क्यों भयभीत है भारतीय हिन्दू
–सनत जैन-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
पिछले 7 वर्षों से भारत के प्रधानमंत्री हिन्दू सम्राट नरेन्द्र मोदी हैं। इन वर्षों में भारत के हिन्दुओं में जिस तरह का भय देखने को मिल रहा है वह इसके पहले नहीं था। स्वतंत्रता के बाद हिन्दू-मुसलमानों के बीच ऐसा कोई टकराव नहीं था, जिससे दोनों कौम भय एवं असुरक्षा महसूस करती हो। 2014 के बाद से जिस तरह देश में पानीपत की तीसरी लड़ाई, धारा 370 खत्म करने एनआरसी, श्मशान बनाम कब्रिस्तान, हिन्दू राष्ट्र में हिन्दू रहेगा। मुहिम चलने के बाद भी हिन्दू क्यों भयभीत है। इतिहास के मुर्दों को जिंदा करके बदला लेने की प्रवृत्ति ने हिन्दुओं और मुस्मिमों के बीच ध्रवीकरण की आधारशिला बनी। धुवीकरण के कारण वोटों की फसल में बदलाव आया। राजनीति के समीकरण बदले। जातीय समीकरण के स्थान पर हिन्दू’मुस्लिम के बीच हुए धुवीकरण ने सत्ता के सारे समीकरण बदल दिए। इस्लामिक आतंकवाद का भय हिन्दुओं के बीच फैलाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा गया। जिसके कारण हिन्दू समाज आज अपने ही देश में भयभीत दिख रहा है।
पिछले 4 वर्षों में नोटबंदी, जीएसटी लागू करने के बाद देश की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट आने लगी थी। रही सही कसर कोरोना वायरस ने पूरी कर दी। पिछले डेढ़ वर्षों में पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, अस्पतालों का महंगा इलाज, लाकडाउन के कारण बेरोजगारी, महंगाई इत्यादि ने आम आदमी का जीना मुश्किल कर दिया है। पिछले वर्षों में दिल्ली, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, म.प्र., राजस्थान, झारखंड, बिहार, प. बंगाल इत्यादि राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए। केन्द्र सरकार और भाजपा ने अपनी सारी ताकत साम-दाम, दंड-भेद के साथ चुनाव जीतने में लगा दी, किन्तु परिणाम अनुकूल नहीं रहे।
पिछले 4 वर्षों में सत्ता के मद में मदमस्त नेताओं ने जनता को उनके हाल पर छोड़ दिया है। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस एवं खाद्य पदार्थों की महंगाई ने आम आदमी के 2 टाइम का खाना सहज रुप से उपलब्ध हो, यह संभव नहीं हो पा रहा है। भाजपा के नेता इस महंगाई और बेरोजगारी को विकास के लिए जरुरी बताते हुए न्यायसंगत बनाने का प्रयास करते हैं। इससे जनता में नाराजगी है। हिन्दू-मुस्लिम को लेकर पिछले वर्षों में कतिपय संगठनों द्वारा जो मुहिम चलाई जा रही है, उससे जनता भयभीत है। बच्चों एवं परिवार की जरुरतों को पूरा नहीं कर पाने से जनता परेशान है। रोटी, कपड़ा मकान कभी लोगों की पहली प्राथमिकता होती थी। यह प्राथमिकता अब बदल गई है। पिछले 20 वर्षों में जिस तरह से आर्थिक एवं सामाजिक जरुरतों में परिवर्तन आया है। उसमें शिक्षा, खान-पान, परिवहन एवं अन्य खर्चे निम्न एवं मध्यमवर्गीय परिवारों के कई गुना बढ़ गए हैं। आज पेट्रोल एवं रसोई गैस निम्न एवं मध्यम वगीय परिवार की पहली जरुरत है। बच्चों की शिक्षा और खान-पान का खर्च पिछले वर्षों में कई गुना बढ़ गया है। वर्तमान स्थिति में आम आदमी महंगाई एवं बेरोजगारी से निराश और नाराज है। जनता सड़कों पर आकर विरोध करने की स्थिति में नहीं है। विपक्षी दल कमजोर है। ट्रेड युनियनों का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। सरकार के असंवेदनशील होने से यह गुस्सा अंदर ही अंदर जनता में बढ़ रहा है। भूखे भजन ना होय गोपाला की तर्ज पर हिन्दू-मुस्लिम का धुवीकरण सत्ता को बचाए रख पाएगा, इसमें संदेह है।
धारा 370 समाप्त होने के बाद कश्मीर घाटी में लगभग 50 हजार से ज्यादा सुरक्षा बलों की तैनाती के बाद भी पिछले 2 वर्षों में हिन्दुओं ने घाटी में जाकर जमीन नहीं खरीदी। उद्योग धंधे शुरु नहीं कर पाए। काश्मीरी ब्राह्मण अपने घरों में नहीं जा पाए। केन्द्र शासित प्रदेश होने के बाद भी घाटी के पंडितों की घर वापसी हिन्दू मंदिरों को संवारने एवं पूजा-पाठ का कार्य भी शुरु नहीं हुआ। अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा होने के बाद यह माना जा रहा है कि हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण भारत में बढ़ेगा। उ.प्र. का विधानसभा चुनाव एवं 2024 का लोकसभा चुनाव वर्तमान सत्ताधीश आसानी से जीत लेंगे? सत्तारुण दल का यह सोचना अपनी जगह सच भी हो सकता है। धर्म की आस्था को कभी बदला नहीं जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह तथ्य सार्वजनिक रुप से स्वीकार किया है। मुस्लिम अपनी आस्था भय से बदल देंगे, यह सोच सपने की तरह है। इसी तरह भूखे एवं परेशान हिन्दू इतनी तकलीफों के बाद भी सत्तारुण दल को वोट देंगे, यह सोच भी काल्पनिक है। जिस तरह से बेरोजगारी, महंगाई के कारण देश में आत्महत्या और अपराध बड़ी तेजी के साथ बढ़ रहे है। घर-घर में आर्थिक कारणों के चलते पारिवारिक विवाद हो रहे हैं। वर्तमान स्थिति को देखते हुए आसानी से समझा जा सकता है, कि जनता भले बाहर से शांत हो। समय आने पर उसे गुस्सा कहां उतारना है। भारत की जनता अच्छी तरह से जानती है। वर्तमान सरकारों से अतीत से सबक लेने की जरुरत है।
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