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140 करोड़ के पार!

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

भारत की जनसंख्या करीब 140.80 करोड़ है और यह प्रत्येक मिनट बढ़ रही है, क्योंकि औसतन 30 बच्चे हरेक मिनट पर जन्म लेते हैं। चीन में यह औसत 10 रह गई है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक रपट के मुताबिक, भारत की आबादी 141 करोड़ से अधिक है और 2023 में वह चीन को पार कर जाएगा। आबादी 142.9 करोड़ से अधिक होगी। चूंकि 11 जुलाई को ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ था, लिहाजा ये आंकड़े हमें सचेत करते हैं। दुनिया की कुल ज़मीन का मात्र 2 फीसदी ही भारत के हिस्से में है। पानी सिर्फ 4 फीसदी उपलब्ध है, लेकिन आबादी 18 फीसदी से ज्यादा है। एक दौर ऐसा आ सकता है, जब एक-एक इंच ज़मीन, एक बाल्टी पानी, स्वच्छ घी, दूध, फल-सब्जी आदि के लिए भारत में मार-काट के हालात बन सकते हैं! भारत में जनसंख्या असंतुलन के मद्देनजर अव्यवस्था और अराजकता के लिए विशेषज्ञ लगातार चेतावनी देते रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री समेत लगभग सभी बड़े राजनेता आज भी 125-130 करोड़ की आबादी पर ही अटके हैं। कुछ अपडेट मुख्यमंत्री और नेता 135 करोड़ आबादी का उल्लेख करते रहे हैं। किसी को यथार्थ की विस्फोटक स्थितियों की जानकारी ही नहीं है। ऐसे में देश के सबसे बड़े और अधिकतम आबादी वाले राज्य उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चिंता जताते हैं कि एक वर्ग विशेष की आबादी तेज गति से बढ़नी नहीं चाहिए और मूल निवासियों की जनसंख्या लगातार घटनी नहीं चाहिए, तो उन पर हिंदू-मुसलमान के आरोपों की बौछार शुरू हो जाती है।

आरएसएस और भाजपा का जनसंख्या संबंधी एजेंडा याद आने लगता है। मुख्यमंत्री योगी ने हमारी जनसंख्या की हकीकत बयां की है। यह उप्र ही नहीं, पूरे देश की ऐसी समस्या है, जो देश के औसत नागरिक का स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार, स्वच्छ पर्यावरण और पोषण आदि को छीन सकती है। इस दौरान टीवी चैनलों पर एक दृश्य दिखाया जाता रहा कि उप्र में ही एक पिता और दो माताओं की 19 संतानें हैं। पिता जर्जर काया है। गरीब लगता है, लेकिन बच्चों को ‘भगवान का उपहार’ मान रहा है। वह परिवार कैसे गुज़ारा करता होगा, भोजन की व्यवस्था कैसे होती होगी, बच्चों की पढ़ाई और पोषण की स्थिति क्या है, सिर पर छत भी नहीं है। ऐसे असंख्य उदाहरण इस देश में होंगे। क्या उनके रहते जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास किए जा सकते हैं? यह भारत के जनसंख्या असंतुलन और नियंत्रण के प्रति अज्ञानता का एक वीभत्स उदाहरण भी है। इस समस्या से जागरूकता और प्रचार के स्तर पर ही निपटा नहीं जा सकता।

भारत में जनसंख्या पर एक कड़ा कानून होना चाहिए। चीन को उदाहरण माना जा सकता है। यदि 1979 में चीन ने ‘एक बच्चा नीति’ वाला कानून कड़ाई से लागू नहीं किया होता, तो आज चीन की आबादी 250 करोड़ से अधिक होती! आज चीन की आबादी की गति भारत से कम है। हालांकि हमारे यहां भी प्रजनन दर कम हुई है, मृत्यु-दर भी कम हुई है, लेकिन औसत जि़ंदगी की उम्र 70 साल से ज्यादा है। भारत में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति अब नहीं है, लेकिन फिर भी आबादी बढ़ रही है और हमारे संसाधन सीमित हैं। संयुक्त राष्ट्र और वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम के मुताबिक, दुनिया की आबादी फिलहाल 795.95 करोड़ से ज्यादा है, जो इसी साल के अंत या 2023 के शुरू में 800 करोड़ के पार जा सकती है। दुनिया में प्रति मिनट औसतन 270 बच्चों का जन्म हो रहा है। विश्व स्तर पर यह बढ़ोतरी मानवता के पक्ष में नहीं है। दरअसल भारत के संदर्भ में बढ़ती आबादी ‘वर्ग विशेष’ के लिए भी खतरनाक है, क्योंकि वह अपेक्षाकृत अशिक्षित, गरीब, कुप्रथाओं में जकड़ा है। वह बच्चों को अपनी ‘ताकत’ मानता रहा है, लेकिन पालन-पोषण को लेकर मोहताज है। यदि एक वर्ग की आबादी बढ़ती रहे और दूसरी तरफ ईसाई, पारसी, जैन आदि अल्पसंख्यक समुदायों की आबादी की बढ़ोतरी नकारात्मक रहे, तो आबादी का ऐसा असंतुलन देशहित में नहीं है। बहरहाल भारत सरकार को पहल करनी होगी और देशभर में विमर्श की शुरुआत हो। यह सिर्फ ‘वर्ग विशेष’ को निशाना बनाने की समस्या नहीं है। सुरसा की भांति बढ़ रही है। इस पर कानून का ड्राफ्ट बने।

 

 

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