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लेख - December 15, 2021

मानवता व भाईचारे की मिसाल भी पेश कर गया ऐतिहासिक किसान आंदोलन

-निर्मल रानी-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

केंद्र सरकार द्वारा किसानों पर थोपे जा रहे तीन काले कृषि कानूनों को आखिरकार सरकार को वापस लेना ही पड़ा। इसके कानूनी दांव पेंच व किसानों को इससे होने वाले नफा नुकसान के अलावा इस पूरे आंदोलन को देश विदेश में कई अलग अलग नजरिये से भी देखा गया। इस आंदोलन में जहाँ राष्ट्रीय स्तर पर किसानों की जबरदस्त एकजुटता सामने आई वहीँ इसमें उनका त्याग, तपस्या, समर्पण, जुझारूपन, सूझ बूझ, सहनशीलता, प्रेम, बलिदान, मानवता आदि सब कुछ साफ नजर आया। निश्चित रूप से सरकार द्वारा तीनों विवादित कृषि कानूनों के वापस लेने तथा इसके बाद किसान आंदोलन के समाप्त होने की घोषणा से देश ने राहत की सांस ली है। परन्तु एक वर्ष तक लगातार एक ही स्थान पर बने रहने वाले आंदोलनकारी किसानों के वापस चले जाने से आंदोलन स्थलों के आस पास के उन गरीबों, मजदूरों व झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों के लिये आंदोलन की समाप्ति और उनकी घर वापसी, मायूसी व उदासी का पैगाम लेकर आई।

दिल्ली के चारों ओर जिन जिन सीमाओं पर आंदोलनकारी किसान धरना प्रदर्शन कर रहे थे उन सभी सीमाओं पर कई कई जगह लंगर व ‘गुरु का लंगर’ संचालित किया जा रहा था। ‘अन्नदाताओं ‘ ने यह लंगर केवल आंदोलनकारी किसानों के लिये नहीं बल्कि हर खास-ो-आम के लिये लगाये थे। देश दुनिया को शुद्ध खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने वाला ‘अन्नदाता ‘ यहाँ भी शुद्ध देसी घी के लंगर चला रहा था। दिल्ली के अनेक गुरुद्वारों ने किसानों को लंगर सेवायें उपलब्ध कराई हुई थीं। तीनों वक्त की शुद्ध व ताजी रोटी, पराठों व दाल सब्जी के अतिरिक्त किसानों के लंगर में ड्राई फ्रूट, फल, दूध, दही लस्सी, मिठाई आदि सब कुछ उपलब्ध था । ऐसे में आंदोलन स्थल के वे लाखों पड़ोसी, गरीब व मजदूर जिन्होंने पूरे एक वर्ष तक सपरिवार किसानों के लंगर का भोजन व नाश्ता किया तथा अन्य पकवान खाये, उनके लिये इस आंदोलन का समाप्त होना कुछ ऐसा ही रहा जैसे उनके सामने से लंगर व पकवान की थाली खींच ली गयी हो। आंदोलन स्थल के निकटवर्ती लोगों का आंदोलनकारियों के साथ एक भावनात्मक व सहयोगपूर्ण रिश्ता कायम हो गया था जोकि इस आंदोलन की समाप्ति के साथ ही केवल यादों व स्मृतियों में शेष रह गया। ऐसे सैकड़ों लोग आंदोलनकारी किसानों की घर वापसी के समय अश्कबार आँखों व मायूस चेहरों के साथ घर वापसी करने वाले किसानों का सहयोग करते दिखाई दिये।

किसान आंदोलन ने केवल मनुष्यों मात्र नहीं बल्कि लावारिस पशुओं के प्रति भी ऐसी मानवता दिखाई कि पशु भी किसानों के मोह से अछूते नहीं रहे। सिंघू बॉर्डर पर आंदोलन की शुरुआत में एक कुतिया ने कुछ बच्चे जन्मे थे। इनमें से एक बच्चा किसानों का लाडला बन गया। आंदोलन समाप्ति के समय वह बच्चा लगभग एक वर्ष का हो चुका था। जब उसने देखा कि ट्रैक्टर ट्रॉली पर सामान लाद किसान वापस जाने की तैयारी में लगे हैं तो वह कुत्ता भी किसी तरह कूद फांद कर ट्रॉली में सवार हो गया। और ‘अन्नदाता ‘ उस कुत्ते को भी आंदोलन स्थल की निशानी के रूप में ट्रैक्टर ट्रॉली में बिठा कर अपने साथ पंजाब ले आये।

