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लेख - June 23, 2021

कोरोनाः तीसरी लहर से बचने के लिए दूसरी लहर के भयावह दुष्परिणाम को याद रखें

-निर्मल रानी-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

स्वास्थ्य विशेषज्ञों तथा वैज्ञानिकों द्वारा कोरोना की तीसरी लहर आने की चेतावनी बार बार जारी की जा रही है। कुछ लोगों का मत है कि अगले छः से आठ सप्ताह के मध्य तीसरी लहर का प्रकोप शुरू हो सकता है जबकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अक्टूबर तक कोरोना की तीसरी लहर आ सकती है। परन्तु पिछले दिनों देश के अधिकांश भागों में लॉक डाउन में मिली छूट के बाद जिस तरह बाजारों में भारी भीड़ नजर आने लगी और कोरोना का भय पूरी तरह से भूलकर जनता कोरोना संबंधी दिशा निर्देशों की अवहेलना या अनदेखी करती दिखाई दी उसे देखकर अब तो विशेषज्ञों ने यह भी कहना शुरू कर दिया कि यदि यही स्थिति रही तो कोरोना का प्रकोप तीसरी लहर के रूप में यथाशीघ्र वापस आ सकता है। गोया असावधानियाँ ही तीसरी लहर को दावत देने का सबसे बड़ा कारण बन सकती हैं। कोरोना की दूसरी लहर में भी पूरी दुनिया ने भारत की जो भयावह स्थिति देखी उससे हमारे देश व देश की सरकारों को जिस शर्मिन्दिगी का सामना करना पड़ा वह भी किसी से छुपा नहीं है। कहा जा सकता है कि पिछले दिनों देश ने ऑक्सीजन की कमी और अनगिनत जलती चिताओं के रूप में ‘लघु प्रलय ‘ जैसा भयावह दृश्य देखा है। अब तो विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि यदि लोगों की लापरवाही का यही आलम रहा तो तीसरी लहर, दूसरी से भी भयावह हो सकती है।

विगत अप्रैल व मई माह के बीच के देश के डरावने वातावरण ने पूरे विश्व का ध्यान भारत की दयनीय स्थिति की ओर खींचा जिसके नतीजे में अन्य देशों की तो बात ही क्या करनी चीन और पाकिस्तान जैसे हमारे पड़ोसी व प्रतिस्पर्धी देशों के भी दिल पिघल गए। बावजूद इसके कि इन देशों में भी कोरोना ने अपना कहर बरपा किया हुआ था। चारों तरफ से मदद करने वाले देशों की कतार लग गयी। ईश्वर न करे ऐसे हालात देश में दुबारा पैदा हों। ऐसा लगता है कि दूसरी लहर के बेकाबू हालात से देश की केंद्र व राज्य सरकारों ने भी कुछ न कुछ सबक जरूर लिया है। यही वजह है कि केंद्र सरकार अब टीकाकरण के बड़े से बड़े अभियान भी चला रही है। राज्य सरकारों को भी टीकाकरण के लिए प्रोत्साहित कर रही है तथा सामर्थ्यानुसार कोरोना रोधी टीकों(वैक्सीन) की यथासंभव आपूर्ति भी कर रही है। कोरोना वायरस की जांच में भी तेजी लाई जा रही है। इसके साथ साथ कड़े प्रतिबंध लागू करने के लिए भी राज्य सरकारों को निर्देश दिए जा रहे हैं। गत 21 जनवरी से सरकार ने ‘जान है तो जहान है ‘ के नारों के साथ कोरोना से युद्धस्तर पर लड़ने हेतु एक विशाल अभियान की शुरुआत की। इसके अंतर्गत देश के अनेक प्रमुख सामाजिक,धार्मिक,शैक्षिक हस्तियों तथा वरिष्ठ चिकित्सकों के कोरोना से बचाव के उपायों संबंधी संदेशों को नुक्कड़ नाटकों व सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरीये जनता तक पहुंचाए जाने की योजना है। इसी दिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार एक ही दिन में 84 लाख लोगों को टीकाकृत कर कीर्तिमान स्थापित किया गया।

