हाईवे पर एयर फोर्स का रनवे
-रंजना मिश्रा-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
हाल ही में बाड़मेर में हाईवे पर एयरफोर्स के रनवे का रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी ने उद्घाटन किया है। पाकिस्तान की सीमा से सिर्फ 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नेशनल हाईवे 925 ए पर उतरते भारतीय लड़ाकू विमान देखकर पाकिस्तान का कलेजा कांप गया होगा, क्योंकि जब हाईवे ही रनवे का काम करते हैं तो निश्चित ही दुश्मन थर्राते हैं। हाईवे वाले रनवे पर उतरे सुपर हरक्यूलिस विमान में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी सवार थे। जालोर की हाईवे वाली इस हवाई पट्टी की कई विशेषताएं हैं और भारत के लिए इसका खास महत्व है। ये हवाई पट्टी भारत पाकिस्तान बॉर्डर के नजदीक है। इसे इमरजेंसी ऑपरेशन में इस्तेमाल किया जा सकता है। भारत के पश्चिमी सेक्टर में ये सेना के लिए एक बड़ा रणनीतिक बूस्टर है। युद्ध की स्थिति में इसे बैकअप रनवे की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। फाइटर जेट्स को बहुत ही कम समय की नोटिस पर ऑपरेशन के लिए तैयार किया जा सकता है और दुश्मन पर स्ट्राइक करने के लिए भी ये बहुत मददगार है।
पाकिस्तान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा से सिर्फ 40 किलोमीटर दूर ये सड़क जो भारतीय वायुसेना के लिए हवाई पट्टी बन गई है, इसने भारत की वायु शक्ति को नई धार दी है और पाकिस्तान को साफ संदेश दे दिया है। पहली बार कोई राष्ट्रीय राजमार्ग वायुसेना के विमानों की इमरजेंसी लैंडिंग के लिए खासतौर पर बनाया गया है। हाईवे वाली हवाई पट्टी पर लैंडिंग की शुभ शुरुआत भारत की वायु सेना के दमदार विमान सुखोई 30 एमके आई ने किया। इसके बाद वायुसेना के सी 130 जे सुपर हरक्यूलिस ने भी यहां टच डाउन किया। साथ ही वायुसेना के जगुआर जेट ने अपना दमखम दिखाते हुए जालोर के हाईवे पर दौड़ लगाई। भारतीय वायुसेना के लिए बना ये हाईवे भारत के लिए सरहद पर शक्ति पथ जैसा है।
वास्तव में ये इमरजेंसी लैंडिंग स्ट्रिप है। मेन ऑपरेशन तो रनवे से ही होगा, लेकिन जंग की स्थिति में कभी-कभी दुश्मन देश रनवे पर बम गिरा कर चले जाते हैं, तब तीन चार घंटे के लिए रनवे प्रयोग में नहीं लाया जा सकता, तो उस समय जो हवाई जहाज हवा में होते हैं, उन्हें उतारने के लिए ये इमरजेंसी लैंडिंग स्ट्रिप बनाई जा रही हैं। जालोर के हाईवे पर हवाई पट्टी की रणनीतिक अहमियत बहुत है। पाकिस्तान की सरहद से सिर्फ 40 किलोमीटर दूर होने की वजह से ये हाईवे संवेदनशील वेस्टर्न सेक्टर में भारतीय वायुसेना की ताकत बढ़ाता है। युद्ध जैसी परिस्थितियों में ये हवाई पट्टी आपात इस्तेमाल और प्रभावी रनवे बैकअप का काम कर सकती है। यहां से वायुसेना के विमानों को तत्काल उपयोग में लाया जा सकता है और अचूक निशानों और विशेष उड़ानों में ये मददगार साबित हो सकती है।
वायुसेना के इमरजेंसी और रणनीतिक इस्तेमाल के लिए भारत का प्लान सिर्फ एक हाईवे वाली हवाई पट्टी बनाने भर का नहीं है। सरकार देश भर में 28 ऐसे हाईवेज तैयार कर रही है, जो वायुसेना के विमानों के लिए रनवे का काम कर सकेंगे। जालोर में बनी ये 3 किलोमीटर लंबी हवाई पट्टी एनएचएआई ने वायुसेना के साथ मिलकर 45 करोड़ रुपयों की लागत से तैयार की है। 2017 में लखनऊ आगरा एक्सप्रेस वे पर वायुसेना के मिराज 2000 विमान ने इमरजेंसी लैंडिंग का रिहर्सल किया था, इसी के बाद जालोर हाईवे जैसी सुविधा के निर्माण को लेकर राष्ट्रीय प्लान ने जोर पकड़ा।
