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लेख - December 24, 2021

निष्काम कर्म योगी अटल बिहारी वाजपेई जी के 97 वें जन्मदिन पर विशेष

-मुकेश तिवारी-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

एक समग्र व्यक्तित्व वाली शख्सियत थे अटल जी

राजनीति और लोकप्रियता में हर समकालीन से काफी ऊंचे भारत रत्न से सम्मानित और 3 मर्तबा देश के प्रधानमंत्री रहे श्री अटल बिहारी वाजपेई ने देश के आजाद होने से पूर्व और आजाद होने के पश्चात अपना संपूर्ण जीवन देश और देशवासियों के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया उनकी वाणी से असाधारण शब्दों को सुनकर जनसामान्य उल्लासित होते रहे और उनके कार्यों से हिंदुस्तान का मस्तक ऊंचा हुआ को परमपिता परमेश्वर ने वह रूखाई कभी नहीं दी जो शिखर पर बैठे लोगों में अक्सर देखने को मिलती हैं। असलियत यह है कि यही अदूभुत कला उनके जन जन का लोकप्रिय नेता होने की अहम वजह थी। व्यक्तित्व के रोम रोम में रची बसी ठेठ भारतीय संस्कृति , भोजन से लेकर व्यवहार तक खालिस भारतीय संस्कार राजनीति के रपटीली राह पर सरपट चलते हुए भी साहित्य से गहरा नाता ,अनुभवों कों पंक्तियों में ढाल लेने की कवित्व प्रतिभा यह सब अटल जी के व्यक्तित्व के आयाम थे।इन्ही गुणों ने उन्हें जमीनी नेता बनाने में अहम भूमिका अदा की ।
25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में शिंदे की छावनी में कमलसिंह का बाग स्थित कृष्ण बिहारी वाजपेयी के घर में जब अटल जी जन्में उस दिन क्रिसमस का दिन था गिरजाघर की घनटियों के बीच अटल जी के घर में थाली बजी थी। उनके पिता उतर प्रदेश के बटेश्वर से ग्वालियर रियासत में शिक्षक की नौकरी करनें आये थे। मां कृष्ण की अटल सातवी संतान थे। धार्मिक और ज्योतिषी बाबा श्याम लाल वाजपेयी के संस्कारों, बटेश्वर मंदिर में देवी प्रार्थना और घुटी में मिली रामचरित मानस ने अटल जी को उतना ही धार्मिक बनाया जितना एक सामान्य भारतीय होता हैं। घनाक्षरी व सवैया छंदों के महारथी पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ने अटल जी को जो संस्कार दिए वह बचपन से लेकर चाहे वह आपातकाल की जेल यात्रा हो या फिर राजनीतिक जीवन के उतार चढ़ाव हर जगह काम आते रहे।
मध्यम वर्गीय शिक्षक के बेटे अटल को चरित्र का जो पाठ पढ़ाया गया था वह उनकी अंतिम सांस तक साथ रहा ।पिता द्धारा पारिवारिक गुरू से अटल जी की पाटी पुजाई और फिर प्रारंभ हुई शिक्षक पिता की अपने बेटे को दीक्षा। गोरखी स्कूल से मिडिल और ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज जो अब लक्ष्मीबाई कॉलेज कहलाता है से ग्रेजुएशन किया किया ।कानपुर के डी ए वी कालेज सें राजनीतिशास़्त्र से ग्रेजुएशन किया । अटल जी ने कानून की पढ़ाई अपने पिता के साथ की । दोनों एक साथ हास्टल में रहते थें और एक साथ क्लास जाते थे । बीच में उन्हें कानून की पढ़ाई छोडनी पडी। अटल जी क्लास में नहीं होते तो प्रोफेसर पूछ बेठते , पंडित जी साहबजादे कहां है। वे जबाव देते कमरे की कुडी लगा कर आते ही होगे । 15 साल की उम्र में अटल जी संघ से जुड गए थे। नारायण राव तरटे उस वक्त ग्वालियर में प्रचारक थे । वाजपेयी के जीवन में आए सबसे महत्वपूर्ण लोगों में नारायण राव तराटे भी हैं। संघ के
