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लेख - February 20, 2023

चुनावों में हेमंत सोरेन चुनौती

-कुमार कृष्णन-

-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-

वर्तमान वर्ष 2023 औरआगामी 2024 झारखंड के लिए राजनीतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण साल साबित होने वाले हैं। अभी 2023 की शुरूआत हुई है और राज्य की रामगढ़ विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव को लेकर सियासी माहौल में सरगर्मी तेज हो गई है। आने वाले तीन-चार महीनों के भीतर राज्य में 49 नगर निकायों के चुनाव संभावित हैं। वर्ष 2024 के पूर्वार्ध में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और उत्तरार्ध यानी नवंबर-दिसंबर में झारखंड विधानसभा के भी चुनाव कराए जाएंगे। इन सभी चुनावों के समीकरण बहुत हद तक इस कारक पर तय होंगे कि राजग और महागठबंधन दोनों खेमों के घटक दलों के बीच आपसी एकता किस हद तक बन पाती है। झारखंड के मौजूदा राजनीतिक हालात में यह तथ्य भी आईने की तरह साफ है कि झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इन सभी चुनावों में एक अहम धुरी होंगे।

बात सबसे पहले रामगढ़ विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव की, जहां आगामी 27 फरवरी को वोट डाले जाने हैं। इस सीट पर 2019 में जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस की ममता देवी को हजारीबाग जिले की कोर्ट ने एक आपराधिक मामले गोला गोलीकांड में सात साल की सजा सुनाई थी और इसके बाद जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 के प्रावधानों के तहत विधानसभाध्यक्ष के निर्देश उनकी विधायकी निरस्त कर दी गई थी। इस वजह से यहां उपचुनाव कराए जा रहे हैं। झारखंड में राजग गठबंधन की घटक आजसू ने यहां गिरिडीह के सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी की पत्नी सुनीता देवी को प्रत्याशी बनाया है। वह 2019 के विधानसभा चुनाव में भी आजसू की प्रत्याशी थीं, लेकिन पराजित हो गई थीं। इस चुनाव में एनडीए फोल्डर में फूट पड़ गई थी। आजसू और भाजपा दोनों ने अपने प्रत्याशी उतार दिए थे। इस बार आजसू प्रत्याशी को भाजपा का भी समर्थन है। भाजपा समर्थित आजसू पार्टी प्रत्याशी सुनीता चौधरी के लिए खुद सुदेश महतो ने चुनाव प्रचार की कमान संभाल ली है। आजसू पार्टी सुप्रीमो सुदेश महतो के साथ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश भी लगातार चुनावी सभाओं को संबोधित कर रहे है।

यहां कांग्रेस अपना उम्मीदवार बजरंग महतो को अपना उम्मीदबार बनाया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा और राजद के साथ-साथ प्रमुख वामदलों ने रामगढ़ उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन देने का ऐलान किया है। माकपा, भाकपा, भाकपा (माले), फारवर्ड ब्लाक, आर एस पी.और मासस ने रामगढ़ उप चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार बजरंग महतो को समर्थन दिए जाने का फैसला लिया। महागठबंधन और राजग के लिए चुनौती और प्रतिष्ठापूर्ण रामगढ़ उप चुनाव की कमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद संभाल ली है। उन्होंने अपने गृह प्रखंड गोला के नेमरा गांव से चुनावी सभा की शुरुआत की। यह रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र का ही हिस्सा है। हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद झारखंड में पांचवां उप चुनाव रामगढ़ में हो रहा है। 2019 के बाद राज्य में चार विधानसभा सीटों दुमका, बेरमो, मधुपुर और मांडर में अलग-अलग वजहों से उपचुनाव कराए गए और चारों उपचुनावों में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन (यूपीए) ने एका बरकरार रखते हुए जीत दर्ज की है।