इस हवाई पट्टी का उद्घाटन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सड़क परिवहन एवं राज्यमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने किया, लेकिन इसके एक दिन पहले भारतीय वायु सेना के कुछ लड़ाकू विमानों का हाईवे पर ट्रायल कराया गया, यही नहीं पाकिस्तान सीमा के करीब बनाई गई हाईवे पट्टी से उड़ान भरने के बाद इन लड़ाकू विमानों ने हवा में फ्लाईपास्ट भी किया। जिन लड़ाकू विमानों ने इस हाईवे पर लैंडिंग की उनमें सुखोई थर्टी एमकेआई और जगुआर शामिल रहे। देश की सुरक्षा के लिहाज से इस तरह की हवाई पट्टियां बेहद अहम हैं, खासतौर पर तब जब कि वो पाकिस्तान जैसे पड़ोसी की सीमा के इतने करीब हों। देश के किसी नेशनल हाईवे पर सेना के विमानों के उतरने का यह पहला मामला है, इससे पहले 2017 में यमुना एक्सप्रेस वे पर सेना के विमानों की लैंडिंग करवाई गई थी लेकिन पहली बात तो ये कि वो नेशनल हाईवे नहीं है, दूसरी बात वो किसी अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास नहीं है और सबसे अहम बात ये कि वो एक ड्रिल थी, जिसका मकसद केवल ये देखना था कि नागरिकों के इस्तेमाल में आने वाले हाईवे भी इमरजेंसी के वक्त सेना के काम आ सकते हैं या नहीं।
अगर कभी भी युद्ध के बीच हालात बिगड़े तो ये हाईवे बहुत काम आने वाला होगा। इस नेशनल हाईवे 925 ए का करीब 4 किलोमीटर का एक हिस्सा पहले ही तय कर दिया गया कि ये एक इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड होगा। मतलब ये एक ऐसी हवाई पट्टी है, जिसका इस्तेमाल देश की सेना किसी इमरजेंसी के वक्त में कर पाएगी। सेना के लिए इमरजेंसी जंग या जंग जैसी स्थिति हो सकती है।
1971 की लड़ाई में 3 दिसंबर को सबसे पहले पाकिस्तान ने भारत के एयर बेसेज पर हमला किया था। कश्मीर में अवंतीपुरा से लेकर पूरे पंजाब के और राजस्थान के कई एयरबेसेज उत्तरलाई, जैसलमेर, जोधपुर बाड़मेर आदि पर हमले किए थे। ऐसी स्थिति में रनवे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और फिर एयर ऑपरेशंस रुक जाते हैं, इसलिए हमेशा दूसरी जगहों यानी वैकल्पिक जगहों की व्यवस्था की जाती है, जहां से एयर ऑपरेशंस को जारी रखा जा सके। यही इनका सबसे बड़ा सामरिक महत्व होता है।
फाइटर एयरक्राफ्ट तो बहुत छोटे होते हैं लेकिन ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट को उतरने के लिए बड़ी जगह की जरूरत होती है। इस 5 किलोमीटर के स्ट्रेच व साढ़े 3 किलोमीटर के लैंडिंग स्पेस में ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट्स भी उतारे जा सकते हैं और फाइटर जेट्स भी। फाइटर जेट्स हमेशा हमला करने की सबसे पहली चीज होते हैं, वहीं ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट्स के जरिए अपनी सेनाओं को सपोर्ट किया जाता है, अपनी सेनाओं को सप्लाई पहुंचाई जाती है और उनको लड़ाई के लिए तैयार किया जाता है।
रनवे रिपेयर होने तक वायु सेना बिल्कुल विवश हो जाती है, ऐसा कभी भी किसी भी देश के साथ जंग के दौरान हो सकता है। इसलिए इस तरह के इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड बनाए जाते हैं, जो आम नागरिकों की इस्तेमाल की सड़कों पर होते हैं, ऐसा इसलिए ताकि जंग के दौरान जब सेना के ठिकानों पर हमले हों तो आम नागरिकों के इस्तेमाल की सड़कों का इस्तेमाल सेना कर पाए और दुश्मन को माकूल जवाब दे पाए, जंग के दौरान भी आम नागरिकों पर हमले की इजाजत अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं देता।
