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लेख - May 23, 2022

जल संकट : कहीं अतित का स्वप्न बन कर ना रह जाए शुद्ध पेयजल

-भगवत कौशिक-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

आर्थिक और सुरक्षा की दृष्टि मे एक दूसरे से आगे निकलने की छिडी जंग मे विश्व और हमारे देश भारत के सामने एक बड़ा संकट आ चुका है जिसे देखकर हर कोई या तो अंजान बन रहा है या फिर उन्हें इस संकट की विकरालता का आभास नहीं है। तमाम तरह की चेतावनी और जागरुकता अभियान के बावजूद कोई यह समझने को तैयार नहीं है कि विश्व में जल संकट एक बड़ा विकराल रूप लेता जा रहा है।
वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टिट्यूट (डब्ल्यूआरआई) द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। पानी का गंभीर संकट झेलने वाले 17 प्रमुख देश अपने क्रम के अनुसार क्रमशः कतर, इज़राइल, लेबनान, ईरान, जॉर्डन, लीबिया, कुवैत, सऊदी अरब, इरिट्रिया, यूएई, सैन मैरिनो, बहरीन, भारत, पाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ओमान और बोत्सवाना है। डब्ल्यूआरआई की मानें तो पानी की अत्यधिक कमी का सामना कर रहे यह 17 देश जल्द ही ‘डे जीरो’ जैसी स्थिति का सामना कर सकते हैं ।अगर भविष्य मे ऐसे हालात रहेंगे तो एक कहावत होगी “एक प्यासा कौआ था और वह प्यासा ही मर गया”।वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीटयूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल दो लाख लोग जल अनुपलब्धता और स्वछता संबंधी उचित व्यवहार न होने की वजह से मर जाते है।
नीति आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट में भी यह बात स्वीकार की गयी है कि भारत के कई शहरों में जल संकट गहराता जा रहा है, और आने वाले वक्त में उसके और विकराल रूप लेने के आसार हैं। रिपोर्ट के अनुसार जहां 2030 तक देश की लगभग 40 फीसदी आबादी के लिए जल उपलब्ध नहीं होगा।मौजूदा समय मे भी देश की दस करोड़ से ज्यादा आबादी गंभीर जल संकट का सामना कर रही है।जिसका सबसे बडा कारण है बेशकीमती भूजल का बेतरतीब ढंग से दोहन।

पानी बेचना बना व्यवसाय-

जलसंकट को देखते हुए लोगों ने अब पानी को भी व्यवसाय का साधन बना लिया है।शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों मे लोगों ने अवैध आरओ प्लांट लगाकर पानी को बेचना शुरू कर दिया।आज चाहे गांव हो या शहर पीने के पानी का डिब्बा 10 रूपये से लेकर 20 रूपये मे धडल्ले से भेजा जा रहा है।इसके साथ साथ पानी के टैंकर के लिए 600-700 रूपये लिए जा रहे है।

गिरता भूजल स्तर, खेतीबाड़ी से हो रहा है पलायन –

पानी के अंधाधुंध दोहन से हालत इस कदर बेकाबू होते जा रहे है कि किसानों के देश भारत मे अब किसान खेती से पलायन करने पर विवश है।बात चाहे पंजाब की हो ,या उत्तर प्रदेश की या हरियाणा की तीनो ही राज्य मे किसानों ने धान,गेहूं व गन्ने जैसी फसलें जिनमें पानी की खपत होती है उसी का रोपण किया।नतीजतन तीनों ही राज्यों मे भूमिगत जल स्तर बहुत ज्यादा नीचे चला गया।
भूजल स्तर की ओर विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट मे तो चेतावनी दी गई है कि यदि अंधाधुंध जलदोहन व जलवायु परिवर्तन का ऐसा ही हाल रहा तो आने वाले एक दशक मे 60 फीसदी कस्बे सुखे की चपेट मे होंगे।

ये पानी दोबारा नहीं मिलना–

जी हा यदि भूमिगत जल स्तर का ऐसे ही दोहन होता रहा तो निकट भविष्य मे पानी अतीत का स्वप्न बन कर रह जाएगा।देश मे जंहा पहले 2.26 करोड़ हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र का क्षेत्रफल था,वह अब 6.8 करोड़ हेक्टेयर हो चूका है।यही कारण है कि तालाब व कुएं सूख रहे है।

जहरीली धरती और जहरीला पानी –

उत्तर भारत की बात करें तो भूजल के गिरते स्तर ने चिंता बढ़ा दी है। यहां का जल संकट गंभीर संकेत दे रहा है। मैदानी इलाकों के साथ ही पंजाब-हरियाणा में चिनाब, झेलम नदियों के किनारें हों या उत्तराखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश में गंगा-यमुना नदियों के आसपास का क्षेत्र सभी जगह भूजल का स्तर तेजी से गिर रहा है। पंजाब में खेतों में कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के जहरीले तत्वों के कारण धरती बंजर हो गई और कई स्थानों पर भूजल रसातल पर जा पहुंचा है। पानी और धरती के जहरीले हो जाने के कारण वहां उगा अनाज कई बीमारियों जैसे कैंसर और त्वचा संबंधी रोगों का कारण बन रहा है।

