विद्यार्थियों के स्वास्थ्य का जिम्मा किसका?
-भूपिंद्र सिंह-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
शिक्षा का अर्थ मानव का शारीरिक व मानसिक सर्वांगीण विकास है जिससे वह जीवन में आने वाली बाधाओं को आसानी से पार कर खुशहाल जीवन जी सके। इसलिए शिक्षा संस्थान में विद्यार्थी जीवन से ही अच्छे स्वास्थ्य की नींव रखी जाती है, परंतु क्या हमारे संस्थानों में विद्यार्थियों के लिए फिटनेस की सुविधाएं उपलब्ध हैं। पिछले सोलह महीनों से हम कोरोना महामारी के कारण शिक्षा संस्थानों से दूर हैं। पढ़ाई तो ऑनलाइन हो ही जाती है, मगर फिटनेस के लिए घर पर भी कार्य नहीं हो रहा है। कोरोना के भयानक परिणामों को देखते हुए अब हर नागरिक की फिटनेस का आधार विद्यार्थी जीवन से ही मजबूत बनाना जरूरी हो जाता है। हवा में जब अधिक धूल-धुआं हो गया है और पृथ्वी पर जैसे-जैसे जीवन जीने की आवश्यक चीजें घटती जा रही हैं, वैसे-वैसे मानव को स्वास्थ्य के प्रति सजग होना पडे़गा। अच्छे स्वास्थ्य की नींव बचपन से लेकर विद्यार्थी जीवन तक पक्की की जाती है। मगर हिमाचल प्रदेश के अधिकांश स्कूलों में प्रत्येक विद्यार्थी को स्वास्थ्य के लिए न तो सुविधा है और न ही पर्याप्त शिक्षक हैं। विद्यार्थी कितना फिट है, उसके लिए विद्यालय में कोई परीक्षा ही नहीं है। ऐसे में शिक्षा के कर्णधारों के साथ-साथ अभिभावकों व विद्यालय प्रशासन को इस विषय पर अनिवार्य रूप से सोचना होगा कि हमारी अगामी पीढि़यों की फिटनेस व नैतिकता कैसे उन्नत हो सके।
स्वास्थ्य के सिद्धांतों से नैतिकता का गहरा संबंध है। संयम, निरतंरता, निस्वार्थ सोच व ईमानदारी से कार्य निष्पादन हम खेल के मैदान में ही सही ढंग से सीख पाते हैं। किसी भी देश को इतनी क्षति युद्ध या महामारी से नहीं होती है, जितनी तबाही नशे के कारण हो सकती है। आज जब देश के अन्य राज्यों सहित हिमाचल प्रदेश में भी नशा युवा वर्ग पर ही नहीं किशोरों तक चरस, अफीम, स्मैक, नशीली दवाओं तथा दूरसंचार के माध्यमों के दुरुपयोग से शिकंजा कस रहा है, इसलिए विद्यालय व अभिभावकों को इस विषय पर सचेत हो जाना चाहिए। यदि विद्यार्थी किशोरावस्था में नशे से बच जाता है तो वह फिर युवावस्था आते-आते समझदार हो गया होता है। इसलिए विद्यालय स्तर पर प्राथमिक से वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय स्तर पर विद्यार्थियों को विभिन्न विद्याओं में व्यस्त रखने के साथ-साथ शारीरिक फिटनेस की तरफ मोड़ना बेहद जरूरी हो जाता है। विद्यार्थी के विकास के लिए खेलों के माध्यम से फिटनेस कार्यक्रम बहुत जरूरी हो जाते हैं, मगर कुछ विद्यार्थियों द्वारा बनी दो टीमें तो खेलने लग जाती हैं और सारा विद्यालय दर्शक बन जाता है। फिटनेस तो विद्यालय के हर विद्यार्थी को अनिवार्य रूप से चाहिए होती है। विद्यालय स्तर पर हर विद्यार्थी के लिए अभी तक कोई भी कार्यक्रम नहीं है। पिछले कुछ दशकों से हिमाचल प्रदेश के नागरिकों की फिटनेस में बहुत कमी आई है । इसके पीछे का प्रमुख कारण भी विद्यालय स्तर पर विद्यार्थियों के लिए किसी भी प्रकार के फिटनेस कार्यक्रम का न होना है। रट्टे वाली पढ़ाई की होड़ में हम विद्यार्थियों की फिटनेस को ही भूल गए हैं। हिमाचल प्रदेश की अधिकांश आबादी गांव में रहती है। वहां पर सवेरे-शाम वर्षों पहले से ही विद्यार्थी अपने अभिभावकों के साथ कृषि व अन्य घरेलू कार्यों में सहायता करता था।
