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लेख - November 15, 2022

सवालिया है हत्यारों की रिहाई

-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-

संदर्भ देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या का है। हत्या कोई भी हो, बर्बर और जघन्य होती है। इस हत्याकांड में एक विदेशी आतंकी संगठन का हाथ था, लिहाजा यह मुद्दा राष्ट्रीय भी है। राजीव हत्याकांड के सजायाफ्ता हत्यारों को सर्वोच्च अदालत ने रिहा करने का फैसला सुनाया था। वे सभी जेल से बाहर आ चुके हैं। इसे ‘तमिलवाद’ का रंग दिया जा रहा है, लिहाजा राज्य में किसी ने भी हत्यारों की रिहाई का विरोध नहीं किया। इस संदर्भ में गांधी परिवार की भावुकता और महान बनने की ललक भी गौरतलब है, लेकिन वह कानून नहीं है। बेशक हत्याकांड में लिप्त लोगों ने तीन दशक से अधिक समय जेल में बिताया। सर्वोच्च अदालत के निर्णय पर भी कोई सवालिया आपत्ति नहीं है। यह अदालत का संवैधानिक विशेषाधिकार है और अनुच्छेद 142 के तहत शीर्ष अदालत ने हत्यारों की रिहाई का फैसला दिया है, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री की अमानवीय हत्या भी एक राष्ट्रीय सरोकार है। बेशक सजायाफ्ता चेहरों ने जेल में रहकर पढ़ाई की, उनके आचरण बेहतर रहे और वे अच्छे नागरिक बनने को लालायित दिखे, लिहाजा उनकी रिहाई पर विचार किया गया।

आचरण या बेहतर नागरिक बनने की गारंटी की कसौटियां क्या हैं और वे कितनी ठोस हैं, यह सवाल भी पूरे देश का हो सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की पृष्ठभूमि में श्रीलंका के लिट्टे आतंकी संगठन की साजि़श क्या यहीं तक सीमित थी कि उसे अंजाम देने वालों को, अंतत:, पूर्ण माफी देकर जेल से रिहा कर दिया गया? यह सवाल भी परेशान करता है कि क्या देश के पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या का न्यायिक निष्कर्ष यही होना चाहिए? जिन छह अपराधियों या आतंकजीवियों को जेल से रिहा किया गया है, उनमें 4 श्रीलंका के नागरिक हैं। उन्हें उनके देश भेज दिया जाएगा अथवा भारतीय शिविरों में ही वे रहेंगे? नलिनी के बयान और मांग से लगता है कि श्रीलंकाई नागरिक फिलहाल भारत में ही हैं, क्योंकि नलिनी ने अपने पति को शिविर से मुक्त करने की मांग की है। बहरहाल राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी की सजा सुनाई गई थी, लेकिन बाद में तमिलनाडु सरकार की सिफारिश पर न्यायिक पीठ ने उसे उम्र-कैद में तबदील कर दिया था। गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री हत्याकांड की जांच-पड़ताल सीबीआई के विशेष जांच दल ने की थी। टाडा अदालत में भी कानूनी प्रक्रिया चलाई गई थी। सर्वोच्च अदालत ने अंतिम निष्कर्ष दिया था। 21 मई, 1991 को चेन्नई के करीब श्रीपेरुम्बुदूर शहर की एक राजनीतिक जनसभा में आत्मघाती मानव-बम ने हमला किया और पूर्व प्रधानमंत्री समेत 15 अन्य लोगों के भी चीथड़े उड़ गए। जिस्म चिंदी-चिंदी हो गए। राजीव गांधी की पहचान भी बहुत मुश्किल से की गई थी। जनवरी, 1998 में एक टाडा अदालत ने 41 आरोपितों में से 26 को सजा सुनाई। एक साल बाद सर्वोच्च अदालत ने उनमें से 19 हत्यारों को रिहा करने का फैसला सुनाया।

हत्यारों में से 4 की सजा-ए-मौत को ‘सही’ आंका गया। अन्य 3 की सजा-ए-मौत को उम्रकैद में तबदील कर दिया गया। वर्ष 2000 में तमिलनाडु राज्यपाल ने, राज्य सरकार की अनुशंसा और सलाह पर नलिनी की सजा-ए-मौत को माफी देकर उम्रकैद कर दिया। 2014 में सर्वोच्च अदालत ने तीन अन्य की मौत की सजा कम करके उम्रकैद कर दी। दलील दी गई कि उनकी दया याचिकाओं पर केंद्र सरकार ने फैसला लेने में असाधारण देरी की। इस आधार पर उनकी सजा कम कर दी गई। अंतत: मई, 2022 को शीर्ष अदालत ने एजी पेरारिवलन की उम्र कैद भी माफ करने की अनुमति दी और उसी आधार पर 6 शेष हत्यारों की सजा माफ करके रिहाई का फैसला सुना दिया गया। इस संदर्भ में तमिलनाडु सरकार ने जो भी प्रस्ताव पारित किए और कैदियों की मुक्ति का रास्ता तैयार किया, उसका विरोध किसी भी तमिल पार्टी ने नहीं किया। जो दल ‘घोर राष्ट्रवाद’ की चिल्ला-चिल्ला कर राजनीति करते रहे हैं, वे भी इस मुद्दे पर खामोश रहे। उन्हें अच्छी तरह पता था कि उस हत्याकांड के पीछे विदेशी आतंकी संगठन लिट्टे की साजि़श थी। बहरहाल अब तो श्रीलंका में ही लिट्टे का अस्तित्व खत्म है, लेकिन सोच कहां मरती है?

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