जंल संकट का सामना करने वाले राज्य —

छत्तीसगढ़, राजस्थान, गोवा, केरल, उड़ीसा, बिहार, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, झारखंड, सिक्किम, असम, नागालैंड,उत्तराखंड, मेघालय

केवल 3 फीसदी मीठा जल है पीने के लिए —

“जल ही जीवन है” हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। यह भी पता है कि धरती की सतह 70 फीसदी पानी से पटी हुई है। लेकिन दुनिया में पीने के लिए मीठा पानी सिर्फ 3 फीसदी है। और ये इतना सुलभ नहीं है… इसमें से भी विश्व की नदियों में प्रतिवर्ष बहने वाले 41,000 घन किमी (cubic kilometer) जल में से 14,000 घन किमी का ही उपयोग किया जा सकता है। इस 14,000 घन किमी जल में भी 5,000 घन किमी जल ऐसे स्थानों से गुजरता है, जहां आबादी नहीं है और यदि है भी तो उपयोग करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इस प्रकार केवल 9,000 घन किमी जल का ही उपयोग पूरे विश्व की आबादी करती है।

डे जीरो के कगार पर शहर-

हमारे देश के प्रमुख शहर मेरठ, दिल्ली, फरीदाबाद, गुरुग्राम, कानपुर, जयपुर, अमरावती, शिमला, धनबाद, जमशेदपुर, आसनसोल, विशाखापत्तनम, विजयवाड़ा, चेन्नई, मदुरै, कोच्चि, बंगलुरु, कोयंबटूर, हैदराबाद, सोलापुर और मुंबई शहर में डे जीरो यानी भू-जल खत्म होने के कगार पर है।

दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान राज्यों में भूजल दोहन का स्तर बहुत अधिक है, जहां भूजल दोहन 100% से अधिक है। इसका अर्थ यह है कि इन राज्यों में वार्षिक भूजल उपभोग वार्षिक भूजल पुनर्भरण से अधिक है। हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश तथा केंद्र शासित प्रदेश पुद्दूचेरी में भूजल विकास का दोहन 70% और उससे अधिक है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान भूजल का उपयोग उन क्षेत्रों में बढ़ा है, जहां पानी आसानी से उपलब्ध था।

देश में 80 फीसदी पानी का नहीं हो पाता शुद्धिकरण-

देश में वाटर ट्रीटमेंट की भी हालत बहुत खराब है। घरों से निकलने वाले 80 फीसदी से अधिक पानी का ट्रीटमेंट नहीं हो पाता है और ये दूषित पानी के तौर पर नदियों में जाकर उसे भी दूषित करते हैं। इसी के साथ देश में सिर्फ 8 फीसदी बारिश के जल का भंडारण किया जाता है जो कि विश्व में सबसे कम है।

आनेवाले समय मे सिर्फ अमीर ही कर पाएंगे जरूरतों को पूरा कर —

यूएन ह्यूमन राइट्स की एक रिपोर्ट का कहना है कि विश्व उस दिशा में तेजी से बढ़ रहा है जहां सिर्फ अमीर लोग ही मूलभूत जरूरतों की भी पूर्ति कर सकेंगे। यूएन रिपोर्ट के मुताबिक साल 2030 तक पानी की जरूरतें दोगुनी बढ़ जाएंगी। इससे करोड़ों लोग जलसंकट की चपेट में आ सकते हैं। इसी संस्था की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक भारत जनसंख्या में चीन को अगले एक दशक में पीछे छोड़ देगा जबकि साल 2050 तक 41.6 करोड़ लोग शहरों में बस जाएंगे।

दुनिया में 100 करोड़ अधिक लोगों को पीने का साफ़ पानी उपलब्ध नहीं है।तेजी से गहराते जल संकट के बीच सरकारी तंत्र की रुचि कागजी परियोजनाओं तक सिमट कर रह गई है। कानून बनाने या सर्वेक्षण कराने अथवा आकलन की कवायद ही ज्यादा होती रही है। जल संकट से निजात पाने के लिए समाज और सरकार की गंभीर हिस्सेदारी तो आज की सबसे बड़ी जरूरत है ही, व्यक्तिगत स्तर पर भी लोग या छोटे समूह पहल कर सकते हैं। अगर अब भी नहीं संभला गया तो वो दिन दूर नहीं जब तीसरा विश्व युद्ध का कारण पानी होगा और पानी केवल अतीत का स्वप्न बनकर रह जाएगा।

पानी की आस मे पथराई आंखे,30 साल से सिंचाई व पीने के पानी की किल्लत झेल रहे है उमरावतवासी