रामगढ़ विधानसभा उपचुनाव के बाद राज्य में सभी 49 नगर निकायों के चुनाव कराने की घोषणा की जा सकती है। ये चुनाव बीते दिसंबर में ही प्रस्तावित थे, लेकिन मेयर के पदों पर एकल आरक्षण पर विवाद के कारण सरकार ने चुनाव टाल दिए थे। अब इस मसले पर सरकार निर्णय ले चुकी है और सब कुछ ठीक रहा तो अप्रैल-मई में चुनाव करा लिए जाएंगे। हालांकि नगर निकायों के चुनाव दलीय आधार पर नहीं होंगे, लेकिन इसके बावजूद यूपीए-एनडीए दोनों खेमों के बीच अपने-अपने समर्थकों की जीत सुनिश्चित करने के लिए जोरदार आजमाइश होगी। पिछले बार नगर निकाय चुनावों में जीत दर्ज करने वालों में भाजपा समर्थकों की तादाद सबसे ज्यादा थी। इस दफा हेमंत सोरेन की अगुवाई वाले सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर नगर निकायों के महत्वपूर्ण पदों के लिए साझा प्रत्याशी उतारने की संभावनाओं पर चर्चा हो रही है।

2024 में होने वाले सबसे बड़े चुनाव यानी लोकसभा चुनाव के लिए एनडीए और यूपीए दोनों ने राज्य में अपने-अपने पक्ष में सियासी समीकरण तैयार करने की संभावनाओं और रणनीतियों पर काम शुरू दिया है। भाजपा के शीर्ष चुनावी रणनीतिकारों में एक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बीते झारखंड के चाईबासा और देवघर में विजय संकल्प रैली के साथ राज्य में चुनावी अभियान यानी मिशन 2024 का आगाज कर दिया है। इस रैली में अमित शाह के निशाने पर कांग्रेस नहीं, हेमंत सोरेन ही रहे। इसकी वजह यह है कि झारखंड में भाजपा या एनडीए के सामने सबसे बड़ी चुनौती हेमंत सोरेन हैं। हेमंत सोरेन ने भी अमित शाह के प्रहारों का जवाब देने में देरी नहीं की। उन्होंने अमित शाह की रैली के 17 दिन बाद चाईबासा में खतियानी जोहार यात्रा के तहत बड़ी रैली की।

सोरेन ने इस रैली में साल 2024 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव का शंखनाद करते हुए कहा कि इस यात्रा के माध्यम से वे सभी का आशीर्वाद लेने आए हैं। लंबे संघर्ष के बाद झारखण्ड राज्य मिला। 20 वर्षो तक गुजरात और महाराष्ट्र के लोगो ने झारखण्ड को चलाया। अब 1932 की खतियान की जो बात करेगा, वहीं झारखण्ड पर राज्य करेगा। हेमंत सोरेन ने कहा- ‘बीजेपी और भगवाधारी हमलोगो को बोका बनाया। अब हम लोग उनलोगो को बोका बनायेंगे। ’ बीजेपी व्यापारियों का प्रतिनिधित्व करती है, झारखंड मुक्ति मोर्चा गरीबों की आवाज को उठाने का करता है। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने आदिवासियों की पहचान जल, जंगल, जमीन है। अब इसे लूटने नहीं दिया जाएगा। 15 साल दिजिए, झारखण्ड गुजरात से उपर रहेगा। यहां से मनुवादियों, बिहारियों और उत्तरप्रदेश के लोगो को खदेड़ दिया जाएगा। वे एक ऐसी व्यवस्था खड़ी कर रहे है, जहां अधिकारी आम लोगों के दरवाजे पर जाकर उनकी समस्याओं का समाधान कर रहे है। यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।

