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लेख - July 7, 2021

राजनैतिक ज्ञान के ज्ञानेश्वर ज्ञानेन्द्र शर्मा…!

-नईम कुरेशी-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

ज्ञानेन्द्र शर्मा साहब हमारा साथ छोड़ गये। वो मध्य प्रदेश की कांग्रेस सियासत के खास जानकार थे 1968-69 में वो मुख्यमंत्री रहे रीवां के गोविंद नारायण सिंह के पुत्र आनंद के दोस्त बन गये थे। उनकी गोविंद नारायण सिंह से बाद में 3-4 साल बाद विद्याचरण शुक्ल से भी ज्ञानेन्द्र भाई साहब की मुलाकातें होने लगी थीं। उनकी गहरी वाक्पटुता व गम्भीर सोच के चलते वो विद्या भईया के खास बन गये थे। उनसे 1977 में गांधी रोड सर्किट हाउस पर मेरी मुलाकात हुई थी। जब मैं शहर में पत्रकार के तौर पर खूब सक्रिय था।

ज्ञानेन्द्र भाईसाहब मिलनसार, दूर दृष्टि वाले, नम्र व्यक्ति थे। उन्हें नये-नये लोगों से मिलने का शौक था। उस दौर में भाई साहब लम्ब्रेटा स्कूटर पर चलते थे, हम सायकल पर थे। उस दौर में लम्ब्रेटा स्कूटर व अम्बेसडर कार ही या फीयट कार ही व्ही.आई.पी. के पास होते थे। ज्ञानेन्द्र भाईसाहब को कांग्रेस के तमाम बड़े नेता 1980 के आते-आते जानने लगे थे। श्यामाचरण शुक्ल, प्रकाश चन्द्र सेठी, अर्जुन सिंह उनसे मिलकर खुश होते थे। ज्ञानेन्द्र भाईसाहब जनकगंज क्षेत्र के निवासी थे। उनके पिता निगम के अफसर रहे थे।

ज्ञानेन्द्र भाईसाहब से राजा दिग्विजय सिंह के भी अच्छे संबंध रहे थे। उनके मंत्री मंडल के तीन वजीर चरण दास महंत, प्रेम ठाकुर आदि उनके खास भक्त थे। वो उन्हें गुरु तक मानते थे। मुझे भी भाईसाहब ने 90-91 में महंत से मिलवाया था। 1991 में जब तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री अर्जुन सिंह ने मेरी बुन्देली विरासत पुस्तक का विमोचन दिल्ली में किया था। उस दौर में भाईसाहब ने मेरी दिल्ली में बहुत मदद की थी। यहां तक मुझे व मेरी पत्नी को वो रेल्वे स्टेशन निजामुद्दीन पर अपनी कार से लेने तक आये थे। हमारा दिल्ली में परिचय भी काफी कम था। उस दौर में हम तो 82 से दिल्ली में पत्रकारिता करने हर हफ्ते जाते रहे थे। दिल्ली के सैकड़ों चैराहों में मात्र बहादुरशाह जफर मार्ग नई दिल्ली स्टेशन भर का इलाका हमने देख पाया था 7-8 सालों में बसों में लटककर दिल्ली तो सालों में ही देखी जा सकती थी। भाईसाहब के पास उस दौर में जिप्सी जैसी सुन्दर जीप होती थी। उन्होंने हमें दिल्ली में 4-5 बार तो 91-92 में घुमाया तो था ही हां सरोद वादक अमजद अलि खॉन साहब ने भी 88 में हमें दिल्ली में दो-तीन बार बैठाया था। हम उस दौर में उनके संगीत ट्रस्ट से जुड़ चुके थे। डॉ. शंकर दयाल शर्मा उपराष्ट्रपति से उन्होंने हमारी पुस्तक का विमोचन कराकर हमारी दिल्ली में पहचान बनाने की शुरुआत कर दी थी। ज्ञानेन्द्र भाईसाहब ने इसे और आगे बढ़ाया। भाईसाहब ने अर्जुन सिंह के विवाह पर किताब विमोचन के दौरान 1991 जुलाई में ज्ञानेन्द्र भाईसाहब ने कार्यक्रम में आभार व्यक्त किया था। इस प्रोग्राम में दर्जनभर मध्य प्रदेश के सांसद, आय.ए.एस. व सुभाष त्रिपाठी जैसे आय.पी.एस., लक्ष्मीनारायण जैसे आय.ए.एस. व दिग्विजय सिंह रमाशंकर सिंह उस्ताद अमजद अलि खॉन साहब जैसे मशहूर संगीतकार थे।

भाईसाहब ज्ञानेन्द्र शर्मा साहब के ज्ञान का लोहा यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन के चेयरमैन जमील मोहम्मद कुरेशी भी खूब मानते थे। कुरेशी साहब मध्य प्रदेश से आय.पी.एस. थे वो डी.जी.पी. से लेकर भारत सरकार में सचिव तक रहे थे। राजीव गांधी व अर्जुन सिंह के काफी नजदीकी उनकी थी। हमने 92-93 में उनकी मुलाकात कराई थी। भाईसाहब भी दिल्ली में गहरी पहचान रखते आये थे। उस दौर में खासतौर से अर्जुन सिंह के कैम्प से वो सियासत करते थे। कुंअर साहब भी उन्हें खूब मानते थे। एक बार भाईसाहब ने 87 में ग्वालियर के कमिश्नर अजय शंकर की कुंअर अर्जुन सिंह से आर.टी.ओ. परमिटों में भेदभाव की शिकायत कर दी थी। वो उस समय मुख्यमंत्री थे। बड़े सख्त स्वभाव के थे कुंअर साहब उस दौर में कुंअर साहब ने कमिश्नर से 10 सालों के आर.टी.ओ. रिकॉर्ड के साथ तुरन्त हाजिर होने का हुक्म दे डाला और 36 घंटों तक अजय शंकर को अपने पीछे-पीछे घुमाया। मुख्यमंत्री उस दौर में ग्वालियर, चम्बल, शिवपुरी दौरे पर थे। अंत में झांसी रेल्वे स्टेशन से अर्जुन सिंह साहब को भोपाल बुलाकर फटकारते हुये धीमे से बेड शो कहा था। इस तरफ ज्ञानेन्द्र भाई साहब ने अपने ज्ञान व प्रताप के बल पर एक बड़े नौकरशाह को कुंअर साहब से करंट दिलाकर पूरी प्रदेश की नौकरशाही को हड़का दिया था जो सिर्फ और सिर्फ ज्ञानेन्द्र भाई साहब ही कर सकते थे। उनके ज्ञान का लोहा संबंधों की पूंजी को उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, सियासतदां, नौकरशाह, डॉक्टर साहेबान, उद्योगपति, पत्रकार आदि सभी समान तौर से मानते थे। बालेन्दु शुक्ल, भगवान सिंह, कालूखेड़ा भी उनके दौर के वजीर व बड़े नेता रहे थे।

 

 

 

 

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