विद्यालय आने-जाने के लिए कई किलोमीटर दिन में पैदल चलना पड़ता था। इसलिए उस समय के विद्यार्थी को किसी भी प्रकार के फिटनेस कार्यक्रम की कोई जरूरत नहीं थी। मगर अब घरेलू कार्यों से विद्यार्थी दूर हो गया है और विद्यार्थी घर के आंगन में बस पर सवार होकर विद्यालय के प्रांगण में उतरता है। पढ़ाई के नाम पर ज्यादा समय खर्च करने के कारण फिटनेस के लिए कोई समय नहीं बचता है। इस कॉलम के माध्यम से पहले भी कई बार फिटनेस के बारे में सचेत किया जाता रहा है। जब अधिकतर स्कूलों के पास फिटनेस के लिए न तो आधारभूत ढांचा है और न ही कोई कार्यक्रम है तो फिर आज का विद्यार्थी फिटनेस व मनोरंजन के नाम पर दूरसंचार माध्यमों का कमरे में बैठ कर खूब दुरुपयोग कर रहा है। ऐसे में शिक्षा के द्वारा विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास की बात मजाक लगती है। आज के विद्यार्थी को अगर कल का अच्छा नागरिक बनाना है तो हमें विद्यालय व घर पर उसके लिए सही फिटनेस कार्यक्रम देना होगा। तभी हम सही अर्थों में अपनी अगली पीढ़ी को शिक्षित करेंगे। बचपन से युवावस्था जैसे पढ़ाई का सही समय है, उसी प्रकार शारीरिक विकास का समय भी यही है। इस समय ही हमारे शरीर की रक्त वाहिकाओं के बढ़ने, मांसपेशियों व हड्डियों के मजबूत होने का समय है। इस सबके लिए भी फिटनेस कार्यक्रम अनिवार्य रूप से चाहिए क्योंकि एक उम्र बीत जाने के बाद हम इनका विकास नहीं कर सकते हैं।
बिना फिटनेस कार्यक्रम के आज का विद्यार्थी अच्छा पढ़-लिख कर डॉक्टर, इंजीनियर, मैनेजर व अन्य बड़ा डिग्रीधारक बनकर नौकरी तो ले सकता है, मगर क्या वह साठ वर्ष की उम्र तक अपने कार्य का निष्पादन सही तरीके से कर सकता है? आज चालीस वर्ष पार करते ही बुढ़ापा आ रहा है। ऐसे में विद्यार्थियों को विद्यालय स्तर पर फिटनेस कार्यक्रम की बहुत जरूरत है। अमरीका व यूरोप के विकसित देशों के विद्यालयों में हर विद्यार्थी की सामान्य फिटनेस के लिए वैज्ञानिक आधार पर तैयार किए गए कार्यक्रमों के साथ-साथ उचित आहार का भी प्रबंध होता है। विद्यार्थी की फिटनेस कैसी है, इसके लिए साल में कई बार परीक्षा होती है। हमारे यहां कुछ स्तरीय विद्यालयों में फिटनेस कार्यक्रम तो हैं, मगर शारीरिक क्षमताओं को नापने के लिए कोई परीक्षण नहीं है। इस सबके लिए विद्यालय स्तर पर विद्यार्थियों की सामान्य फिटनेस का मूल्यांकन कर उसमें सुधार के लिए सुझाव देकर सुधार करवाने के लिए ‘फिटनेस मूल्यांकन व सुझाव’ कार्यक्रम की शुरुआत जल्द ही करनी चाहिए। इस कार्यक्रम के अंतर्गत विद्यालय के हर विद्यार्थी का साल में तीन बार विभिन्न शारीरिक क्षमताओं का परीक्षण कर उनका मूल्यांकन किया जाए। पांच दशक पहले भी राष्ट्रीय स्तर से फिटनेस जागरूकता के लिए इस तरह के कार्यक्रम चले थे, मगर शिक्षा राज्य सूची का विषय होने के कारण बाद में धीरे-धीरे खत्म हो गए थे। अब फिर फाइलों में सीबीएसई फिटनेस टैस्टिंग की बात तो कर रही है, मगर धरातल पर तो अभी तक कुछ भी नजर नहीं आ रहा है।
गौतम अडानी को मोदी का संरक्षण इसलिए नहीं होते गिरफ्तार : राहुल
नई दिल्ली, 21 नवंबर (ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस)। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एवं लोकसभा में वि…