देश के जिम्मेदार लोगों द्वारा बार बार देशवासियों को यह भी चेताया जा रहा है कि कोरोना की दूसरी लहर अपना रौद्र रूप दिखाने के बाद कमजोर जरूर पड़ी है परन्तु इसका यह अर्थ कतई नहीं निकालना चाहिए कि कोरोना भारत या संसार से विदा हो चला है। संभावित तीसरी लहर से जुड़ी सबसे अधिक चिंता पैदा करने वाली खबर तो यह है कि इसका दुष्प्रभाव बच्चों पर भी पड़ेगा। और इससे भी अधिक चिंतनीय विषय यह है कि विशेषज्ञों के मुताबिक कोरोना अपने वैरिएंट में बदलाव करता रहता है जिसकी वजह से अनेक लोग उन वैक्सीन की सार्थकता को लेकर भी चिंतित हैं जो कोरोना के गत वर्ष के प्रथम वैरिएंट के आधार पर निर्मित किये गए हैं। गोया प्रत्येक दशा में कोरोना से बचाव का एक ही सर्वोत्तम मार्ग सुझाई देता है,और वह है अपनी रक्षा स्वयं करना। कुछ इस अंदाज से जैसे हमारे देश में सरकार चोर उचक्कों से सुरक्षा की गारण्टी लेने के बजाय उस नारे पर ज्यादा विश्वास करती है जो प्रायः बसों में लिखा दिखाई देता है कि -’सवारी अपने सामान की स्वयं जिम्मेदार है ‘। और अपना बचाव करने को प्रोत्साहित करने वाला भारतीय रेल का यह मूल वाक्य कि -’सावधानी हटी-दुर्घटना घटी ‘।

परन्तु पिछले दिनों कोरोना की दूसरी लहर के मद्धिम पड़ने के बाद बाजारों में उमड़ी भीड़ से लेकर धार्मिक आयोजनों तक में नजर आने वाली लोगों की बड़ी तादाद फिलहाल हमें यही सोचने के लिए मजबूर कर रही है कि इतनी बड़ी बर्बादी व प्रलयकारी परिस्थितियों का सामना करने के बावजूद शायद अभी भी हमने कोई सबक नहीं सीखा है। कुंभ जैसा धार्मिक आयोजन जिस बेफिक्री व निडरता के साथ धर्मावलंबियों द्वारा मनाया गया और अभी तक वह आयोजन तथा उस दौरान बरती गयी कोरोना जाँच संबंधी लापरवाहियां भी विवेचनाधीन हैं। परन्तु गत दिनों गंगा किनारे लगभग पूरे देश में गंगा दशहरा के अवसर पर फिर से लाखों की भीड़ बेखौफ होकर इकठ्ठा हुई। मास्क लगाने जैसी कोरोना बचाव संबंधी गाइड लाइन को तो लोगों ने मजाक समझ लिया है। शारीरिक दूरी बनाये रखने जैसी सावधानी बरतना तो गोया लोग जानते ही नहीं। टीकाकरण को लेकर अभी भी लोगों को जागरूक करने की जरुरत पड़ रही है। टीकाकरण का विरोध करने वालों के द्वारा तरह तरह के दकियानूसी तर्क दिए जा रहे हैं जो टीका करण अभियान को बाधित कर रहे हैं। इसी बीच एलोपैथी बनाम आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के बीच कुछ व्यवसायी मानसिकता के लोगों ने जंग छेड़ कर आम लोगों को भ्रमित करने का भी प्रयास किया।

हमारे देश के स्वार्थी व सत्ताभोगी राजनेता भी अपनी चुनावी आवश्यकताओं को कोरोना बचाव संबंधी गाइड लाइन का पालन करने से भी ज्यादा अहमियत देते हैं। यानि उनके लिए जनता की जान से भी ज्यादा सत्ता जरूरी है। यूँ ही नहीं अदालतों ने कोरोना से हुई मौतों को ‘नरसंहार ‘ का नाम दिया था। इन हालात में देश के लोगों को केवल यही नहीं याद रखना है कि किस तरह से लोगों की मौतें हुईं और कैसे शमशान में चिताओं के जलने के लिए मृतकों के पार्थिव शरीरों को एक दो दिन तक अपने दाह संस्कार की कड़ी धूप में प्रतीक्षा करनी पड़ी और ऑक्सीजन के बिना कैसे लाखों लोगों ने तड़प तड़प कर अपने सगे संबंधियों की आगोश में दम तोड़ दिया। बल्कि यह भी याद रखना होगा कि आखिर ऐसे हालत क्योंकर पैदा हुए थे। नेताओं के भीड़ इकट्ठी करने के किसी भी आह्वान को नजरअंदाज करें। धार्मिक सामाजिक व पारिवारिक आयोजनों में मास्क खुद भी लगाएं और दूसरों को भी लगाने के लिए प्रोत्साहित करें। शारीरिक दूरी खुद भी बनाकर रखें और दूसरों को भी यही समझाएं। अपने हाथों को अधिक से अधिक बार धोते रहें व उन्हें सैनिटाइज करते रहें। अत्याधिक जरूरी होने पर ही घर से बाहर निकलें। कोशिश करें कि बाहर निकलने पर हाथों में दस्ताने धारण करें। सरकार के भरोसे रहने के बजाय अपनी व अपने बच्चों की रक्षा स्वयं करें और तीसरी लहर से बचने के लिए दूसरी लहर के भयावह दुष्परिणाम को जरूर याद याद रखें।

 

 

 

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