रावत की नाराजगी
-सिद्वार्थ शंकर-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
कांग्रेस में नेताओं के बीच आपसी मनमुटाव की प्रक्रिया बढ़ती जा रही है। एक के बाद एक राज्य और फिर तीसरे राज्य में पार्टी नेताओं के बीच मतभेद की खबरें लगातार सामने आ रही हैं, जो आलाकमान के लिए मुसीबत का सबब बन गई हैं। खासकर चुनावी राज्यों पंजाब और उत्तराखंड में विरोध के स्वर बढ़ रहे हैं। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस नेता सचिन पायलट के बीच तकरार है। पंजाब में मुख्यमंत्री चन्नी और प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच तकरार चल रही है। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच मतभेद हैं। महाराष्ट्र में विधायक जीशान सिद्दीकी ने राज्य के पार्टी प्रमुख भाई जगताप के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। अब उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत जल्द ही पार्टी को अलविदा कह सकते हैं। इसके संकेत हरीश रावत की तरफ से बुधवार को सोशल मीडिया पर अपलोड की गई दो पोस्ट से मिले हैं, जिनमें उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस आलाकमान के रवैये पर सवाल खड़े करते हुए साथ छोडने का इशारा किया है। उत्तराखंड में साल 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में हरीश रावत के इस बयान के सियासी मायने बढ़ गए हैं। उधर, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और अब कांग्रेस के बागी हो चुके कैप्टन अमरिंदर सिंह ने रावत पर तीखा तंज कसा है। पंजाब में कांग्रेस छोडने के लिए अमरिंदर रावत को बहुत हद तक जिम्मेदार मानते हैं। उन्होंने रावत से जुड़ी सोशल मीडिया पोस्ट को शेयर करते हुए लिखा- जो बोओगे, वही काटोगे। हरीश रावत को गांधी परिवार का बेहद करीबी माना जाता है, लेकिन उन्होंने सोशल मीडिया पर बिना नाम लिए गांधी परिवार ही निशाना साधकर चैंका दिया है। रावत ने सोशल मीडिया पर लिखा- है न अजीब सी बात, चुनाव रूपी समुद्र में तैरना है, सहयोग के लिए संगठन का ढांचा अधिकांश स्थानों पर सहयोग का हाथ आगे बढ़ाने के बजाय या तो मुंह फेर कर खड़ा हो जा रहा है या नकारात्मक भूमिका निभा रहा है। जिस समुद्र में तैरना है, सत्ता ने वहां कई मगरमच्छ छोड़ रखे हैं। जिनके आदेश पर तैरना है, उनके नुमाइंदे मेरे हाथ-पांव बांध रहे हैं। मन में बहुत बार विचार आ रहा है कि हरीश रावत अब बहुत हो गया, बहुत तैर लिए, अब विश्राम का समय है! 2019 लोकसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस पार्टी अपने वरिष्ठ नेताओं के बगावती तेवरों से परेशान रही है। हरीश रावत से पहले मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी से नाराज होकर भाजपा का दामन थाम लिया। वहीं, राजस्थान में सचिन पायलट में भी बगावती तेवर दिखाए थे। हालांकि, उन्हें मना लिया गया, ऐसा दावा किया जा रहा है। इसके बाद कांग्रेस के चोटी के 23 नेताओं ने जी-23 नाम से प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पार्टी नेतृत्व पर हमला बोला था। हाल ही में कांग्रेस को बड़ा झटका तब लगा था, जब पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने पार्टी का साथ छोड़कर अपनी खुद की नई पार्टी बना ली। कांग्रेस के भीतर नेताओं के अर्श से फर्श पर आने की गति कितनी तेज है, इसका सबूत कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाद अपनी हताशा जाहिर करने वाले हरीश रावत दे सकते हैं। दरअसल, उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत का दर्द सोशल मीडिया पर छलक आया है। वैसे, हरीश रावत का ये गुस्सा कांग्रेस आलाकमान से लेकर उत्तराखंड कांग्रेस इकाई तक के खिलाफ नजर आ रहा है। अभी कुछ दिन पहले की ही तो बात है, जब पंजाब कांग्रेस में लगी आग को बुझाने के लिए