Home अंतरराष्ट्रीय तालिबान के लिए पाकिस्तान का समर्थन रोकने में नाकाम रहा अमेरिका: सीनेटर

तालिबान के लिए पाकिस्तान का समर्थन रोकने में नाकाम रहा अमेरिका: सीनेटर

वाशिंगटन, 29 सितंबर (ऐजेंसी/अशोक एक्सप्रेस)। अमेरिका के एक शीर्ष सांसद ने कहा कि उनका देश तालिबान के लिए पाकिस्तान का समर्थन रोकने में नाकाम रहा और यह अफगानिस्तान में ‘‘अमेरिका की विफलता’’ की मुख्य वजहों में से एक है। सीनेटर जैक रीड ने अफगानिस्तान पर कांग्रेस की बहस के दौरान मंगलवार को कहा, ‘‘अमेरिकी सेना की वापसी और उसके आसपास की घटनाएं बाहरी प्रभावों से अलग नहीं थीं। इराक में जो कुछ हमारे साथ हुआ, तालिबान के लिए पाकिस्तान के समर्थन से निपटने में हमारी नाकामी और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा किए गए त्रुटिपूर्ण दोहा समझौते ने अफगानिस्तान में हमारी असफलता की राह बनाई।’’ सीनेट की सशस्त्र सेवा समिति के सदस्य सीनेटर जिम इनहोफ ने कहा कि अफगान सरकार का नेतृत्व अब आतंकवादी कर रहे हैं जिनका लंबे समय से अल-कायदा से संबंध रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘और हम अफगानिस्तान हवाई क्षेत्र में प्रवेश के लिए पाकिस्तान सरकार की दया पर निर्भर है। अगर हम वहां प्रवेश भी कर लें तो हम अफगानिस्तान में अल-कायदा पर हमला नहीं कर सकते क्योंकि हमें चिंता है कि तालिबान वहां मौजूद अमेरिकियों के साथ क्या करेगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘प्रशासन को ईमानदार होना चाहिए। राष्ट्रपति जो बाइडन के विनाशकारी फैसले के कारण अमेरिकी परिवारों पर आतंकवादी खतरा बढ़ रहा है और इन खतरों से निपटने की हमारी क्षमता खत्म हो गयी है।’’

सुनवाई के दौरान सीनेटर रीड ने कहा कि युद्ध के दौरान अमेरिका, तालिबान को पाकिस्तान से मिल रहे समर्थन से निपटने मे नाकाम रहा, यहां तक कि अमेरिकी राजनयिकों ने पाकिस्तानी नेताओं के साथ मुलाकात की और उसकी सेना ने आतंकवाद रोधी अभियान में सहयोग दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘तालिबान ने फिर से संगठित होने के लिए पाकिस्तान में पनाह ली। हाल में बढ़ी तालिबान की उग्रता को दोहा समझौते से जोड़ा जा सकता है जिस पर 2020 में तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप ने हस्ताक्षर किए थे।

रीड ने कहा, ‘‘यह समझौता पूर्व ट्रंप प्रशासन और तालिबान ने हमारे गठबंधन सहयोगियों और यहां तक कि अफगान सरकार की अनुपस्थिति में किया, जिसमें अफगानिस्तान में पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय मौजूदगी समाप्त करने का वादा किया गया।’’

सीनेटर इनहोफ ने कहा कि अमेरिका का अब अफगानिस्तान में कोई विश्वसनीय सहयोगी नहीं है।

 

 

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