धरती पर जीवन यापन के लिए जल सबसे जरूरी मूलभूत संसाधन है।जल के बिना धरती पर जीवन की कल्पना भी नहीं कि जा सकती ,लेकिन उसी मूलभूत और आवश्यक संसाधन का यदि अभाव हो जाए तो जीवनयापन कैसा होगा ये सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते है।आज हमारे देश और प्रदेश में अनेकों ऐसे गांव है जहा दिनप्रतिदिन जलसंकट गहराता जा रहा है और ये गांव डार्क जोन मे जा रहे है।इन गांवो मे लोगो का जीवन नर्क से बदतर हो गया है।फसल तो दूर की बात है इन गांवों मे मनुष्यों और पशुओं के पीने के लिए भी पानी उपलब्ध नहीं है।ऐसी ही कहानी है एक गांव उमरावत कि जो भिवानी शहर से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर भिवानी सांजरवाश रोड पर स्थित है।उमरावत गांव मे जहा पानी का जलस्तर इतना नीचे जा चुका है कि पानी इस गांव के लोगों के लिए सपना बन गया है। गहराते जलसंकट के भय ने गांवसियो को घुट घुट कर मरने पर विवश कर दिया है।

एक तरफ बारिश में देरी, सूखी नहरें और महंगे डीजल ने किसानों के चेहरों पर चिंता की लकीरें गहरी कर दी हैं। सिंचाई पानी उपलब्ध न हो पाने के कारण उमरावत गांव के किसान सूखे की मार झेल रहे है। भीषण गर्मी के बीच चल रही लू ने कृषि क्षेत्र पर संकट के बादलों को ज्यादा गहरा कर दिया है।

कभी लहलाती थी फसलें, गुंजती थी कोयलों की आवाज अब उडती है केवल धूल

आज से 30 वर्ष पूर्व कभी गांव उमरावत की उजाऊ जमीन में भी कोयले कुकती थी। वहां की भूमि में गेंहू, गन्ना, ज्वार, आदि की फसलें लहलहाती थी, लेकिन समय परिवर्तन के साथ-साथ नहर में पानी ना आने से अब वहां की जमीन बंजर हो चली है। यहां पर सालभर में केवल सरसों की फसल ही उगती है। किसानों की जिन्दगी अब अंधकारमय हो चली है।

क्या कहते है ग्रामीण

ग्रामीणों ने बताया कि उनकी दादरी डिस्ट्रीब्यूटरी नहर से जुडाव है। उनकी नहर जब कच्ची थी तो पानी भरपूर मात्रा में आता था और सभी के खेतों में पानी लगता था। खेत खलिहान फसलों से लहलहाते थे, लेकिन समय के साथ-साथ जब सत्ता परिवर्तन हुआ तो गठबंधन सरकार ने नहर का नवीनीकरण करवाकर इस पर करोड़ों रूपए खर्च किये। ग्रामीणों को भी पूरी आस बंध गई कि अब उनके आखिरी टेल तक पानी जरूर जायेगा और फसलों को सिंचित करने के लिए भी पानी मिलेगा, लेकिन उनकी यह आस भी अब धूमिल हो गई। नहर निर्माण के समय बड़े-बड़े अधिकारी जांच के लिए आए व ग्रामीणों को विश्वास दिलाया कि अब पूरी मात्रा में आएगा।

ग्रामीणों ने बताया कि विधायक भी नहर की टेल तक आए थे लेकिन आज भी गांव का जलघर व उनके खेत सूखे पड़े है। जिसकी कोई सुध नहीं ले रहा है। नहर में पानी न आने के कारण उनके खेत बंजर होते जा रहे हैं। अधिकतर किसानों ने तो पानी के अभाव में अपनी जमीन तक को बेच दिया है। जिन किसानों ने बैंक से लोन लिया है उसको वो फसल पर चुकता करते लेकिन यहां न तो अच्छी पैदावार है और किसानों की हालत भी माली है। ऐसे में किसान बैंक के कर्ज तले दबे हुए हैं। उन्हें अपनी जमीनें बेचने के अलावा कोई रास्ता दिखाई नहीं देता है। किसानों ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सत्ता में आने से पहले तो सरकार बड़े-बड़े दावे करती थी कि वह किसानों को आखिरी टेल तक पानी पहुंचाने के लिए वचनबद्ध है। किसानों ने विधायक, मंत्री व भिवानी दौरे के दौरान मुख्यमंत्री से भी पानी की समस्या के समाधान की बात रखी थी। जिस पर स्वयं मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने उन्हें आश्वासन दिया था कि उनके यहां सिंचाई के लिए पानी नवीनीकरण के बाद जरूर आ जाएगा, लेकिन अब तक आश्वासनों के सिवा ग्रामीणों को कुछ भी नहीं मिल पाया है।

 

 

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