कांग्रेस नेतृत्व के कहने पर हरीश रावत को भेजा गया था। उन्होंने आग तो क्या ही बुझाई, कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ पंजाब कांग्रेस के लोगों को जमा करवाया और कैप्टन को कांग्रेस से बाहर का दरवाजा दिखा दिया था, लेकिन, अब वक्त ने करवट ली है। जिन हरीश रावत ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की सियासी राह में कांटे बो दिए थे वो हरीश रावत अब अपने ही घर यानी उत्तराखंड में हताश हैं। हताशा कांग्रेस के ही संगठन को लेकर है। कहा जा रहा है कि हाल ही में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने उत्तराखंड के देहरादून में एक रैली की थी। इस रैली से हरीश रावत के पोस्टर गायब थे। चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष हरीश रावत को यह बात शायद नागवार गुजरी क्योंकि, माना जा रहा था कि कांग्रेस आलाकमान ने हरीश रावत को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाकर उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर उनको ही आगे किया है लेकिन, देहरादून की रैली में पोस्टर से गायब रहने की वजह से हरीश रावत का गुस्सा भड़क गया है। उत्तराखंड में कांग्रेस के सबसे बड़े और कद्दावर नेता का चेहरा ही अगर राहुल गांधी की चुनावी रैली से गायब हो जाएगा, तो गुस्सा आना लाजिमी भी है। वैसे, हरीश रावत को जब पंजाब प्रभारी का पद दिया गया था, वो तब भी कांग्रेस आलाकमान से नाराज थे। हो सकता है कि उन्होंने अपना गुस्सा पंजाब कांग्रेस में बवाल भड़का कर ही निकाला हो क्योंकि, कैप्टन अमरिंदर सिंह के कांग्रेस छोडने के बाद भी अभी पंजाब में सब $कुछ ठीक नहीं हुआ है। नवजोत सिंह सिद्धू पहले कैप्टन के खिलाफ हमलावर थे, तो अब सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। उत्तराखंड चुनाव 2022 से पहले राज्य स्तर पर कांग्रेस ने संगठन में व्यापक बदलाव किया था इसमें हरीश रावत को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाने के साथ ही उनके करीबी गणेश गोदियाल को प्रदेश अध्यक्ष का पद सौंपा गया था लेकिन, यहां भी कांग्रेस आलाकमान ने दांव खेल दिया था। उत्तराखंड में भी पंजाब की तरह ही चार कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किए गए थे जिसके जरिये प्रीतम सिंह की अगुवाई वाले रावत विरोधी गुट को साधने की कोशिश की गई थी। माना जा रहा है कि प्रीतम सिंह की अगुवाई वाला गुट अब हरीश रावत के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है। माना जा रहा है कि संन्यास की बात कर हरीश रावत ने एक बार फिर से अपना पुराना दांव खेला है, जो पहले भी कामयाब रहा है क्योंकि, उत्तराखंड में सबकुछ हरीश रावत के हाथ में होने के बाद भी राज्य कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव सीएम चेहरे को लेकर समय आने पर फैसले की बात करते नजर आते हैं. प्रीतम सिंह भी सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लडने की बात कहते ही रहते हैं। हालांकि, ट्वीट के जरिये कांग्रेस संगठन पर सहयोग न करने का बड़ा आरोप लगाने के बाद अब हरीश रावत कुछ भी कहने से बच रहे हैं। हरीश रावत की ओर से इतना ही कहा जा रहा है कि जब समय आएगा, तो मैं इस पर बात करूंगा। अभी केवल इसका आनंद लीजिए। कहा जा सकता है कि पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के बगावती तेवर अपनाने के बाद हरीश रावत भी यहां कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बनाने के लिए वैसा ही कुछ ट्राई करने की कोशिश कर रहे हैं। खैर, रावत इसमें कितना कामयाब होंगे, ये तो वक्त बताएगा, लेकिन, इतना तय है कि अगर हरीश रावत को उत्तराखंड कांग्रेस संगठन का सहयोग नहीं मिला, तो यहां भी कांग्रेस की हालत खराब हो सकती है।
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