राष्ट्रीय स्तर पर किसानों की एकजुटता के लिये तो यह आंदोलन मिसाल बना ही साथ साथ पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरांचल व उत्तर प्रदेश के किसानों की एकजुटता का भी कारक बना। 2014 के बाद एक बड़ी साजिश के तहत जिस पश्चिमी उत्तर प्रदेश को सांप्रदायिकता की आग में झोंक कर राजनीति के शातिरों द्वारा भरपूर राजनैतिक लाभ उठाया गया था इस आंदोलन ने काफी हद तक नफरत की इस खाई को पाटने की कोशिश की है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को बखूबी समझ आ गया कि हिन्दू मुस्लिम व ऊंच नीच के वर्गों में बांटकर सत्ता द्वारा ‘बांटो और राज करो ‘ की अंग्रेजी नीति का अनुसरण किया जा रहा है। जबकि सभी किसानों की मांगें भी एक हैं मुद्दे भी एक। जाहिर है यह अन्नदाताओं की एकजुटता ही थी जिसके चलते पूजा-पाठ, अरदास, रोजा-नमाज, इफ्तार आदि सब कुछ एक ही पिण्डाल व एक ही छत के नीचे अदा होते देखे गये।

हरियाणा पंजाब के किसानों की एकजुटता के भी तमाम किस्से आंदोलन की समाप्ति के बाद सुनाई दे रहे हैं। जब एक भाजपा विधायक के उपद्रव से आहत होकर जनता के सामने राकेश टिकैत की आँखों से आंसू बहे थे उस रात हरियाणा के लाखों किसानों ने जबरदस्त सर्दी, ठिठुरन व धुंध के बावजूद टिकैत के आंसुओं के जवाब में रातों रात हरियाणा के विभिन्न इलाकों से दिल्ली की ओर मार्च किया था। और इसी घटना से किसान आंदोलन को ऐसा प्रोत्साहन मिला कि आखिरकार आन्दोलन की परिणिति किसानों की फतेह के रूप में सामने आई। पंजाब के किसान नेता जोगिन्दर सिंह उगराहां का हरियाणा के किसानों के सहयोग व भाई चारे को दर्शाने वाला बयान खूब वायरल हुआ। किसान आंदोलन की दिल्ली की सीमाओं पर गुजारी गयी पहली रात को याद करते हुए उगराहां ने कहा कि-’आंदोलन स्थल पर पहली रात किसानों ने बिना दूध की चाय पी थी। परन्तु सुबह हरियाणा के किसानों ने इतना दूध भेज दिया कि दूध रखने के लिये बर्तन ही नहीं बचे। ऐसे में पंजाब व हरियाणा के किसानों के साथ को कभी भूला नहीं जा सकता।’

कई ऐसी बातें भी हुईं जो इस पूरे शांतिपूर्ण आंदोलन के लिये बदनामी का सबब बनीं। जैसे 26 जनवरी को किसानों के एक वर्ग व उसमें कुछ शरारती तत्वों का लाल किले पर हुड़दंग मचाना, निहंग द्वारा किसी सेवादार का हाथ काट देना आदि इसतरह के और भी कई नकारात्मक समाचार आए। इनमें कई दुर्भाग्यपूर्ण थे तो कुछ दुर्भावनापूर्ण साजिश का हिस्सा। परन्तु सत्ता की सभी शतरंजी चालों का जवाब देश के किसानों ने अत्यंत धैर्य व संयम के साथ दिया। जिसमें आखिरकार किसानों की फतेह हुई और अहंकारी सत्ता की बेशर्मी भरी हार। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि देश द्रोही, देश विरोधी, खालिस्तानी, नक्सल व आन्दोलनजीवी जैसे न जाने कितने आरोपों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए यह ऐतिहासिक किसान आंदोलन मानवता व भाईचारे की भी एक जबरदस्त मिसाल भी पेश कर गया।

 

 

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