वैक्सीन का रिकॉर्ड
-सिद्वार्थ शंकर-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
देश में कोरोना के टीकों को लेकर उठ रहे संशय और खुराक की कमी पर उठाए जा रहे सवालों का जवाब अब मिल गया है। नई गाइडलाइंस के मुताबिक वैक्सीनेशन शुरू होने के पहले दिन अब तक के सारे रिकॉर्ड टूट गए। सोमवार को 85 लाख से ज्यादा लोगों को टीका लगाया गया। अब तक 85.15 लाख लोगों को वैक्सीन लगाई गई है। इससे पहले 5 अप्रैल को 43 लाख से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगाई गई थी। रिकॉर्ड लोगों को वैक्सीन लगने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुशी जताई। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि यह रिकॉर्ड तोड़ वैक्सीनेशन खुश करने वाला है। कोरोना से लडने के लिए वैक्सीन हमारा सबसे मजबूत हथियार बना हुआ है। उन सभी को बधाई जिन्होंने टीका लगवाया। सभी फ्रंटलाइन वॉरियर्स को बधाई जिन्होंने सुनिश्चित किया कि इतने सारे लोगों को टीका लगे। वेल डन इंडिया। सोमवार को सबसे ज्यादा वैक्सीनेशन मध्य प्रदेश में हुआ है। यहां 16.70 लाख लोगों को टीका लगाया गया। यह किसी भी राज्य में एक दिन में सबसे ज्यादा वैक्सीनेशन का रिकॉर्ड है। इसके अलावा कर्नाटक में 11.11 लाख और यूपी में 7.16 लाख लोगों ने वैक्सीन लगवाई। दिल्ली में यह संख्या महज 76,282 रही। देश में सोमवार को जितने लोगों को टीका लगाया गया, उससे कम कम आबादी वाले दुनिया में 134 देश हैं। इनमें हांगकांग, सिंगापुर, न्यूजीलैंड, कुवैत, नार्वे और फिनलैंड जैसे देश शामिल हैं। भारत में एक दिन में इजराइल और स्विटजरलैंड की आबादी के लगभग लोगों को टीका लगाया गया है। इस मामले में हमने अमेरिका को भी काफी पीछे छोड़ दिया है। अमेरिका में अब तक एक दिन में 40 लाख लोगों को टीका लगा है। यह रिकॉर्ड 4 अप्रैल को दर्ज हुआ था। ऑस्ट्रेलिया में अब तक कुल 6.87 लाख डोज लगे हैं। इससे करीब डेढ़ गुना भारत में एक दिन में ही लगा दिए गए। उधर, स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया है कि देश में अब तक 28.33 करोड़ लोगों को कोरोना की वैक्सीन लगाई जा चुकी है। इनमें 23.27 करोड़ से ज्यादा को पहला और 5.05 करोड़ को दूसरा डोज लग चुका है। नई गाइडलाइंस के मुताबिक, अब 18 साल से ज्यादा उम्र के हर नागरिक को केंद्र सरकार की ओर से मुफ्त वैक्सीन लगाई जा रही है। देश में 16 जनवरी से वैक्सीनेशन की शुरुआत की गई थी। इससे पहले टीकाकरण को लेकर निराशाजनक खबरें अक्सर सुनने-देखने को मिलती रहती थीं। जैसे टीकों की कमी, टीका लगवाने से लोगों का बचना, टीके को लेकर लोगों में फैला डर, भ्रांतियां और अंधविश्वास, सरकारी स्तर पर अभियान को लेकर उदासीनता आदि। इसी को देखते हुए टीकाकरण की कमान केंद्र ने अपने हाथ में ली। टीकों का संकट शुरू से ही है। फिर समय-समय पर इसका दायरा भी बढ़ाया जाता रहा। इससे हुआ यह कि टीका लगवाने वालों की तादाद बढ़ती गई, पर उसके हिसाब से टीके नहीं मिल पाए। इससे कई राज्यों में टीके लगाने का काम ठंडा पड़ गया। राज्य टीकों की मांग करते रहे। दूसरी ओर केंद्र सरकार दावा करती रही कि किस राज्य को उसने कितने टीके दिए। इन कंपनियों के पास पहले ही से दूसरे देशों के भी ऑर्डर थे। ऐसे में भारत की जरूरत को पूरा कर पाना इनके लिए आसान नहीं था। हालांकि इस बीच कंपनियों की उत्पादन क्षमता बढ़ाई गई है। इसके लिए केंद्र ने अच्छा-खासा पैसा दिया है। रूस से भी स्पूतनिक टीके का आयात हो रहा है। देर से ही सही, अब और कंपनियां को भी टीके बनाने में लगाया गया है। देश में टीकों की कितनी जरूरत पड़ेगी और उसके हिसाब से कंपनियां कितना उत्पादन कर पाएंगी, इसका आकलन कर पाने में शुरुआती स्तर पर दरअसल सरकार नाकाम रही। इसी का नतीजा रहा कि टीकाकरण में हम लक्ष्य से काफी पिछड़ते चले गए। नई नीति में अब टीकों की खरीद राज्य नहीं करेंगे। लेकिन मुश्किल यह है कि कई राज्य पहले ही टीकों की खरीद का अनुबंध कर चुके हैं। टीकों के दाम को लेकर कंपनियां राज्यों से जिस तरह मोलभाव करतीं दिखीं, उसे उचित नहीं कहा जा सकता। यह सरासर मजबूरी का फायदा उठाने जैसा रहा। अगर चंद कंपनियां सरकारों को ही इस तरह नचाने लगें तो यह हैरान करने वाली बात है। इससे राज्यों को आर्थिक नुकसान हुआ। सवाल है कि आखिर केंद्र ने यह जिम्मेदारी राज्यों पर डाली ही क्यों थी? अभी भी तो केंद्र राज्यों के हिस्से का पच्चीस फीसद टीका खरीद कर उन्हें देगा।
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