यो में मिल सकता है नया मुकाम

नई दिल्ली, 08 जुलाई (ऐजेंसी/अशोक एक्सप्रेस)। यूं तो ओलंपिक में किसी भारतीय ने पहला व्यक्तिगत पदक कुश्ती में जीता था लेकिन इस खेल में देश को विश्व स्तर पर पहचान पिछले तीन ओलंपिक खेलों में मिली जिसे बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट जैसे पहलवान तोक्यो में नये मुकाम पर पहुंचाने की कोशिश करेंगे।

भारत ने ओलंपिक में हॉकी के बाद सर्वाधिक पदक कुश्ती में जीते हैं। कुश्ती में अभी तक भारत ने एक रजत और चार कांस्य पदक सहित कुल पांच पदक हासिल किये हैं। इनमें सुशील कुमार का एक रजत और एक कांस्य पदक भी शामिल है।

तोक्यो में 23 जुलाई से शुरू होने वाले ओलंपिक खेलों में भारत के सात पहलवान अपना दम ठोकेंगे। इनमें से सभी अपने वजन वर्ग में पदक के दावेदार हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे बजरंग पूनिया (पुरुष फ्रीस्टाइल 65 किग्रा), विनेश फोगाट (महिला 53 किग्रा) और सोनम मलिक (महिला 62 किग्रा) को प्रबल दावेदार माना जा रहा है।

इन तीनों के अलावा कुश्ती में जो अन्य भारतीय अपनी दावेदारी पेश करेंगे उनमें सीमा बिस्ला (महिला 50 किग्रा), अंशु मलिक (महिला 57 किग्रा), रवि कुमार दहिया (पुरुष फ्रीस्टाइल 57 किग्रा) और दीपक पूनिया (पुरुष फ्रीस्टाइल, 84 किग्रा) शामिल हैं।

इस तरह से भारत के तीन पुरुष और चार महिला पहलवान तोक्यो में अपनी चुनौती पेश करेंगे। ग्रीको रोमन में कोई भी भारतीय पहलवान ओलंपिक के लिये क्वालीफाई नहीं कर पाया था। तोक्यो में कुश्ती के मुकाबले एक अगस्त से शुरू होंगे। विनेश का मुकाबला पांच अगस्त और बजरंग का इसके एक दिन बाद होगा।

ओलंपिक में कुश्ती का और भारतीय कुश्ती का लंबा इतिहास रहा है। यह खेल प्राचीन ओलंपिक का भी हिस्सा था। पहले ओलंपिक खेलों (1896) के लिये जिन दस खेलों का चयन किया गया था उनमें कुश्ती भी शामिल थी। पहले ओलंपिक खेलों के बाद केवल पेरिस में 1900 में खेले गये ओलंपिक खेल ऐसे रहे जिनमें कुश्ती शामिल नहीं थी।

भारत ने पहली बार एंटवर्प ओलंपिक खेल 1920 में दो पहलवानों को उतारा था। इसके बाद 1924, 1928, 1932 और 1976 के ओलंपिक खेल ही ऐसे रहे जिनमें भारत ने कुश्ती में हिस्सा नहीं लिया।

पहलवान रणधीर सिंह 1920 में भारत को पहला ओलंपिक पदक दिलाने के बेहद करीब पहुंच गये थे, लेकिन आखिर में यह श्रेय खशाबा जाधव को मिला था। भारतीय कुश्ती के इतिहास में 23 जुलाई 1952 का दिन विशेष स्थान रखता है क्योंकि इसी दिन जाधव ने हेलंसिकी ओलंपिक में बैंथमवेट में कांस्य पदक जीता था। महाराष्ट्र के गोलेश्वर में 15 नवंबर 1926 को जन्में जाधव ने पहले राउंड में कनाडा के एड्रियन पोलिक्विन पर 14 मिनट 25 सेकेंड तक चले मुकाबले में जीत दर्ज की और अगले राउंड में मैक्सिको के लियांड्रो बासुर्तो को केवल पांच मिनट 20 सेकेंड में धूल चटायी। वह जर्मनी फर्डिनेंड श्मिज को 2-1 से हराकर फाइनल राउंड में पहुंचे थे।

तब चोटी के तीन पहलवानों के बीच राउंड रोबिन आधार पर मुकाबले होते थे। जाधव फाइनल राउंड में सोवियत संघ के राशिद मामदबायेव और जापान के सोहाची इशी से हार गये थे।

इसके 56 साल बाद बीजिंग ओलंपिक 2008 में सुशील ने कुश्ती में भारत को पदक दिलाया। सुशील क्वालीफाईंग राउंड में बाई मिलने के बाद वह अंतिम सोलह के राउंड में यूक्रेन के आंद्रेई स्टैडनिक से हार गये थे।

भाग्य ने सुशील का साथ दिया और स्टैडनिक के फाइनल में पहुंचने से भारतीय पहलवान को रेपेशाज में भिड़ने का मौका मिल गया। सुशील ने कुछ घंटों के अंदर तीन कुश्तियां जीतकर पदक अपने नाम किया था।

सुशील ने रेपेशाज के पहले राउंड में अमेरिका के डग श्वाब को, दूसरे राउंड में बेलारूस के अल्बर्ट बातिरोव को और फाइनल राउंड में कजाखस्तान के लियोनिड स्पिरडिनोव को हराकर कांस्य पदक जीता था।

सुशील ने इसके बाद लंदन ओलंपिक में रजत पदक तो योगेश्वर दत्त् ने कांस्य पदक हासिल किया। सुशील ने क्वार्टर फाइनल में उज्बेकिस्तान के इख्तियोर नवरूजोव को 3-1 से हराकर पहली बार ओलंपिक सेमीफाइनल में प्रवेश किया और फिर कजाखस्तान के अखजुरेक तनातारोव 6-3 से हराया। सुशील फाइनल में हालांकि जापान के तात्सुहिरो योनेमित्सु से 0-1, 1-3 से हार गये।

इससे एक दिन पहले योगेश्वर ने 60 किग्रा में कांस्य पदक जीता था। वह हालांकि रूस के बेसिक कुदखोव से हार गये। रूसी पहलवान फाइनल में पहुंच गया। योगेश्वर को रेपाशाज का मौका मिला और उन्होंने प्यूर्तोरिका के फ्रैंकलिन गोमेज और ईरान के मसूद इस्माइलपुवर को हराने के बाद फाइनल राउंड में उत्तर कोरिया के रि जोंग म्योंग को पस्त करके कांस्य पदक जीता।

रियो ओलंपिक 2016 में साक्षी मलिक भी महिलाओं के 58 किग्रा में क्वार्टर फाइनल में वेलारिया कोबलोवा से हार गयी। रूसी पहलवान फाइनल में पहुंच गयी और फिर साक्षी ने रेपेशाज में प्योरदोरजिन ओरखोन और कजाखस्तान की आइसुलु टाइनिबेकोवा को हराया और ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनी।

 

 

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