गांधी जी और ग्रामीण विकास
-डा. वरिंदर भाटिया-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि भारत को ‘5000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था’ बनाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए गांवों का विकास आवश्यक है। गुजरात स्थित ग्रामीण प्रबंधन संस्थान के 41वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए शाह ने कहा, ‘मेरा दृढ़ता से मानना है कि देश का विकास इसके गांवों के विकास के बिना संभव नहीं है।’ इस समारोह में करीब 250 विद्यार्थियों को ग्रामीण प्रबंधन में उपाधि प्रदान की गई। केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘महात्मा गांधी ने कहा था कि हमारे देश की आत्मा गांवों में बसती है और मैं उसे दृढ़ता से मानता हूं।’ उन्होंने कहा, ‘अगर गांव समृद्ध, आत्मनिर्भर और अच्छी सुविधाओं से युक्त होंगे तो देश भी समृद्ध होगा। यह भारत को आत्मनिर्भर और 5000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के सपने को साकार करने में मदद करेगा।’ माननीय गृह मंत्री अमित शाह का राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के विचार का अनुमोदन बहुत ही सिरे की बात है। महात्मा गांधी ने अपने सपनों के भारत में अपनी व्यापक दृष्टि का परिचय देते हुए ग्रामीण विकास की तमाम आवश्यकताओं की पूर्ति करके ग्राम स्वराज्य, पंचायती राज, ग्रामोद्योग, महिलाओं की शिक्षा, गांव की सफाई व गांव का आरोग्य व समग्र विकास के माध्यम से एक स्वावलंबी व सशक्त देश के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया था।
गांवों में ग्रामोद्योग की दयनीय स्थिति से चिंतित गांधी जी ने ‘स्वदेशी अपनाओ, विदेशी भगाओ’ के जरिए गांवों को खादी निर्माण से जोड़कर अनेकों बेरोजगार लोगों को रोजगार देकर स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका को रेखांकित किया। वे स्वतंत्रता के पश्चात एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहते थे जहां ऊंच-नीच और महिला-पुरुष का भेद पूर्णतः समाप्त हो और सभी अपने मताधिकार का विवेकपूर्ण प्रयोग करके अपने प्रतिनिधि का चयन कर लोकतंत्र की नींव को मजबूत करें। आजादी के इतने वर्षों के बाद आज ग्रामीण विकास की छवि काफी सुधरी है। गांवों में स्कूल, अस्पताल, शुद्ध पेयजल का प्रबंधन, पुलिस चौकी की स्थापना आदि इसके प्रमाण हैं। महिलाओं के प्रति भेदभाव में कमी आई है और वे चारदीवारी से निकलकर देश के राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक क्षेत्र में अपना योगदान देने लगी। लेकिन अभी गांधी जी के सपनों के भारत को साकार करने के लिए हमें लंबा सफर तय करना बाकी है। गांधी जी के देश में गांवों में शराब व मादक द्रव्यों के नशे में डूबती युवा पीढ़ी को इस दलदल से सुरक्षित बाहर निकालकर दिशा देने की चुनौती हमारे समक्ष है।
भीड़तंत्र के रूप में देश की वर्तमान व्यवस्थाओं से आहत होते लोगों में अहिंसा और शांति की स्थापना करने की अविलंब दरकार है। एक ऐसा माहौल कायम करनी की आवश्यकता है जहां लोगों में गांधीवाद और गांधी मूल्यों के प्रति आस्था व विश्वास बना रहे। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के बाद से ही महात्मा गांधी गांवों की दशा को लेकर बेहद चिंतित रहते थे और गांवों के प्रति नया दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर ज़ोर देते थे। दरअसल अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों से गांवों में रहने वाले लोगों में बेरोजगारी बढ़ रही थी। छोटे उद्योग-धंधे चौपट हो गए थे। शहरों के लोगों में विदेशी चीजों को खरीदने और उनका उपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ गई थी और इसका सीधा फायदा ब्रिटिश सरकार और ब्रिटेन की जनता को