संस्कारों में अटल ने बच्चन के चर्चित गीत मिटृी का तन क्षण भर जीवन मेरा परिचय के आधार पर अपनी जग प्रसिद्ध कविता लिखी जो उन्होनें 1942 में लखनउ के काली चरण हाईस्कूल में लगे शिविर में पहली बार प-सजयी थी। उक्त कविता थी । हिन्दू तन मन हिन्दू जीवन ,रगं रग हिन्दू मेरा परिचय। अटलजी ने बीए में हिन्दी संस्कृत और अंग्रेजी तीनों सहित्य एक साथ पढ़े जो उन दिनों केवल आगरा विश्व विधालय में उपलब्ध थे। अटल जी ने एम ए में विश्वविघालय में द्धितीय स्थान हासिल किया और अपनी वाक प्रतिभा और निखरी तथा उन्हें कानपुरिया तहजीब की ठसक के साथ कन्नौजी और बैसवारी भाषा के संस्कारमिले । किशोरावस्था में पहली बार रटकर भाषण देने की छूट होने के बावजूद बालक अटल ने प्रत्युत्पनमति के आधार पर भाषण देने की जो गाठं बांधी थी वह फरवरी 2009 में स्टोक होने के पूर्व तक उनके साथ रही। स्कूल से लेकर कालेज तक ओजस्वी और चुटीले भाषण व वादविवाद प्रतियोगिताओं में निरतर भागीदारी ने अटल के ब्यक्तित्व के उस पहलू को सबसे ज्यादा निखारा जो उनकी लोकप्रियता का सबसे बडा आधार था। अटल संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी में भाषणदेने वाले पहले भारतीय नेताथे । अटल जी नें 1998 में परमाणु विस्फोट का निर्णय कर भारत को नई पहचान दी । 25 दिसंबर 2014 को अटल जी को केन्द्र सरकार द्धारा उनके 90 वे जन्म दिवस पर भारत रत्न से नवाजने का फैसला किया गया और 27 मार्च 2015 को अटल जी को भारत रत्न देने के लिए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी स्वयं उनके 6 कृष्ण मेननमार्ग दिल्ली स्थित घर पर गए थे
वाणी की ओजस्विता के साथ कलम की तेजस्विता का समन्वय किया अटल ने पांचजन्य व राष्ट्रधर्म का संपादन कर । रोचक बात यह हैकि अटल जी सिर्फ संपादकीय ही नहीं लिखते थें
बल्कि लखनउ में अमीनाबाद की मारवाडी गली में दीनदयाल उपाध्याय के साथ राष्ट्रधर्म के बंडल भी बाधतें थें। राष्ट्रधर्म का प्रथम अंक अटल जी ने निकला था। राष्ट्रधर्म को मिली सफलता के पश्चात ही दीनदयाल उपाध्याय ने साप्ताहिक पांचजन्य प्रकाशित करने की जिम्मेदारी भी अटल जी को सौपी । अटल ने ही पांचजन्य का प्रवेशांक निकला। पत्रकारिता से उनका संबंध बाद में दैनिक स्वदेश काशी से प्रकाशित होने वाली पत्रिका चेतना और अल्प समय तक दैनिक वीर अर्जुन के साथ रहा।
1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की नीव रखी तव अटल संस्थापक सदस्यों में से एक थे। अक्टूबर 1951 में जनसंघ के दिल्ली में हुए पहले अधिवेशन के पश्चात 1954 में
अटल जी ने लखनउ से पहला लोकसभा चुनाव लडा पर हार गए 1957 से मथुरा ,लखनउ और बलरामपुर से चुनाव लडा लेकिन मथुरा और लखनउ में वे पराजित हो गए बलरामपुर से जीतकर लोकसभा में पहुचें ।तब 33 साल के अटल जी सबसे युवा संसद थें । यह पहला अवसर था जब लोकसभा में जनसंघ के चार सदस्य थे और चारों नयें थे। प्रतिपक्ष के नेता की उनकी भूमिका भारत ही नहीं , दुनिया के सभी लोकतांतिक देशों के नेताओं के लिए माडल के तौर पर मानी जा सकती हैं। उन्होनें करोडों भारतीय कों अपने रसीले भाषणों से जिस तरह मंत्र मुग्ध किया है,वैसा देश के किसी नेता नें नही किया। अटल की इस भाषण कला ने जवाहर लाल नेहरू तक को अपना कायल बनाया ।तीसरी लोकसभा का चुनाव वह बलरामपुर
