टोक्यो में हिमाचली खेल हुनर का इतिहास
-प्रताप सिंह पटियाल-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘दिव्य हिमाचल’ के माध्यम से हम भारतीय सेना के महान एथलीट दिवंगत कैप्टन मिल्खा सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। 23 जून का दिन विश्व भर में ‘ओलंपिक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। 23 जून 1894 को ‘पेरिस’ में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति की स्थापना हुई थी। आईओसी द्वारा पहला ग्रीष्मकालीन ओलंपिक सन् 1896 में यूनान की राजधानी एथेंस में आयोजित किया गया था, मगर ओलंपिक खेलों की प्राचीन जन्मस्थली ‘यूनान’ देश के ओलंपिया नामक स्थान को माना जाता है। यदि विश्वव्यापी महामारी कोरोना का कहर शांत रहा तो इस वर्ष 23 जुलाई से 8 अगस्त तक विश्व के 32वे ओलंपिक खेल महाकुंभ का आयोजन जापान की राजधानी टोक्यो में होगा। यही ओलंपिक खेल पिछले वर्ष कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के कारण स्थगित हुए थे। हिमाचल प्रदेश के लिए गौरव का विषय है कि राज्य का युवा खिलाड़ी आशीष चैधरी बॉक्सिंग में देश का प्रतिनिधित्व करेगा। टोक्यो में हिमाचली खेल हुनर का इतिहास 57 वर्ष पुराना है। जापान 2020 ओलंपिक से पूर्व 1964 में भी ओलंपिक खेलों की मेजबानी कर चुका है। 1964 का वही ‘टोक्यो’ ओलंपिक हिमाचली खेल हुनर का गवाह बना था, जब बिलासपुर (झंडुता) के कैप्टन अनंत राम (विशिष्ट सेना मेडल) ने भारतीय सेना की तरफ से जिम्नास्टिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। हालांकि कैप्टन अनंत राम ने 1956 के ‘मेलबोर्न’ ओलंपिक में ट्रैक के बादशाह मिल्खा सिंह के साथ भारत का प्रतिनिधित्व करके अपने ओलंपिक खेल जीवन की शुरुआत की थी। हिमाचल के प्रथम व्यक्तिगत ओलंपियन होने का गौरव भी कैप्टन अनंत राम को ही प्राप्त है। अंतरराष्ट्रीय खेल पटल पर देश का प्रतिनिधित्व करके पदक जीतना हर खिलाड़ी का सपना होता है, मगर खेलों की दुनिया में सबसे बड़ी प्रतियोगिता ओलंपिक में देश की नुमाइंदगी करना किसी भी खिलाड़ी के लिए बेहद सम्मानजनक लम्हे होते हैं। विश्व के सबसे बडे़ खेल महाकुंभ ओलंपिक में भाग्य आजमाकर अपने आप को सर्वश्रेष्ठ साबित करने का मौका भी श्रेष्ठ खिलाडि़यों को ही मिलता है। 2012 के लंदन ओलंपिक में कैप्टन विजय कुमार ने देश के लिए शूटिंग में रजत पदक जीत कर हिमाचल का मान बढ़ाया था। प्रदेश के कई अन्य खिलाड़ी भी विश्व की सबसे बड़ी खेल स्पर्धा ओलंपिक में भाग लेकर विश्व को राज्य की खेल हैसियत का अहसास करा चुके हैं कि देवभूमि के नाम से विख्यात राज्य चैंपियन पैदा करने की भी कूव्वत रखता है।
खेल क्षेत्र की इन बड़ी उपलब्धियों से जाहिर होता है कि दशकों पहले गुरबत के दौर में खेल संसाधनों की कंगाली तथा खेल प्रशिक्षकों व कई खेल सुविधाओं के अभाव के बावजूद राज्य या देश में मेहनतकश खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं थी और न ही अब है, मगर खिलाडि़यों के खेल हुनर को परखने व तराशने वाली खेल व्यवस्था तथा कार्यप्रणाली में जरूर कमी रही है। आबादी के लिहाज से भारत दुनिया में दूसरे पायदान पर काबिज है जिसमें सर्वाधिक