मिल रहा था। भारत से कच्चा माल ब्रिटेन जाता था और वहां से वह पक्का बनकर भारतीय लोगों को महंगे दामों पर बेचा जाता था। ऐसे समय में गांधी भारतीय जनता में जागरूकता लाने के लिए प्रयास करने लगे। गांधी ने चरखा को स्वदेशी आंदोलन का हथियार बनाया। उन्होंने नगर वासियों से अनुरोध किया कि वे अपने दैनिक जीवन में स्वदेशी उत्पादों का ही उपयोग करें। घर साफ करने के लिए प्लास्टिक ब्रश नहीं, झाड़ू का इस्तेमाल करें। टूथ ब्रश की जगह नीम या बबूल के दातुन का इस्तेमाल हो सकता है। कारखाने के पालिश किए हुए चावल के बदले हाथकुटे चावल का, कारखाने की चीनी के बदले गुड़ का उपयोग हो सकता है। यह आज भी देश के लिए सामयिक है। गांधी जी गांवों की आर्थिक प्रगति के जरिए सामाजिक और आर्थिक असमानता भी दूर करना चाहते थे।
उनके अस्पृश्यता निवारण के अभियान का एक आर्थिक पहलू भी था। वे गरीब और वंचित लोगों की आर्थिक प्रगति से सामाजिक बुराइयों को कमजोर होता देखते थे। गांधी जी कहते थे कि गांव से वस्तुएं खरीदने की आदत हमको डालना होगी जिससे ग्रामीण जन मजबूत होगा। उन्हें मजदूरी और मुनाफा दोनों ही मिलेगा। गांव की जनता की आर्थिक प्रगति से राष्ट्रीय समस्याएं कम होंगी और स्वतंत्रता आंदोलन को भी मजबूती मिलेगी। गांधी ने नगर वासियों को गांवों का महत्व समझाते हुए अपनी चिंता इन शब्दों मे व्यक्त की, ‘नगर वालों के लिए गांव अछूत है। नगर में रहने वाला गांव को जानता भी नहीं। वह वहां रहना भी नहीं चाहता। अगर कभी गांव में रहना भी पड़ जाए तो वह शहर की सारी सुख-सुविधाएं जमा करके उन्हें शहर का रूप देने की कोशिश करता है।’ गांधी जी शहर द्वारा गांवों के शोषण को हिंसा का ही रूप बताते थे। गांधी चाहते थे कि नगर से लोग गांव में आकर रहें और गांव की अर्थव्यवस्था सुधारने में योगदान दें। इसके लिए वे स्वयं वर्धा से थोड़ी दूर एक छोटे और पिछड़े गांव से गांव में जाकर बस गए। इस गांव में गांधी के साथ भारत और बाहर के लोग भी आकर रहने लगे। ये लोग पूर्णतः स्वदेशी जीवन शैली और पद्धति से रहते थे। अधिकांश प्राकृतिक चीजों का ही इस्तेमाल करते थे। बाद में इस गांव का नाम ही बदलकर सेवाग्राम हो गया। गांधी जी के विचारों में भारत की सभ्यता और संस्कृति का विकास गांवों में हुआ। वे कहा करते थे कि गांवों की आत्मनिर्भरता से अहिंसक समाज मजबूत होता है।
इसीलिए अहिंसामूलक होने के पहले ग्राममूलक होना आवश्यक है। गांधी जी के सपनों का भारत गांवों में बसता था और इसके लिए वे ग्राम स्वराज, पंचायती राज, ग्रामोद्योग, महिलाओं की शिक्षा, गांवों में स्वच्छता, गांवों का आरोग्य और समग्र ग्राम विकास आदि को प्रमुख मानते थे। महात्मा गांधी ने ‘मेरे सपनों का भारत’ में लिखा है, ‘भारत की हर चीज़ मुझे आकर्षित करती है। सर्वोच्च आकांक्षाएं रखने वाले किसी व्यक्ति को अपने विकास के लिए जो कुछ चाहिए, वह सब उसे भारत में मिल सकता है।’ यह गांवों के विकास से ही संभव हो सकेगा। भारत के ग्रामीण परिवेश पर अपने विचार रखते हुए गांधी जी ने कहा था ‘भारत की स्वतंत्रता का अर्थ पूरे भारत की स्वतंत्रता होनी चाहिए और इस स्वतंत्रता की शुरुआत नीचे से होनी चाहिए। तभी प्रत्येक गांव एक गणतंत्र बनेगा। अतः इसके अनुसार प्रत्येक गांव को आत्मनिर्भर और सक्षम होना चाहिए। समाज एक ऐसा पैरामीटर होगा जिसका शीर्ष आधार पर निर्भर होगा।’ याद रहे कि देश के विकास में आने वाले समय में गांवों को महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। इसके लिए गांवों के लिए मूलभूत सुविधाओं में इजाफा करना होगा। इसके अतिरिक्त हमें यह समझना चाहिए कि गांधी जी ने गांव के गणतंत्र रूप की जो कल्पना की है, इसके लिए ग्रामीण विकास को गति देना प्राथमिकता होना चाहिए।
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