से हारे लेकिन राज्य सभा में पहुंचे । 1962 से 1967 के दौर में युद्ध ,नेहरूजी का निधन, फिर शास्त्री जी के ा निधन की घटनाओं सहित लगभग 50 प्रतिपक्ष में रहने के बावजूद उनके
भाषणों या लेखों में कभी भी कटुता दिखाई नहीं पडीं हालांकि उन्होनें सरकारी नीतियों की आलोचना करने या मजाक उडाने में कभी कोताही नहीं की। किसी भी लोकतंत्र के लिए गर्व की बात हो सकती हैं कि कोई नेता 60 – राजनीति करे ओैर उसके पूरे राजनैतिक जीवन में ऐसा एक भी उदाहरण आप न बता सके , जो कटुता या मर्यादाहीनता का पर्याय माना जा सके । प्रतिपक्ष में रहते हुए सत्तापक्ष के उजले को उजला कहने की उदारता कितने नेताओं में होती है। भारतीय संसद ने उन्हें सर्वश्रेष्ट सांसद की उपाधि उनकी इस सिद्धहस्ता की वजह से ही दी थी ।प्रतिपक्ष के नेता की उनकी भूमिका भारत ही नहीं दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देशों के नेताओं के लिए माडल के तौर पर मानी जाती है। अटल जी के भाषण संसदीय इतिहास की धरोहर है। चैथी लोकसभा में अटल पुनः बलरामपुर से जीते । जब 1975 में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाईतब, अटल को जेल जाना पडा जेल यात्रा ने अटल को राजनीति की कुछ नई
नसीहतें दी और इसी दौरान कैदी जीवन की अपनी कविताए लिखी। 1977 में अटल जी विदेश मंत्री बने ।इसी साल यूएन में हि न्दी में भाषण दिया ।
कुल मिलकर अटल जी 1957 से 1998 तक 6 अलग -अलग सीटों से 10 बार लोकसभा और 2 बार राज्य सभा में पहुचे , वाजपेयी 50 साल सांसद रहे। वे 63 साल तक सक्रिय राजनीति में रहें ।अटल जी पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे ।जिन्होने 5 साल सरकार चलाई। अटल जी भाजपा के एक मात्र नेता थे जिनकी तारीफ नेहरूजी करते करते थे, उनकी राजनीतिक परिपक्वता के चलते इंदिरा गाधी उनसेसलाह लेती थीं और इसी परिपक्वता के चलते नरसिम्हाराव ने यूएन भेजा। राजनीति की रपटीली राहों पर फिसलते -ंउचयसभलते अटल जिस शिखर पर पहुंचे वहां पर भी उनके संस्कार साथ रहें ।एक सामान्य भारतीय की तरह अपयश से भय वाजपेयी की ताउम्र पूजी रही । जो उन्हें हजारों नेताओं की भीड में सबसे अलग खडा करती है और अजातशत्रु राज नेता बनती हैं लेकिन संघर्ष का बोध उनके इस शिखर पर उनके पहुचने के बाद भी उनके साथ रहा। राजनीति के अजातशत्रु भारत रत्न से सम्मानित पूर्वप्रधानमंत्री अटल जी ने 16 अगस्त 2018 की शाम करीब 5 बजे 93 बर्ष की आयु में अपने गरिमापूर्ण राजनैतिक जीवन के बाद अपनी कर्म स्थली दिल्ली में अंतिम सांस ले ली हो मगर उनके आचार विचार और जीवन दर्शन हिन्दुस्तान के सवा सौ करोड देशवासी कभी भूल नहीं पायेगे । राजनीति के अजातशत्रु भारत को सफल नेतृत्व देने वाले प्रधानमंत्रियों में अग्रगण्य पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने 16 अगस्त 2018 की शाम करीब 5ः00 बजे 63 वर्ष की आयु में अपनी कर्म स्थली दिल्ली में अंतिम सांस ली वे हमेशा के लिए इस दुनिया से अलविदा हो गए

 

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