तादाद युवावर्ग की है, मगर ओलंपिक इतिहास में देश के लिए व्यक्तिगत स्पर्धा में शूटर अभिनव विंद्रा (2008 ओलंपिक) के अलावा गोल्ड मेडल जीतने का करिश्मा दोबारा दोहराया नहीं जा सका। हैरत की बात है कि आठ या दस देशों में खेले जाने वाले खेल क्रिकेट के लिए प्रतिभाएं तराशने में ही गहरी दिलचस्पी दिखाई जाती है। क्रिकेटरों को ही करोड़ों रुपए के विज्ञापनों का ब्रांड एंबेसेडर बनाकर कई कंपनियां अपना बिजनेस बढ़ा रही हैं। देश में क्रिकेट के बढ़ते ग्लैमर ने कई खेलों व खिलाडि़यों को उपेक्षित करके हाशिए पर धकेल दिया है। दूसरी तरफ चरम पर बेरोजगारी, कोरोना महामारी से उपजी बेलगाम महंगाई ने देश के अर्थतंत्र से लेकर आम लोगों के घरों का बजट बिगाड़ कर खान-पान का जायका व लज्जत भी गायब कर दी है। गंभीर समस्या बन चुकी कमरतोड़ महंगाई के दौर में अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी तैयार करना किसी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे माहौल में भी हमारे खिलाड़ी मेहनत व लगन से वैश्विक खेल पटल पर देश का तिरंगा फहराने की जद्दोजहद में लगे हैं। इन खिलाडि़यों व उनके प्रशिक्षिकों तथा अभिभावकों का तहेदिल से सम्मान होना चाहिए। बेशक देश में कई खेल हॉस्टल व कोचिंग सेंटर मौजूद हैं जिन पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं। मगर खेल क्षेत्र में विश्वसनीय व सार्थक खेल परिणाम तभी निकलेंगे जब खेल संस्थाओं तथा खेल विभागों के तर्जुमान खेलों के प्रति पूरी शिद्दत से समर्पित होंगे।
खेल संघों या अन्य खेल व्यवस्थाओं की कमान अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनुभवी खिलाडि़यों को भी मिलनी चाहिए। देश का प्रतिनिधित्व कर रहे ज्यादातर खिलाडि़यों का संबंध ग्रामीण क्षेत्रों से है। यदि हमारे ग्रामीण कस्बों में स्कूलों से ही खेल प्रतिभाओं को तलाश कर उनके प्रशिक्षण पर तकनीकी खेल तंत्र विकसित किया जाए तो वैश्विक खेल मानचित्र पर परिणाम बेहतर हो सकते हैं। जिस प्रकार भारतीय सेना व रेलवे तथा अन्य सुरक्षा बलों ने कई खिलाडि़यों को तराश कर उन्हें खेल मंच प्रदान करके उनके खेल कौशल को मजबूत किया है, उस खेल व्यवस्था से देश के खेल संस्थानों को प्रेरणा लेने की जरूरत है। 2020 टोक्यो ओलंपिक में भारतीय सेना के बीस सैनिक खिलाड़ी विभिन्न स्पर्धाओं में देश का प्रतिनिधित्व करेंगे। बहरहाल खिलाडि़यों के उम्दा प्रदर्शन के दम पर ही देश खेल महाशक्ति के रूप में पहचान बनाते हैं। हमारे खिलाड़ी ओलंपिक खेल महाकुंभ में सिल्वर व कांस्य पदकों को स्वर्ण पदक में तब्दील करने की पूरी क्षमता रखते हैं, लेकिन यदि क्रिकेट को ही ‘जेंटलमैन गेम’ का दर्जा देकर केवल इसे ही खेल माना जाएगा या सियासत के खिलाडि़यों व सत्ता के खेल को ही ज्यादा तवज्जो दी जाएगी तो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतना महज एक ख्वाब बनकर रह जाएगा। इसलिए मेडल न जीतने पर खिलाडि़यों को कोसने से पहले खेल वजारत व खेल संघों की रहनुमाई करने वाले सरवराह विश्वस्तरीय खेल तकनीक के साथ खेलों के बुनियादी ढांचे को सुधारने में संजीदगी दिखाएं।
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