इस इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड को सिर्फ 19 महीने में तैयार किया गया है। इस हाईवे पर इतनी जगह और इस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया है कि जरूरत पड़े तो यहां पर विमान लैंड भी कर सकते हैं, उनकी रिफ्यूलिंग हो सकती है और कंट्रोल करने के लिए एयर ट्रैफिक कंट्रोल टावर भी यहां मौजूद है। रनवे पर कभी सुखोई की दहाड़ सुनाई देती थी, कभी जगुआर की आवाज से धरती कांपती थी, कभी हेलीकॉप्टर की गड़गड़ाहट होने लगती थी तो कभी हिंदुस्तान का महा विध्वंसक फाइटर मंडराने लगता था। पाकिस्तान की सीमा के बेहद करीब राजस्थान के जिस इलाके में शांति रहती है, वहां भारतीय वायु वीर अपने विमानों के साथ आसमान में चक्कर काट रहे थे। बॉर्डर के उस पार पाकिस्तान के रडार खतरे का सिग्नल दे दे रहे थे। इस्लामाबाद से रावलपिंडी तक खलबली मची थी।आसमान में उड़ रहे विमानों ने लैंडिंग शुरू की तो पाकिस्तान हैरान रह गया क्योंकि विमान जहां उतरे थे, उसकी लोकेशन के बारे में पाकिस्तान की किसी एजेंसी को भनक तक नहीं थी। भारतीय वायुसेना के विमान जिस एयरस्ट्रिप पर उतर रहे थे, वो न तो भारत का कोई एयरबेस है, न ही कोई हवाई अड्डा। राजस्थान के बाड़मेर में विमानों की लैंडिंग एक हाईवे पर कराई गई थी। बॉर्डर के इस पार हर विमान की लैंडिंग के साथ तालियां बज रही थीं तो वहीं बॉर्डर के उस पार इस्लामाबाद से रावलपिंडी तक हिंदुस्तान की ये कामयाबी तनाव का सबब थी। इमरान खान और बाजवा भारत की शक्ति और उपलब्धि का सीधा प्रसारण देख रहे थे। पाकिस्तान को लग रहा था कि भारत के फाइटर विमान सिर्फ टचडाउन लैंडिंग करेंगे, लेकिन जब हवा को चीरते हुए हर्कुलस सी-17 ने लैंडिंग की तो पाकिस्तान को एहसास हो गया कि भारत में सिर्फ हाईवे ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के करीब एयरबेस जैसा रनवे बना दिया गया है।
साल 2015 में दिल्ली-आगरा यमुना एक्सप्रेसवे पर मथुरा के करीब मिराज-2000 की लैंडिंग हुई थी। इसके बाद आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर 2016 में मिराज और सुखोई फाइटर जेट्स ने लैंडिंग की थी, लेकिन अब पहली बार मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट की लैंडिंग कराई गई है। देश के अलग-अलग हिस्सों में 12 हाईवे पर एयर स्ट्रिप बनाने की योजना है। हिंदुस्तान की तैयारी पाकिस्तान के साथ ही चीन के मोर्चे पर भी है। अब अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद पाकिस्तान आतंक को नए सिरे से एक्टिव करने का प्लान बना रहा है। चीन ने कुछ दिन पहले ही भारत से लगने वाली सीमा के लिए कमांडर बदला था, अब पाकिस्तान ने भी यही किया है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक पाकिस्तान और चीन तालिबान को भारत के खिलाफ भड़का सकते हैं, इससे बॉर्डर और एलओसी पर तनाव बढ़ना तय है। यही वजह है कि चीन और पाकिस्तान कमांडर बदलकर पहले से तैयारी कर रहे हैं।
सुखोई और जगुआर की गर्जना सुनकर यकीनन देश के दुश्मनों के दिल दहल गए होंगे। ये देश के इतिहास का सबसे गौरवशाली दृश्य था, ये हर भारतीय का सीना गर्व से चैड़ा कर देने वाला लम्हा था, ये भारतीय वायुसेना के दमखम व देश के हाईवे की सबसे जानदार तस्वीर थी। जिस हाईवे पर लोग हवा से बातें करते अपनी गाड़ियां दौड़ाते हैं, उस हाईवे को भारतीय वायु सेना के सुखोई और जगुआर विमानों ने चूमकर सबको अभिभूत कर दिया।
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