पश्चिम सिंहभूम जिले की 24 हजार करोड़ रुपया जमा पड़ा है, लेकिन केन्द्र सरकार नही चाहती है कि ये पैसा झारखण्ड के विकास के लिए खर्च हो। केंद्र सरकार इसे पूंजीपतियों को देने की तैयारी कर रही है। पूर्व की 20 साल बनाम हेमंत की 3 साल की सरकार का का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पहले अधिकार मांगने वाले पारा शिक्षक, सहिया दीदी, पुलिस के जवानो पर लाठियां भांजी जाती थी, अब हमारी सरकार में उन सभी के समस्याओं का समाधान कर दिया गया। अब वे लोग मांग के लिए घेराव नहीं करते है, बल्कि अबीर-गुलाल लगाने और मिठाई खिलाने के लिए घेराव करते है। उन्होंने कहा कि खनिज संपदा की प्रचुरता के बावजूद यहां के लोग रोजगार के लिए दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और गोवा जाते है, जबकि यहां के संपदाओं से गुजरात, महाराष्ट्र रोशन होता है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री रोजगार सृजन योजना से युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ा जा रहा है। युवा स्वरोजगार से जुड़े क्योंकि नौकरी के अवसर कम है। केन्द्र सरकार ट्रेन, प्लेन और स्टेशन बेच रही है। टैक्स बढ़ा कर गरीबो का पैसा खींचा जा रहा है।

झारखंड में आदिवासी वोट बैंक पर सोरेन और उनकी पार्टी की मजबूत पकड़ है। भाजपा जानती है कि वह इस वोट बैंक को दरकाने में जितनी सफल होगी, लोकसभा के साथ-साथ 2024 में ही होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में उसकी राह उतनी आसान होगी। दूसरी तरफ हेमंत सोरेन राज्य में सरकार चलाते हुए आदिवासियों और झारखंड के मूल निवासियों से जुड़े जमीनी और भावनात्मक मुद्दों पर एक के बाद एक महत्वपूर्ण निर्णय ले रहे हैं। 1932 के खतियान पर आधारित डोमिसाइल पॉलिसी, ओबीसी-एससी-एसटी आरक्षण में वृद्धि, निजी कंपनियों में 40 हजार तक की पगार वाले पदों पर झारखंड के स्थानीय लोगों के लिए 75 फीसदी आरक्षण जैसे फैसलों का इस्तेमाल वह तुरुप के पत्ते की तरह कर रहे हैं। हेमंत सोरेन सरकार के कई फैसलों पर पूरी तरह सहमत न होने के बावजूद राज्य में कांग्रेस और राजद जैसी पार्टियां उनके साथ खड़ी हैं। इसकी वजह यह कि ये दोनों पार्टियां जानती हैं कि फिलहाल झारखंड में झामुमो के बगैर चुनावी राजनीति में टिके रह पाना मुश्किल है।

झारखंड में लोकसभा की 14 सीटें हैं। 2019 के चुनाव में इनमें से 11 सीटों पर भाजपा और एक पर राजग गठबंधन की पार्टी आजसू ने जीत दर्ज की थी। इस बार राजग के लिए यह परिणाम दोहरा पाना बड़ी चुनौती है। पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त राज्य में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार थी। अभी राज्य में झामुमो की अगुवाई वाले गठबंधन की सरकार है। अगर कोई अप्रत्याशित स्थिति नहीं बनी तो यह सरकार वर्ष 2024 तक कायम रह सकती है और ऐसे में यहां सोरेन की अगुवाई में ज्यादा बेहतर संसाधनों के साथ चुनाव लड़ने का फायदा यूपीए को मिल सकता है। पिछले लोकसभा चुनाव में गठबंधन के तहत चार दलों राष्ट्रीय जनता दल, झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और झारखंड विकास मोर्चा ने 14 में से 13 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ा था। इसके बावजूद इनके हिस्से मात्र 2 सीटें आई थीं। झारखंड विकास मोर्चा अब विघटित हो चुका है। संभावना यही है कि इस बार गठबंधन में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल एक साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे और हेमंत सोरेन इस एका की सबसे बड़ी धुरी होंगे। फिलहाल इनकी एकता में कोई बड़ी मुश्किल नहीं दिख रही। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव और इसके बाद विधानसभा चुनाव में सोरेन की अगुवाई वाले इस गठबंधन की संभावित एका किस हद तक असर डाल पाएगी।

 

 

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